आदरणीय साथिओ,
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देश मे चल रही सामयिक बहस पर केन्द्रित आपकी रचना का प्रस्तुतीकरण सुन्दर और सशक्त है। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन जी
जी आदरणीया,आपका बहुत बहुत आभार।
बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगाआदरणीय मनन कुमार जी।
परिवर्तन-
राजा बहुत बेचैन था, उसे उम्मीद नहीं थी कि मामला इस तरह का मोड़ ले लेगा. दरअसल उसे अपनी आवाम पर जरुरत से ज्यादा भरोसा था, उसे लगता था कि उसके पुराने पैतरे काम आ जाएंगे. मुआमला हाथ से निकलता देख उसने अपने चाणक्य को बुलाया और कोई रास्ता निकालने के बारे में चर्चा करने लगा.
"ये इतने पढ़े लिखे और समझदार कहाँ से पैदा हो गए, अपनी शिक्षा व्यवस्था में किये गए परिवर्तन से ज्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ा है क्या ?
चाणक्य ने थोड़ी देर अपना सर खुजाया और परेशानी भरे स्वर में बोला "मुझे भी समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर फ़र्क़ क्यों नहीं पड़ा. मैंने जब भी अपने शिक्षा मंत्री से पूछा, उसने मुझे यही बताया कि लोग अब राष्ट्रवाद के अलावा कुछ नहीं सोचते".
राजा ने चुरुट सुलगायी और एक लम्बा कश लेकर बोला "आपने सही आकलन नहीं किया महाराज, जनता उतनी भोली नहीं है जितना हम सोचते हैं. फिलहाल हम ऐसा करते हैं कि अपने इस कानून को वापस ले लेते हैं, आगे चलकर फिर देखा जाएगा".
चाणक्य सोच में पड़ गए, उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि राजा उनसे इस तरह की बात भी कर सकते हैं. उन्होंने राजा की तरफ गौर से देखा, उसके चेहरे पर दृढ़ निश्चय के भाव थे.
"ठीक है राजा साहब, लेकिन इसकी घोषणा आप ही कीजियेगा, आखिर हमारी भी प्रतिष्ठा का सवाल है".
राजा ने चैन की सांस ली, चाणक्य ने हल्का सा सर झुकाया और बाहर की तरफ निकल गए.
मौलिक एवम अप्रकाशित
आदरणीय विनय कुमार जी आप ने चाणक्य के बहाने वर्तमान स्थिति पर बहुत सुंदर और सटीक रचना का सृजन किया है. हार्दिक बधाई आप को .
इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ ओम प्रकाश जी
आदाब। बेहतरीन प्रतीकात्मक समसामयिक ज्वलंत मुद्दों पर बढ़िया संदेशवाहक रचना के लिए हार्दिक बधाई जनाब विनय कुमार साहिब। मेरे विचार से अंत कुछ अधिक झकझोरने वाला हो, तो बेहतर।
इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ शेख शहज़ाद उस्मानी जी
//जनता उतनी भोली नहीं है जितना हम सोचते हैं//
क्या कहने हैं भाई विनय कुमार सिंह जी. यही तो लोकतंत्र की सुन्दरत है कि भोली-भाली जनता, गद्दीनशीनों के निर्णयों को भी बदल देने की ताक़त रखती है. लाजवाब लघुकथा हुई है.
// चाणक्य ने हल्का सा सर झुकाया और बाहर की तरफ निकल गए.//
इसे कहते हैं वाक्य में दृश्यात्मकता पैदा करना, वाह. इस उत्कृष्ट लघुकथा हेतु मेरी तरफ से ढेरों-ढेर बधाई स्वीकार करें.
आपकी प्रतिक्रिया लेखन के प्रति नविन उत्साह पैदा कर देती है. इस विस्तृत और प्रोत्साहित करती टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ योगराज प्रभाकर सर
आ. भाई विनय जी, बेहतरीन कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।
इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी
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