For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चारागर की ख़ता नहीं कोई.
दर्दे-दिल की दवा नहीं कोई.

आप आये न मौसमे-गुल में,
इससे बढ़कर सज़ा नहीं कोई.

ग़म से भरपूर है किताबे-दिल,
ऐश का हाशिया नहीं कोई.

देख दुनिया को अच्छी नज़रों से,
सब भले हैं बुरा नहीं कोई.

सच का हामी है कौन पूछा तो,
वक़्त ने कह दिया नहीं कोई.

है सफ़र दश्ते-नाउम्मीदी का,
मौतेबर रहनुमा नहीं कोई.

अपने ही घर में हैं पराये हम,
बेग़रज़ राबता नहीं कोई.

इस तअ्‍‌फ्फ़ुनज़दा जहाँ में आज,
रूह अफ़ज़ा हवा नहीं कोई.

क्यों झुके सर ‘लतीफ़’ के आगे,
आदमी है ख़ुदा नहीं कोई.‌‍


©अब्दुल लतीफ़ ख़ान (दल्ली राजहरा).

Views: 511

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sonam Saini on November 2, 2012 at 4:09pm

khubsurat ghazal ................

Comment by सूबे सिंह सुजान on October 22, 2012 at 12:11am
bhut khoob
Comment by Abhinav Arun on October 21, 2012 at 11:48am

शानदार ग़ज़ल आदरणीय श्री अब्दुल जी - ये शेर ख़ास है -

अपने ही घर में हैं पराये हम,
बेग़रज़ राबता नहीं कोई.

वैसे हर शेर बाकमाल कहा है आपने बधाई !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 20, 2012 at 9:40am

किस एक शेर की कहूँ ? पूरी ग़ज़ल बहुत ही ऊँचे मेयार की है, लतीफ़ भाई.  दिल से दाद कुबूल फ़रमायें.

सच का हामी है कौन पूछा तो,
वक़्त ने कह दिया नहीं कोई.

वाह-वाह !

Comment by ajay sharma on October 19, 2012 at 10:29pm

चारागर की ख़ता नहीं कोई.
दर्दे-दिल की दवा नहीं कोई. wah mat ala very good

आप आये न मौसमे-गुल में,
इससे बढ़कर सज़ा नहीं कोई.   very good

ग़म से भरपूर है किताबे-दिल,
ऐश का हाशिया नहीं कोई.  wah wah wah sher

देख दुनिया को अच्छी नज़रों से,
सब भले हैं बुरा नहीं कोई.  bahut khoob kya baat hai really really good

सच का हामी है कौन पूछा तो,
वक़्त ने कह दिया नहीं कोई.    satirical ,,,,truly said 

है सफ़र दश्ते-नाउम्मीदी का,
मौतेबर रहनुमा नहीं कोई.       bahut kuch kah diya hai ---idealogy of today's leadership

अपने ही घर में हैं पराये हम,
बेग़रज़ राबता नहीं कोई.         bahut khoob sher hai zanab

इस तअ्‍‌फ्फ़ुनज़दा जहाँ में आज,
रूह अफ़ज़ा हवा नहीं कोई.       kafas me hai ye insaan ander to zyada hi pollution hai 

क्यों झुके सर ‘लतीफ़’ के आगे,
आदमी है ख़ुदा नहीं कोई.‌‍        kya baat hai khush kar diya dil 

 

Comment by सूबे सिंह सुजान on October 19, 2012 at 9:30pm

wah bhai i bhut khoob hai............


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 18, 2012 at 11:06am

इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए ढेरों ढेर दाद पेश कर रहा हूँ अब्दुल लतीफ़ खान साहिब, कबूल फरमाएं.

Comment by वीनस केसरी on October 18, 2012 at 12:28am

वाह लतीफ़ साहिब वाह

वाह वाह वा
बस हुजूर
वाह और वाह

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service