दोहा दशम - ..... उल्फत
अश्कों से जब धो लिए, हमने दिल के दाग ।
तारीकी में जल उठे, बुझते हुए चिराग ।।
ख्वाब अधूरे कह गए, उल्फत के सब राज ।
अनसुनी वो कर गए, इस दिल की आवाज ।।
आँसू, आहें, हिचकियाँ, उल्फत के ईनाम ।
नींदों से ली दुश्मनी, और हुए बदनाम ।।
माना उनकी बात का, दिल को नहीं यकीन ।
आयें अगर न ख्वाब है, उल्फत की तौहीन ।।
यादों से हों यारियाँ , तनहाई से प्यार ।
उल्फत का अंजाम बस , इतना सा है यार ।।
मिला इश्क को हुस्न से, अलबेला उपहार ।
चश्मे साहिल हो गया, अश्कों से गुलजार ।।
तनहा - तनहा दिल जला, तनहा जले चिराग ।
तनहाई के दौर में, छलके दिल के दाग ।।
बाहुबंध में ख्वाब का, हुआ अजब अहसास ।
और करीबी से बढ़ी, प्यासी- प्यासी प्यास ।।
यादों के हैं जलजले, ख्वाबों के दीवान ।
हासिल उल्फत में हुए, अश्कों के तूफान ।।
उल्फत की रुख़सार पर, अश्क लिखें तहरीर ।
दर्द भरी तन्हाइयाँ, इसकी है तासीर ।।
सुशील सरना / 10-2-25
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुशील जी दोहो की प्रस्तुति के लिये ेबहुत बहुत बधाई
दोहो में कुछ कल संयोजन पर काम किया जा सकता है उदाहरण के लिये
आये अगर न ख़्वाब है को ख़्वाब अगर आये नहीं में दोहे का प्रचलति विन्यास 33232 लय बढ़ा सकता है
अंतिम में जहा तक मैं कथ्य समझा हूँ अश्क रुखसार पर उल्फत की तहरीर लिख रहे हैं तो इसे ऐसे भी कह सकते है
अश्क लिखें रुख़सार पर, उल्फ़त की तहरीर ।
एक दोहे मे आपने लिखा है छलके दिल के दाग दाग का छलकना कुछ असहज बात लगती है दाग या ज़ख़्म महकें तो बात अलग होगी । सेंकड लास्ट दोहे में जलजले ( भूकंप) के साथ तूफान सही है लेकिन दीवान से क्या तात्पर्य है ?
इश्क को हुस्न से अलबेला उपहार मिला ठीक है किन्तु साहिल ( समुद्र या दरिया का किनारा) की आखों में अश्क क्यूँ आये आसुओं से गुलजार होने की कैफियत बयां नहीं हो रही दोहे में ।
एक पाठक के रूप मे मेरी सहज जिज्ञासा है । प्रस्तुति के लिये पुनः बधाई
बहुत उत्तम दोहे हुए हैं आ. सुशिल जी
बधाई
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