For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्या बताएँ तुम्हें किस बात पे रोना आया (ग़ज़ल - शाहिद फ़िरोज़पुरी)

2122 / 1122 / 1122 / 22
उस अधूरी सी मुलाक़ात पे रोना आया
जो न कह पाए हर उस बात पे रोना आया [1]

दूरियों के थे जो क़ुर्बत के भी हो सकते थे
ऐसे खोए हुए लम्हात पे रोना आया [2]

दे गए जाते हुए वो जो ख़ज़ाना ग़म का
जाने क्यूँ उस हसीं सौग़ात पे रोना आया [3]

रो लिए उनके जवाबात पे हम जी भर के
फिर हमें अपने सवालात पे रोना आया [4]

आँख भर आई अचानक यूँ ही बैठे बैठे
क्या बताएँ तुम्हें किस बात पे रोना आया [5]

दिल तो कम्बख़्त भरा बैठा था कब से 'शाहिद'
कुछ नहीं और तो बरसात पे रोना आया [6]
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
-----------------------------------------------------
साहिर लुधियानवी साहिब की मशहूर ग़ज़ल:
"कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया"
की ज़मीन में एक विनम्र प्रयास...

Views: 910

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on July 30, 2020 at 11:27am

आद0 रवि भसीन जी सादर अभिवादन। क्या खूब ग़ज़ल कही आपने। पढ़कर मज़ा आ गया। वाह भाई वाह। बहुत खूब। शैर दर शैर बधाई और मुबारकबाद कुबूल करें।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 27, 2020 at 3:57pm

आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, नवाज़िश, करम, मिह्रबानी के लिये हार्दिक आभार जनाब!
 

Comment by सालिक गणवीर on July 27, 2020 at 3:38pm

आदरणीय भसीन साहब

आदाब

एक बहुत ही उम्दा ग़ज़ल के लिए दाद और मुबारकबाद स्वीकारें. मक़ता तो बहुत खूबसूरत बन पड़ा है

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 27, 2020 at 1:26pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' भाई, सादर अभिवादन। आपकी उत्साह-वर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 27, 2020 at 12:48pm

आ. भाई रवि भसीन जी, सादर अभिवादन ।अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 26, 2020 at 9:46pm

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब, आपकी ज़र्रा-नवाज़ी और सुझाव के लिए तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ। जनाब छटे शेर में ये कहने का प्रयास किया है कि "जब और कोई कारण नहीं मिला तो बरसात देख कर ही आँखें छलक पड़ीं, क्यूँकि दिल कई ग़मों से भरा हुआ था"। बारिश भी कई बार एक अजीब से कैफ़ियत तारी कर के बहुत भावुक कर देती है, हुज़ूर।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 26, 2020 at 9:37pm

आदरणीय Madhu Passi 'महक' साहिबा, आपकी नवाज़िश के लिए हार्दिक आभार।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 26, 2020 at 9:25pm

मुहतरम जनाब रवि भसीन 'शाहिद' साहिब आदाब, शानदार ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।

//कुछ नहीं और तो बरसात पे रोना आया [6] "कुछ नहीं और तो"  ज़रा  "बरसात पे रोना आया" से मेल नहीं खा रहा है:

अगर जँचे तो मिसरा यूँ कर के देख सकते हैं : "अब्र जो बरसे तो बरसात पे रोना आयाा"  सादर ।

Comment by Madhu Passi 'महक' on July 26, 2020 at 9:20pm
आदरणीय रवि भसीन ' शाहिद' जी बहुत ही उम्दा ग़ज़ल।
रो लिए उनके जवाबात पे हम जी भर के
फिर हमें अपने सवालात पे रोना आया
बहुत खूब!
Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 26, 2020 at 7:37pm

आदरणीय TEJ VEER SINGH जी, ग़ज़ल तक आने के लिए और हौसला बढ़ाने के लिए आपका तह-ए-दिल से आभारी हूँ जनाब!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
16 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service