For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"गरीबी में आटा गीला"

गरीबी में हुआ गीला आटा,
फिर से लगा ज़ोरदार चांटा !
रोटी छीन गयी क्षण भर में ,
खड़ा हो गया गरीबी के रण में !!

क्या रोटी हो गयी अनमोल ,
इश्वर अब तो कोई पथ खोल !
मै अधीर ,व्यग्र ,व्याकुल  मन से ,
कब दूर होगी गरीबी इस जीवन  से !
इश्वर कब दूर होगा दुःख दाह,
अब तो दिखा दो कोई राह !!!!

ईश्वर !

गरीबी का करो अभिषेक ,
थोड़ा लगाओ अपना विवेक !
यदि इमानदारी की रोटी खाओगे ,
सदैव गीला आटा पाओगे !

हटाओ ये गरीब की ओट,
तू भी बेईमानी में लोट !
इश्वर ने फिर मुझको डाटा,
क्यूँ तूने अपना गम बाटा!!

राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 541

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 4, 2013 at 8:32am

गरीबी के रोने पर व्यंग करती सुन्दर रचना बधाई स्वीकारें राम शिरोमणि जी.

Comment by ram shiromani pathak on February 3, 2013 at 2:50pm

मैंने यह मंच इसी लिए ज्वाइन किया है की आप जैसे गुरुजनों का सानिध्य मिले और मै अपनी गलतियों का सुधार कर सकू !! आप  लोगो का स्नेह मिल रहा है हार्दिक आभार आप सब का !!सौरभ सर आपका मै हार्दिक आभार मानता हूँ !जबसे रचनाये मै पोस्ट कर रहा हु आपका बराबर सुझाव मिल रहा है !!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 3, 2013 at 11:56am
राम शिरोमणि जी, आपके प्रयास रत रहने के लिए बधाई 
आदरणीय सौरभ जी की सलाह पर गौर करे 
छोडो लगाओ अपना विवेक - इसके क्या अर्थ है  
दोनों शब्द एक साथ विपरीत बात के लिए, वह भी बगैर कोमा आदि से प्रथक किये 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on February 3, 2013 at 11:45am

वाह !!! सामयिक परिदृश्यों को शब्दों में सुंदरता से पिरोया है, बधाई...............


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 3, 2013 at 11:41am

गरीबी के मुद्दे पर अच्छा कटाक्ष किया है अंतिम पंक्तिया बहुत अच्छी लगी जो गम देता है वो किसी से बांटने भी नहीं देता ,वाह सही सोच बाकी आदरणीय सौरभ जी ने कह दिया टंकण त्रुटियों पर ध्यान दें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 3, 2013 at 7:23am

भाई राम शिरोमणिजी, मंच पर आपकी सदस्यता आपके रचनाकर्म के विकास में उत्प्रेरक का काम करे. आप अन्य रचनाकारों की रचनाएँ अवश्य पढ़ते होंगे,  उन पर आपनी समझ के अनुसार कमसे कम एक औसत पराग्राफ की टिप्पणियाँ दिया करें. इस आदत से देखियेगा, बहुत कुछ सधने लगेगा. अक्षरी/हिज्जे दोष देखियेगा, वह भी दूर होगा.

अपनी प्रस्तुत रचना के निम्नलिखित वाक्यांश को देखिये =

इश्वर अब तो कोई पथ खोल !
मै अधीर ,ब्याग्र ,ब्याकुल मन से ,  

देखिये, रेखांकित शब्दों की अक्षरियाँ/हिज्जे अशुद्ध हैं.  और, कब दूर होगी गरीबी इस तन से ... इसका क्या मायना भाई ? तन से गरीबी ?

भाई इस तरह के बिम्ब को किसी और रूप में प्रयोग किया जाता है.

शुभेच्छाएँ

Comment by नादिर ख़ान on February 2, 2013 at 11:38pm

मुनव्वर राणा जी का शेर याद आ रहा है ....

सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर

 मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते 

सच ये है की  मेहनत और ईमाननदारी की रोटी में ही आफ़ियत है .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई। गौरैया के झुंड का, सुंदर सा संसार…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post यह धर्म युद्ध है
"आदरणीय अमन सिन्हा जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर"
7 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service