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सधन्यबाद! आदरणीय मोहन सरजी।
इस लघुकथा के माध्यम से चिरपरिचित कथानक को आधार बनाकर विषय को परिभाषित करने का अच्छा प्रयास किया गया है। पात्रों की भाषा से उनके परिवेश का बाखूबी चित्रण किया गया है।
/कर्ज होवे ही जोंक की तरह,जान लेके ही पिण्ड छोङे।'/ यह वाक्य यदि यूँ कहा गया होता- कर्जा तो जोंक की जैसा ही होवे है जो खून की आखिरी बूँद भी निचोड़ लेवे है- तो शायद कथा का मर्म अधिक तीक्ष्णता से उभरता।
लघुकथा का शीर्षक प्रदत्त विषय को ही बनाया गया है जिससे बचना चाहिए था। परंतु लघुकथा के तेवर के देखते हुए शीर्षक में निहित ध्वन्यात्मकता पाठकीय संवेदना को झंकृत करने में पूर्णतय: सफल रही है।
संकट की इस घड़ी में आयोजन में आपकी सहभागिता हौसला प्रदान करती है इस महामारी से लड़ने और उस पर विजय करने करने के लिए। मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ निवेदित हैं।
सधन्यबाद, रवि सरजी मार्गदर्शन करने लिए।
आदरणीया बबिता जी सादर नमन। फीता काट प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।
सधन्यबाद! आदरणीय राणा सरजी।
आदरणीया बबिता जी, कथानक का चयन बढ़िया हुआ है, शिल्प को तनिक बाँध लघुकथा की खूबसूरती बढ़ाई सकती है, अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता, न कि झोकता।
कुल मिलाकर लघुकथा अच्छी लगी, बधाई स्वीकार करें।
सधन्यबाद! आदरणीय गणेश सरजी मार्गदर्शन करने के लिए।
बहुत मर्मस्पर्शी लघुकथा कही है बबिता गुप्ता जी. रचना प्रदत्त विषयानुरूप भी है जिस हेतु मेरी दिली बधाई प्रस्तुत हैI
//अकेला चना क्या भाड़ झोंकेगा।// पर भाई गणेश बाग़ी जी की टिप्पणी का संज्ञान लेंl
एक सलाह:
//विचारा लख्खाराम को मौत के मुंह में उसकी बीमारी से ज्यादा कर्ज के बोझ की चिंता ने ढकेल दिया।'//
//बेचारे लक्खाराम को बीमारी से ज्यादा क़र्ज़ के बोझ की चिंता ने मौत के मुँह में ढकेल दिया।//
हार्दिक बधाई आदरणीय बबिता गुप्ता जी। आपने एक बेहतरीन लघुकथा से ओ बी ओ लघुकथा गोष्ठी -६० का शुभारंभ किया।कर्ज एक ऐसा विषैला कीटाणु है जो कर्ज लेने वाले को धीरे धीरे मौत की ओर ले जाता है।
सधन्यबाद! आदरणीय तेजवीर सरजी मार्गदर्शन करने के लिए ।
सधन्यबाद! आदरणीय योगराज सरजी मार्गदर्शन करने के लिए ।
संकट की इस विषम परिस्थिति में एक मर्मस्पर्शी लघुकथा से इस गोष्ठी आग़ाज़ करने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीया बबिता जी। कृपया गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें। सादर।
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