परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 32 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का तरही मिसरा जनाब ज़िगर मुरादाबादी की गज़ल से लिया गया है |
"अब यहाँ आराम ही आराम है "
2122 2122 212
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
अवधि :- 26 फरवरी दिन मंगलवार से दिनांक 28 फरवरी दिन गुरूवार
अति आवश्यक सूचना :-
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य, प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन
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प्राची जी!
आपको रचना रुची तो मेरा कवि-कर्म सफल हुआ.
मुक्तिका हिंदी की एक काव्य-विधा है. इसका शिल्प ग़ज़ल के आसपास का है. हिंदी में बहर नहीं होती. छंद बंधन या लय खंड हिन्दी की प्रकृति के अनुरूप होता है. इसमें मात्र गिराने या बढ़ाने की छूट नहीं होती. तुकांत-पदांत ग़ज़ल के लगभग समान होते हैं. नीरज जी, विराट जी आदि ज्येष्ठ कवियों ने बहुत पहले मुक्तिकाएं रची हैं. यह शब्द मैंने दिया नहीं ग्रहण किया है.
मुक्तिका विधा के बारे में ज्ञान प्रदान कने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय संजीव जी.
सादर
सम्मानीय सलिल जी, भ्रम बढ़ता जा रहा है ...
क्या आप द्वारा प्रस्तुत मुक्तिका "तरही मुशायरा" में तय नियम के अनुरूप है ?
क्योंकि यहाँ तो मात्राओं का क्रम 2122--2122--212 तय कर रखा गया है । यदि मात्रा विन्यास तय नियमों के अनुकूल नहीं तो फिर मुक्तिका का तरही मुशायरा में क्या काम ??
//यदि मात्रा विन्यास तय नियमों के अनुकूल नहीं तो फिर मुक्तिका का तरही मुशायरा में क्या काम ??//
भाई संजय जी .. आपका प्रश्न तार्किक भी है और हमें राह दिखाता हुआ भी. एक जागरुक पाठक का धर्म निभाने के लिए हार्दिक धन्यवाद.. .. विश्वास है, आपका सहयोग सुलभ रहेगा.
शुभ-शुभ
नहीं दाना मयस्सर नेता कहे
कर लिया आयात अब बादाम है.................नेता इसी का नाम है.
चाहता है हर बशर सीता मिले.
बना खुद रावण, न बनता राम है..............बिलकुल सही.
परम आदरणीय सलिल जी सादर बधाई स्वीकारें..
आदरणीय सलिल जी शानदार मुक्तिका लिखी है बहुत बहुत बधाई
कहन पर बधाई आदरणीय ।
वाह वा एक और शानदार मुक्तिता
भावों का सुन्दर और मुक्त प्रवाह भाव विभोर कर गया
ह्रदय तल से बधाई स्वीकार करें
ये सियासत तो बराए नाम है !!
शायरों को शायरी से काम है !!........ खूब कहा लेकिन शाइर तो नाम के लिए भी सियासत नही करते ! :-))
उसके बिन मेरा नही कोई वजूद !!
जिंदगी मेरी उसी के नाम है !! ........... बहुत बढ़िया ! वाह ! बढ़िया गज़ल हुई है !
भाई अरुण श्री, कभी-कभी मन झल्लाता है.
किसी शायर ही नहीं अक्सर हमने देखा है कि एक का दिल जब अपनी बोल लेता है तो झट उसके बाद उसका दिमाग़ हावी हुआ सारी उदार भावनाओं पर पानी फेर देता है. कई-कई शायर भी दिल से ही कहते हैं, सही है, लेकिन दिमाग़ से बरतते हैं. ऐसा खूब अनुभव है. दिल से कहे के बाद शायर के दिमाग़ द्वारा औथोरिटेटिव पोजीशन ले लेने से किसी पाठक/श्रोता का उपट कर वाह-वाह करना भी उसे स्वयं को ही खलने लगता है. हमने भी एक बार इसी पर कहा था --
’न मद है न मत्सर’ कहें जोर से पर
सुखन के अहाते मठाधीश पलते.. .
शायद इन्हीं दो भावों में तालमेल बैठाना चाह रहे हों, सलिम रज़ा भाई.
सलीम रज़ा भाई की ग़ज़ल में बाद में आता हूँ.
सलीम रज़ा भाई, आपकी ग़ज़ल से उम्मीदें ज्यादा थीं कहूँ तो अन्यथा न लीजियेगा. आपने इस ग़ज़ल के ऊपर रोमन लिपि में भी बहुत कुछ ऐसा लिख रखा है. सो अपेक्षा और बढ़ गयी. शिल्प और अरुज़ की बात हो तो आपकी ग़ज़ल एकदम से शुद्ध है.
बहरहाल, इस शेर पर दिल से बधाई लीजिये -
तुमही सांसोंमें तुम्ही धड़कन में हो !!
ज़िन्दगी मेरी तुम्हारे नाम है !!
शुभेच्छाएँ
गजल के पहले रोमन में कही गयी हजल भी खूब रही...वो भी बडे़ और छोटे में...
वाह क्या बात है...
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