For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कर्मजली (लघुकथा) रवि प्रभाकर

“अबे ओए,  क्या तू ही दीनू है?” अपने दलबल के साथ अचानक आ धमके थानेदार ने अपनी रौबीली आवाज में पूछा
”जी सरकार मैं ही दीनू हूँ ......”
“क्या यही वो लड़की है जिसके साथ आज जबरदस्ती हुई है?” कोने में सिसकती लड़की की तरफ देखकर थानेदार की आंखों में गुलाबी से डोरे तैरने लगे।
“जी सरकार..........”
“जी सरकार के बच्चे... शिकायत क्यों नहीं की थाने में आकर....”
“जी, वो मुखिया जी ने समझौता..... ”
”देखिए साहिब..... कितने सारे रूपये” कांस्टेबल ने चारपाई की नीचे रखे कनस्तर में से नोट निकालते हुए कहा
“साले...... लड़की से धंधा करवाता है, और बड़े आदमियों को ब्लैकमेल करता है....।”
“नहीं सरकार ..... वो तो ......” दीनू की तो जैसे घिग्गी ही बंध गई।
“कब्जे में ले लो सारे पैसे, और बिठायों छोकरी को जीप में “पूछताछ” के लिए."

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 804

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on June 20, 2014 at 8:32am

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई, आदरणीय रवि जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 19, 2014 at 8:34am

एक समय से होता आया है जाने कबतक ऐसा ही होता रहेगा.. मनुष्य मछलियाँ नहीं है, लेकिन व्यवहार अलग भी नहीं करता. जोरू की लुगाई या बेटियाँ ऐसे ही जीती हैं.

इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई रवि भाई.

एक अरसे बाद आपको मंच पर देखना भला लगा. 

शुभेच्छाएँ

Comment by Ravi Prabhakar on June 18, 2014 at 7:28pm

आदरणीय कल्पाना रामानी जी, विजय मिश्र जी, महिमा श्री जी, जितेन्द्र जी, अन्नपूर्णा जी, गिरिराज जी व लक्ष्मण जी लघुकथा को पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद।

Comment by Ravi Prabhakar on June 18, 2014 at 7:26pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी
    सादर ! आप सरीखे विद्धानों की टिप्पणी सदैव उत्साहित करती है। धन्यवाद।

Comment by Ravi Prabhakar on June 18, 2014 at 7:22pm

आदरणीय डाॅ. प्राची सिंह जी,
    सादर ! लघुकथा के मर्म को समझने के लिए आभार। आशा है कि भविष्य में भी आपका स्नेह मिलता रहेगा ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 16, 2014 at 9:53pm

उफ्फ !!!!

ऐसा भी कुछ घिनौने सच हो सकते हैं.... 

दीनू मुखिया पुलिस....के अपने अपने स्वार्थों में पिस तो बेचारी लडकी गयी ...और जाने कब तक ..

मर्मस्पर्शी लघुकथा आदरणीय रवि प्रभाकर जी 

Comment by कल्पना रामानी on June 16, 2014 at 8:16pm

बहुत मार्मिक, इंसान कितना गिर चुका है उफ! ...एक सशक्त रचना के लिए बधाई आपको

Comment by विजय मिश्र on June 16, 2014 at 5:57pm
किस दौर में हैं हम ! आजका सच इससे भी घिनौना है |शब्द सज्जा सुंदर है और विषय मर्म को वैधता है |अतिसामयिक |
Comment by MAHIMA SHREE on June 15, 2014 at 4:00pm

बेहद मार्मिक , समाज का घृणित चेहरा देख कर क्रोध तो आता है पर अंपनी विवशता का क्या करें ..सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 14, 2014 at 11:27am

बहुत अच्छी लघुकथा, सच! हवस में इंसान क्या नही कर गुजरता है. क्या सही? क्या गलत ? कोई फर्क नही. लघुकथा पर आपको हार्दिक बधाई आदरणीय रवि जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
10 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service