For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कागज़ के घोड़े (लघुकथा)राहिला

कार्यालय में कई दिनों तक बिना सूचना के अनुपस्थित रहने के वाले सुरेश कुमार को कमिश्नर साहब ने निलंबित क्या किया।वह हर कर्मचारी के लिए चर्चा का विषय बन गये।सब उनकी दबंगई और ईमानदारी के कायल हुए बगैर ना रह सके। आखिर उन्होंने मंत्री जी के दामाद के खिलाफ जो कार्यवाही की थी। वहीं निलंबन की खबर पाते ही उसी शाम ,एक मिठाई का डिब्बा लेकर सुरेश कुमार , कमिश्नर साहब के सरकारी बंगले पर पहुँच गए।
"नमस्कार सर!"
"नमस्कार ,नमस्कार कहो कैसे आये।"
"बस सर! आपको धन्यवाद कहना था। और यह एक छोटी सी भेंट।"उसने मिठाई का डिब्बा उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा
"अरे..अरे,इसकी क्या जरूरत है ।तुम भाईसाहब के दामाद हो,उस हिसाब से मेरे भी दामाद ही हुए। ये वापस रखो ।ये सब तो हम भाईसाहब से वसूल कर लेंगे"हँसते हुए
उन्होंने ना लेने की मुद्रा में हाथ हिलाते हुए कहा।
"फिर भी सर !कुछ तो सेवा...."
"ये सब छोड़ो , लो चाय लो "चाय की ट्रे लिए नौकर को देख कर वह बोले।
"सर ! वह वेतन ..? गुजारा भत्ता तो फिफ्टी पर्सेंट ही मिलेगा ; अगर ज्यादा मिल जाता तो..." वह खींसे निपोरता हुआ बोला।
"अर्जी दे दो , हो जायेगा।और हाँ भाईसाहब से हमारी नमस्कार जरूर कहना। बता देना करवा दिया सवेतनिक लम्बी छुट्टियों का इंतेजाम ।"
"हाँ अब निश्चिन्त होकर ठेके का काम देख सकता हूँ।"
"और कोई प्रोब्लम हो तो बताना।"
फिर चाय की चुस्की लेते हुये जैसे कुछ और याद आया।
"अरे ..,सुनो!वह सरकारी अस्पताल से पर्चे वगैरह बनवा लिए थे ना ?"
"हाँ ,हाँ वह सब तो पंद्रह दिन पहले ही तैयार करवा लिए थे।"

"गुड-गुड, बस क़ागज सब अपटूडेट रखना , ऐसे मामलों में क़ागज के घोड़े ही दौड़ते है ।हा..हा ..हा.."
वह ठहाका मार के हंस दिए । "और जब बहाल होना हो तो बता देना।"
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 542

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on December 5, 2017 at 3:26pm

आप सब आदरणीय वरिष्ठ सुधीजनों का रचना पर इतनी सुंदर टिप्पणियों के लिए तहे दिल से शुक्रिया।सादर

Comment by Samar kabeer on December 1, 2017 at 5:26pm
मोहतरमा राहिला जी आदाब,अच्छी लघुकथा है, बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on November 30, 2017 at 7:45am
आदरणीया राहिला जी आदाब,
बेहतरीन कथानक, अच्छे पात्रानुकूल संवाद और भाषा-शैली । आजकल सरकारी तंत्र में इस तरह भी निलंबन और बहाली का छद्म खेल चलता है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on November 29, 2017 at 11:14pm
बधाई , आदरणीय सुश्री राहिला जी , सादर ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 29, 2017 at 10:58pm
बहुत बढ़िया उम्दा प्रस्तुति के लिए सादर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आदरणीया राहिला साहिबा।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 29, 2017 at 9:20pm

वाह आदरणीया राहिला जी बहुत खूब, सरकारी मशिनरी बेहतरीन प्रयास हुआ है आपका| बधाई स्वीकारें|

Comment by TEJ VEER SINGH on November 29, 2017 at 8:26pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राहिला आसिफ़ जी।राजनीतिज्ञों और सरकारी मशीनरी के घिनौने तालमेल को दर्शाती गज़ब की लघुकथा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service