For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उड़नेवाले इक परिंदे का मुकद्दर देखिये- ग़ज़ल

2122 2122 2122 212
नातवाँ जिस्म और ये बिखरे हुये पर देखिये
उड़ने वाले इक परिन्दे का मुकद्दर देखिये

बीज मैंने बो दिया है हसरतों के खेत में
मुझको कब होती है फ़स्ले गुल मयस्सर देखिये

किस तरफ़ ले जा रहा है आपको ये रास्ता
रुकिये थोड़ा, और नज़रों को घुमाकर देखिये

दिल हुआ जाता है मेरा आइने सा पुरख़ुलूस
फूल मिलते हैं मुझे या कोई पत्थर देखिये

दूसरों में ऐब कोई ढूँढते हैं आप गर
मशविरा है मेरा पहले अपने अंदर देखिये

ये हकीकत है या अपनी आगही का है गुमाँ
आप अपने दायरे से आके बाहर देखिये

कद्र भी करने लगेगी ज़िन्दगी फिर आपकी
दूसरों की ज़िन्दगी अपने बराबर देखिये

नातवाँ-कमज़ोर, पुरख़ुलूस-निष्कपट, आगही-ज्ञान

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 863

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 29, 2016 at 10:11pm

ख़ूबसूरत अश’आर हुए हैं आदरणीय शिज्जू जी। दाद कुबूल  कीजिए।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 29, 2016 at 6:25pm

बहुत ख़ूब 

Comment by सूबे सिंह सुजान on March 29, 2016 at 1:06pm
हकीकत है या अपनी आगही का है गुमाँ
आप अपने दायरे से आके बाहर देखिये।

बधाई बहुत सुंदर कहा
Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 11:09am

दूसरों में ऐब कोई ढूँढते हैं आप गर
मशविरा है मेरा पहले अपने अंदर देखिये------वाह !  क्या  खूब कही  है  आपने !   सभी  अशआर  एक  से  बढ़कर एक  बने है . बधाई  आपको आदरणीय शिज्जु शकूर जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 28, 2016 at 10:50am

आ० भाई  शिज्जु शकूर जी,इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हृदयतल से बधाई l

Comment by Samar kabeer on March 27, 2016 at 6:32pm
जनाब शिज्जु शकूर जी आदाब,बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएँ ।
Comment by amita tiwari on March 27, 2016 at 6:12pm

उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई

Comment by रामबली गुप्ता on March 27, 2016 at 2:42pm
वाह वाह वाह क्या बात है। बहुत ही उम्दा ग़ज़ल के लिए हृदयतल से बधाई स्वीकार करें।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 27, 2016 at 11:00am
आदरणीय तेजवीर जी एवं वंदना जी आपका तहेदिल से शुक्रिया
Comment by vandana on March 27, 2016 at 9:47am

bahut badhiya gazal aadrniy shijju ji 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
20 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
22 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
23 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service