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बड़ी मेहनत से जो पाई वो आज़ादी बचा लेना

बड़ी मेहनत से जो पाई वो आज़ादी बचा लेना
तरक्की के सफ़र में थोडा सा माजी बचा लेना

बनाओ संगेमरमर के महल चारो तरफ पक्के
मगर आंगन के कोने में ज़रा माटी बचा लेना

चुभी थी फांस बनकर गोरी आँखों में कभी खादी
न होने पाए इसकी आज बदनामी बचा लेना

कोई भूखा तुम्हारे दर से देखो लौट ना जाये
तुम अपने खाने में से रोज़ दो रोटी बचा लेना

लगा पाओ वतन पर मरने वालो का कोई बुत भी
कोई नुक्कड़ तुम अपने बुत से भी खाली बचा लेना

(बहरे हज़ज़ मुसम्मन सालिम, अरकान मफाईलुन एक मिसरे में चार बार)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 15, 2010 at 6:24pm
बड़ी मेहनत से जो पाई वो आज़ादी बचा लेना
तरक्की के सफ़र में थोडा सा माजी बचा लेना
इस माज़ी को बचाना जब दकियानूसी समझा जाने लगे तो कवि की यह गुहार उसके आंतरिक ताकत और मानसिक गठन को बताती है.
किस-किस की चर्चा करूँ? माटी बचाने का संदर्भ हो या रोटी बचाने का सामाजिक-दायित्व निखर कर आया है. और तो और बुतों और पुतलों की बात कितनी सहजता से कही गई लगती है. मगर समझ बताती है कि अब कमजर्फ़ी की इंतहा क्या-क्या दिखा रही है. राणाप्रतापजी बहुत अच्छे. बहुत खूब.
Comment by sanjiv verma 'salil' on August 15, 2010 at 11:51am
शानदार और जानदार रचना के लिये बधाई. आपने बहर, काफिया और रदीफ़ के साथ न्याय किया है.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 15, 2010 at 11:41am
बनाओ संगेमरमर के महल चारो तरफ पक्के
मगर आंगन के कोने में ज़रा माटी बचा लेना,
राणा भाई,बहुत खूब , सर्वप्रथम तो मैं भी आपको स्वतंत्रता दिवस की बधाई देना चाहता हूँ तत्पश्चात स्वतंत्रता दिवस पर लिखी इस खुबसूरत और बेहतरीन ग़ज़ल पर भी बधाई स्वीकार करे, बहुत ही उम्द्दा और सुंदर शब्दों से सुसज्जित शानदार रचना, बहुत बहुत धन्यवाद इस रचना पर,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on August 14, 2010 at 8:12pm
bahut hi badhiay rachna rana bhai....ye rachna sach puchiye to ekdam se dil ko chu gayi...
waah bhai waah behtareen rachna......aapne ek sachhe desh bhakt hone ka saboot diya hai is rachna ke madhyam se....
bijayi bishwa tiranga pyara,
jhanda ucha rahe hamara......

jai hind.....jai obo
Comment by आशीष यादव on August 14, 2010 at 6:27pm
आपको मेरा सादर प्रणाम,
आपकी ये रचना छू गयी मेरे ह्रदय को| किसी को भी उसकी आजादी बहुत अच्छी लगती है| अगर आप अपनी अच्छी शय को बचा के नहीं रखेंगे तो ये दुनिया वाले बहुत जल्दी छीन लेंगे|
हर वक़्त देश से प्यार करना चाहिए, अपनी मिटटी से प्यार करना चाहिए. एक कवि ने कहा भी है.
जो भरा नहीं है भांवों से, जिसमें बहती रसधार नहीं|
वह ह्रदय नहीं है, पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं||

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