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बहुत खूबसूरत और प्रेरणादायक रचना प्रदत्त विषय पर, उम्मीद कभी भी नहीं हारनी चाहिए. बहुत बहुत बधाई इस बढ़िया लघुकथा के लिए
बहुत-बहुत आभार, सरजी!
आदरणीया बबिता जी , उम्मीद के आदमी की अंदर की शकित को जगाना अति जरूरी है , जिस से उम्मीद बनी रहती है , इस लिए साथ के उन लोगों को खुद ही कोशिश करनी होगी , अपने लिए . बहुत सुंदर लघुकथा के लिए बधाई हो
लघुकथा बहुत ही अच्छी हुई है बबिता गुप्ता जी, बधाई प्रेषित है. टंकण की त्रुटियाँ बदमजगी पैदा कर रही थीं, पोस्ट करने से पूर्व एक-दो दफा चेक कर लिया करें.
उम्मीदें जीवन का पर्याय हैं,यह सर्वविदित है।कुर्सी की अपनी उम्मीदें है कि कोई काबिल व्यक्ति उसपर आसीन हो,जो उसकी मर्यादा को बरकरार भी रखे,और उससे (कुर्सी से) जुड़ी जवाबदेही का निर्वहन भी करे।उसपर बैठने वाले आदमी की मज़बूरी है कि वह उसपर बरकरार रहने की जुगत भी भिड़ाता रहे,कुछ करता भी रहे जो उसके कर्तव्यों का बोध सूचक हो। फिर कुर्सी पर किसीको कोई बिठा ता है।तो बिठानेवाले को आंखों में बिठाना कुर्सी पर बैठनेवाले की जरूरत में शुमार हो जाता है,जिसे वह चाहकर भी भुला नहीं सकता।इन्हीं बैठने,बिठाने,बैठे रहने की क्रियाओं के बीच उम्मीद भी जिंदा रहती है। प्रतीकात्मकता के धागों में पिरोई संदेशपरक लघुकथा हेतु बधाई भाई उस्मानी जी।
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी। आपकी चिर परिचित लेखन शैली में एक और बेहतरीन लघुकथा ।आजकल मेरा इंटरनेट और लैपटॉप दोनों ही तंग कर रहे हैं।
आदाब। सभी के साथ एक सी समस्याएं हैं। फ़िर भी आप रचना पर व गोष्ठी में इतना समय दे पा रहे हैं, यह हमारा सौभाग्य है। बहुत बहुत शुक्रिया जनाब तेजवीर सिंह साहिब।
सादर नमस्कार। मेरी प्रविष्टि पर भी इतना समय देकर अपने विचार विस्तार से साझा करते हुए मुझे यूँ प्रोत्साहित करने हेतु हार्दिक धन्यवाद जनाब मनन कुमार सिंह। ऑनलाइन क्लास तथा पारिवारिक व्यस्तता के कारण यहाँ समय नहीं दे सका दोपहर तक।
आदरणीय उस्मानी जी
व्यवस्था और विशेषकर वर्तमान शासन पर तंज करती आपकी चिरपरिचित शैली में एक और रचना। चुस्त संवाद लघुकथा को पठनीय और जीवंत बना रहे हैं। हार्दिक बधाई। पर अंत की पंक्ति में उम्मीदों की बात विषय को देखकर जोड़ी गई लगती है ।
आदाब। मंच पर व गोष्ठी में सार्थक सक्रियता के साथ मेरी इस रचना पर भी इतना समय देकर अपनी राय साझा करने और अंतिम पंक्ति पर ध्यान आकृष्ट कराने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया मुहतरमा प्रतिभा पाण्डेय साहिबा। सही कहा आपने। अंतिम पंक्ति से ऐसा आभास पाठक को यहाँ हो सकता है। अन्यत्र नहीं, मेरे विचार से।
इशारों इशारों में और वर्तमान राजनीति पर बढ़िया तंज करती बढ़िया रचना लिखी है आपने आ शेख शहजाद उस्मानी साहब. बस जनता को उम्मीद का दामन दिखलाकर अपना उल्लू सीधा करना ही राजनीति का ध्येय रह गया है. बहुत बहुत बधाई इस विचारोत्तेजक रचना के लिए
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