For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-157

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 157 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |

इस बार का मिसरा जनाब 'अदीम हाशमी' साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है ।

"सारी दुनिया में मगर कोई तेरे जैसा न था"
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122   2122   2122   212

बह्र-ए-रमल मुसम्मन महज़ूफ़

रदीफ़     : न था

काफिया : अलिफ़ का (आ स्वर) अच्छा,ऐसा,मेरा,साया,देखा आदि...

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 28 जुलाई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 29 जुलाई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 28 जुलाई दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

जनाब समर कबीर 

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 2481

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion


एक भी बादल कभी जिस गाँव पर छाया न था।
शेष पर कोई भी  दामन  जो  वहाँ  भीगा न था।१।
*
एक हम ही थे कि रूठे और मुड़ देखा न था
गाँव की पगडंडियों ने क्यों कहें रोका न था।२।
*
थी अकड़ देगा बहुत बढ़ लाड़ हमको दौड़कर
पर नगर छलिया ही होगा ये कभी सोचा न था।३।
*
हाथ रखती माँ जो अपना हर सफर के बाद यूँ
पाँवों  में  छाला  हमारे  एक  भी  रहता  न था।४।
*
सादगी संतोष का सुख था वहाँ पर इसलिए
जो नगर की जेब तक में गाँव घर ताला न था।५।
*
दूर तक  पानी न  था  माँ  भारती  के  गाँव में
हाँ नगर सा वो कभी इतना मगर प्यासा न था।६।
*
टूटना था दिल हमारा  टूटने पर क्या कहें
कहने को बातें रहीं ऐसा न था वैसा न था।७।
*
हर गली हर गाँव में क्यों बात करता फिर कोई
कौन सा आरोप उस  पर  बोलिए चस्पा न था।८।
*
चुभ गयी थी फाँस कोई दिल में यारो इस तरह
मौन का पाषाण  उस के  होंठो  से हटता न था।९।*
*
सदियों सावन ने भी प्यासा रख दिया था यूँ जिसे
जल समन्दर का उसी को यार कुछ खारा न था।१०।
*
गिरह--
गाँव तुझको छोड़ भटके इस नगर से उस नगर
"सारी दुनिया  में  मगर  कोई   तेरे  जैसा न था।।"
*
मौलिक/अप्रकाशित

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, तरही मिसरे पर सुंदर सृजन हुआ है, हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

मतले के सानी मिसरे का भाव स्पष्ट नहीं है। 

*

'हाथ रखती माँ जो अपना हर सफर के बाद यूँ'... इस मिसरे को यूँ कहें तो? 

हर सफ़र के बाद सर पर हाथ जो रखती थी माँ

पाँवों में छाला हमारे एक भी रहता न था।४।

*

जो नगर की जेब तक में गाँव घर ताला न था।५।... इस मिसरे के शिल्प पर नज़र ए सानी फ़रमाएं।

*

टूटना था दिल हमारा टूटने पर क्या कहें

कहने को बातें रहीं ऐसा न था वैसा न था।७।....वाह, बहुत ख़ूब।

*

हर गली हर गाँव में क्यों बात करता फिर कोई

कौन सा आरोप उस पर बोलिए चस्पा न था।८।...अच्छा है।

*

चुभ गयी थी फाँस कोई दिल में यारो इस तरह

मौन का पाषाण उस के होंठो से हटता न था।९।*.... बहुत ख़ूब।

*

सदियों सावन ने भी प्यासा रख दिया था यूँ उसे

जल समन्दर का उसी को यार कुछ खारा न था।१०।.... इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं - 

'वास्ते उसके समन्दर का भी जल खारा न था'

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह व सुझाव के लिए आभार।
मतले के सानी और पाँचवें शेर में बदलाव किया है देखिएगा। सादर...
//शेष पर कोई न दामन जो वहाँ भीगा न था।१।//

सादगी संतोष का सुख गाँव में था इसलिए
जो नगर की जेब तक में दिख रहा ताला न था।५।
//

...बदलाव किया है देखिएगा। सादर...

//शेष पर कोई न दामन जो वहाँ भीगा न था।१।//

अब वहीं दामन न था जो अश्क में भीगा न था।१।... कुछ यूँ कर सकते हैं।

सादगी संतोष का सुख गाँव में था इसलिए

जो नगर की जेब तक में दिख रहा ताला न था।५।//... 'नगर की जेब' ?? 

जी, आभार..

आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार

बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार कीजिये

मतले पर अमीर जी से सहमत हूँ, उनकी इस्लाह क़ाबिले ग़ौर है

चस्पा, मौन और गिरह बहुत पसंद आए

सादर

आ. रिचा जी, सादर आभार।

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

जनाब अमीर जी की इस्लाह पर ध्यान दें ।

'कौन सा आरोप उस  पर  बोलिए चस्पा न था'

इस मिसरे का क़ाफ़िया ठीक नहीं है सहीह शब्द "चस्पां' है ।

आदरणीय कबीर सर जी

जानकारी के लिए धन्यवाद आपका

सादर

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह व मार्गदर्शन के लिए आभार। इस काफिये को बदलने का प्रयास करता हूँ।

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार जी। 

अगर यह मिसरा यूँ पढ़ा जाए तो क्या ठीक होगा?

"कौन सा आरोप उसपर बोलिए ठहरा न था" 

"आरोप" के लिए ठहरा शब्द उचित नहीं ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
6 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service