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देश के वर्तमान हालात में इसी भावना की आवश्यकता है . प्रदत्त विषय पर बहुत सकारात्मक लघुकथा हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी
बहुत बहुत शुक्रिया आ प्रतिभा पांडे जी
भाई विनय कुमार सिंह जी, बहुत ही बढ़िया लघुकथा कही हैl नफरत का यह सफ़र जितनी जल्दी ख़तम हो उतना ही अच्छाl लेकिन यह भी सच है कि इस देश में सबने शाना-ब-शाना एक लम्बा सफ़र तय किया है, और यह प्सरेम-प्फ़यार का सफ़र आगे भी जारी रहेगाl इस उत्तम प्रस्तुति पर मेरी दिली बधाई स्वीकार करेंl
आदरणीय विनय कुमार जी आपने समसामयिक विषय पर बहुत ही अच्छी व विचारोत्तेजक लघुकथा कही है।
हार्दिक बधाई आदरणीय भाई विनय कुमार जी।बेहतरीन लघुकथा।
बुरे वक्त में सुकून देने वाली ख़बरों के मानिंद अच्छी लघुकथा हुई है. बधाई आदरणीय विनय कुमार जी.
आ. भाई विनय ही, वर्तमान हालातों मे राहत देती कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।
सादर नमस्कार। समसामयिक घटनाक्रमों और दुखद विसंगतियों के बीच सकारात्मक रचनात्मक गतिविधियों को उभार देती सुखांत रचना के लिए हार्दिक बधाई जनाब विनय कुमार साहिब। सार्थक पात्र नामों के कथनोपकथन व हावभावों सहित बढ़िया रचना। संवादों में /अल्पसंख्यक, सुरक्षा, आवेश.../जैसे शब्द न लेकर पात्र पृष्ठभूमि के अनुसार बोलचाल के शब्द या क्षेत्रीय भाषा के संवाद लेने पर रचना और अधिक प्रभावशाली हो सकेगी मेरे विचार से।
आदरणीय विनय कुमार जी, आपकी लघुकथा पढ़ कर वाक़ई बहुत राहत मिली, जैसे किसी ने घनघोर अँधेरे में दिया जला दिया हो। आपको मेरी और से ढेरों बधाई इस रचना पर।
आदरणीय विनय कुमार अंजू जी, आपकी यह रचना मौजूदा अंधेरे में एक रोशनी की किरण की उम्मीद-सी है। सादर बधाई
ठहरा हुआ समय
.......
"क्या जमाना आ गया है!"
स्वाभाविक शिकायती अंदाज में बस की सीट पर बगल में बैठा वृद्ध बारू राम बड़बड़ाया।
"क्या हो गया बाबा? जमाने से क्या शिकायत हो गई अब?",
नवीन ने चुटकी ली।
"बेटा! मैं आजकल के समय की बात कर रहा हूँ।"
"जी, समझ गया सब।" नवीन ने रूखा-सा जवाब दिया। और चुप बैठ गया।
यह बात बारू राम को न पची और वह बोल उठा, " हम चिट्ठी-पत्री से भी पहले के ज़माने देख चुके हैं।"
"तो?"
"कई-कई दिन में सन्देश मिलते थे।"
"आज तो सेकंड्स में सन्देश यहाँ से अमरीका पहुँच जाता है।"
"जानता हूँ। हम पैदल, बलगाड़ी या साइकिल पर ज़्यादातर सफ़र किया करते।"
"अब तो घर-घर बाइक है, कार भी है ही, और आदमी की औक़ात हो तो क्या समुद्र, क्या जमीन और क्या हवा, अंतरिक्ष में भी घूम कर आ सके है।"
"पता है बेटा, यह भी। पहले आदमी बहुत मेहनत किया करते।"
"अब तो मशीनों और कंप्यूटर ने सारे काम आसान कर दिए। बहुतेरे काम तो कई की जगह एक ही आदमी कर लेता है। बहुत समय बच जाता है।"
नवीन ने तंज कसा।
"फिर भी लोगों के पास समय नहीं। है न।"
बारू राम ने भी पलटवार किया।
"आप जानते हो कि आपके जमाने से काम कितने आसान हो गए हैं।"
"हाँ, हो गए आसान। पर, जीना तो उतना ही मुश्किल हो लिया।"
"तरक्की का सफ़र आगे बढ़ते रहना ही ठीक है। इसमें ही सबका भला है।"
"पर यह भला तब ही हो जब, तरक्की के चक्कर में बुरे काम का सहारा न लिया जाए। कुदरत का भी ख़याल रखा जाए। और..."
"और क्या बाबा?"
"हर मानस हर दूसरे जीव को अपने जैसा समझे।"
"बात तो आपकी सही है बाबा। पर...."
अब नवीन बात पर अटक गया।
"बात पूरी करो बेटा।"
"इस मामले में जमाना नहीं बदला बाबा।"
"मतलब?"
उसकी नज़र नवीन पर गड़ गयी।
"बाबा! आज भी कुछ लोग समाज के झंडा-बरदार हैं। तकनीक नई हो गयी पर ख़याल वे हीं पुराने।"
"साफ़-साफ़ कहो।"
"जाति-मजहब के नाम पर दंगे आज भी हो जाते हैं।"
बारू राम अब चुप था। बस चली जा रही थी।
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