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"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-23 (Now closed with 762 replies)

जय हिंद साथियो !

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-23 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है |  प्रस्तुत चित्र कुम्हार की घूमती हुई चाक पर कच्ची मिट्टी को संवारते हुए दो हाथ दिखाई दे रहे हैं |  आज के परिवेश में घूमती हुई समय धुरी पर इस समाज को ऐसे ही हाथों की आवश्यकता है जो कि उसे उचित दिशा व सही आकार दे सकें | जिस प्रकार से तेज आंच में तपकर ये बर्तन समाज के लिए उपयोगी हो जाते हैं ठीक उसी प्रकार से हम सब भी निःस्वार्थ कर्म और साधना की तेज आंच में तपकर अपने देश व समाज के लिए अत्यंत उपयोगी हो सकते हैं |  अब आप सभी को इसका काव्यात्मक मर्म चित्रित करना है !

*चित्र गूगल से साभार

अनगढ़ मिट्टी चाक पर, करते हाथ कमाल.

समय धुरी पर हाथ दो, सबको रहे संभाल..

कच्ची मिट्टी ही सदा, लेती है आकार.

फन में माहिर हाथ ही, करते बेड़ा पार..

तो आइये, उठा लें अपनी-अपनी लेखनी, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण, और हाँ.. आपको पुनः स्मरण करा दें कि ओ बी ओ प्रबंधन द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि यह छंदोत्सव सिर्फ भारतीय छंदों पर ही आधारित होगा, कृपया इस छंदोत्सव में दी गयी छंदबद्ध प्रविष्टियों से पूर्व सम्बंधित छंद के नाम व प्रकार का उल्लेख अवश्य करें | ऐसा न होने की दशा में वह प्रविष्टि ओबीओ प्रबंधन द्वारा अस्वीकार की जा सकती है |


नोट :-
(1) 19 फरवरी तक तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, 20 फारवरी से 22  फारवरी तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट हेतु खुला रहेगा |

सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना मात्र भारतीय छंदों की किसी भी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओबीओ के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक सनातनी छंद ही स्वीकार किये जायेगें | 

विशेष :-यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें| 

अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव"  अंक-23, दिनांक 20  फरवरी से 22 फरवरी  की मध्य रात्रि 12 बजे तक तीन दिनों तक चलेगा  जिसके अंतर्गत इस आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन पोस्ट अर्थात प्रति दिन एक पोस्ट दी जा सकेंगी, नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |


मंच संचालक
श्री अम्बरीष श्रीवास्तव

(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम 

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Replies to This Discussion

आदरणीय विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी सादर, दोहावली सराहना पर आपका हार्दिक आभार, अवश्य ही आपके अवगत कराने से मुझे कुछ कमियाँ नजर आ रही है कुछ और अधिक सहयोग करते तो और भी प्रसन्नता होती.सादर.

सुन्दर दोहों में किया, चित्र स्वरूप बखान,

सब दोहे अनमोल हैं, बाँटें सब सद्ज्ञान ....

हार्दिक बधाई आदरणीय अशोक जी चित्र की आत्मा से न्याय करती इस सुन्दर दोहावली के लिए.

आदरेया डॉ. प्राची जी सादर,

                           छंद सराहे आपने, लौटे तन मन प्राण।

                           कथ्य भी सुदृढ़ करूँ,हरदम रक्खा ध्यान।।

                           बहुत बहुत आभार.

आ. रक्ताले जी सादर, अति सुन्दर व सटीक भाव वाले दोहे हैं... सभी भाव एक दम पुष्ट एवं सटीक सम्प्रेषण व अर्थ-प्रतीति युक्त हैं ...बधाई...

आदरणीय सत्यनारायण सिंह जी सादर आपकी इतनी सुन्दर प्रतिक्रया लेखन को सार्थक कर रही है. आपका हार्दिक आभार.

वाह ! भाई रक्ताले जी बहुत सुन्दर रचे दोहों से आपने महोत्सव की शुरुआत की है 

हार्दिक बधाई स्वीकारे 

 

आदरणीय लड़ीवाला साहब सादर प्रणाम,महोत्सव अंक-२३ में प्रथम प्रस्तुति का सौभाग्य मन मुग्ध करता है. दोहों पर सराहना के लिए हार्दिक आभार. स्नेह बनाये रखें.सादर.

आदरणीय अशोक सर जी सादर प्रणाम 

बहुत ही सुन्दर शुरुआत हुई है आपके इन दोहों से बहुत बहुत बधाई आपको इन दोहों के लिए जय हो 
माटी  है तन ज्ञान बिन, रचते छंद अशोक
समय धुरी पे गढ़ रहे, सबके हरते शोक   

आदरणीय संदीप जी सादर सुन्दर प्रतिक्रया के लिए हार्दिक आभार.

मृदा ज्ञान अरु शोध पर, संकल्पित विज्ञान।

समय धुरी के चक्र पर, मै अदना इंसान।।

खुद को अदना कह रहे, नहीं एक अभिमान

अग्रज हैं मेरे भले , हैं सच्चे इंसान

प्रेम-प्रेम की डोर है, छोर-छोर विस्तार।

ठोर-ठोर पर साथ दे, भ्रात-भ्रात सा प्यार।।

फिरता जाता चाक ये, मिट्टी ले आकार |

कैसी कितनी शक्ल में, खडा हुआ संसार | |

समय चक्र और देह का,खींचा सुंदर चित्र

रस पावनता घोलते  , उज्जैनी के मित्र ||

समयचक्र सम चाक ये, इश्वर सम कुम्हार |

पंचतत्व निर्मित किये, बना जगत आधार | |

ईश्वर ने हमको दिया   ,    पंचतत्व वरदान

शपथ आज लें हम करें, इन सबका सम्मान ||

माटी मोल न कह कभी, माटी है अनमोल |

बिना मोल यह राज भी, पहिया देता खोल | |

क्षणभंगुर संसार में   ,    माटी का यह घोल

जितने दिन तक साथ है, मान इसे अनमोल ||

माटी संचित सम्पदा, या कर्मो का जोड़ |

प्रकृति चकरा घूमता, कर कर्मो का मोड़ | |

संचय कीजे प्रेम का ,  भौतिक संचय छोड़

तन माटी का एक दिन, चल देगा मुँह मोड़ ||

काठी की फटकार से, खुलती सबकी आँख |

चाहे हो चिकना घडा, छुपता नहीं सुराख | |

"रक्ताले जी" आ गये  ,  दोहे सभी पसंद

जी भर कर हमने चखा, दर्शन का मकरंद ||

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