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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" - अंक 32 (Now Closed with 777 Replies)

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 32 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का तरही मिसरा जनाब ज़िगर मुरादाबादी की गज़ल से लिया गया है | 

"अब यहाँ आराम ही आराम है "

    2122      2122      212 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन 

(बह्र: रमल मुसम्मन महजूफ)
 
रदीफ़ :- है 
काफिया :- +आम (आराम, ईनाम, अंजाम, जाम, शाम, नाम, बेकाम आदि)

अवधि :-    26 फरवरी दिन मंगलवार से दिनांक 28 फरवरी दिन गुरूवार  

अति आवश्यक सूचना :-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के इस अंक से प्रति सदस्य अधिकतम दो गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं |
  • एक दिन में केवल एक ही ग़ज़ल प्रस्तुत करें
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिएँ.
  • तरही मिसरा मतले में इस्तेमाल न करें
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी रचनाएँ लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.  
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें.
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये  जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी. . 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 26 फरवरी दिन मंगलवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें | 



मंच संचालक 
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य, प्रबंधन समूह) 
ओपन बुक्स ऑनलाइन

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Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

दाम ईंधन का बढ़े मेरी बला,
लिफ्ट ले चलना हमारा काम है ।

ययह शे'र तो सनद के दरवाजे पर लगा दिया जाए और सभी सांसदों के वाहन छीन लिए जाएं तब आये मजा

आभार आदरणीय ।

किचकिचाती थी गई वो मायके,
अब यहाँ आराम ही आराम है ।.......बेहतरीन........

खुश न हो बागी पिया लौटूंगी कल

यह तो केवल मंथली एक्जाम है.....

हा हा हा हा , वाह आदरणीय अरुण जी , क्या दहला मारा है, बढ़िया , सराहना हेतु आभार ।

गजल एक प्रयास
*****************************
जिसके सिर जितना बड़ा इल्जाम है।
वो यहां उतना ही आला नाम है॥


कर सको तो जुल्म मेरे तय करो।
लूट हत्या जालसाजी काम है॥

जानते हो देश की पहचान क्या?
भेड़ राजा शेर अब गुमनाम है॥

है वही ज्ञानी गुणी धीवान भी।
पास जिसके बाहुबल छल दाम है॥

तय करे जो देश की तकदीर को।
बन गया देखो विधाता आम है॥

मुफलिसी से तंग आकर मर गया।
अब यहां आराम ही आराम है॥

वाह क्या भागती हुयी ग़ज़ल है प्रसाद भाई (आपका नाम टाइप करने में बहुत मेहनत है भाई ) एक सिरे से रपटते हुए कब दूसरे सिरे आ लगे पता
जिसके सिर जितना बड़ा इल्जाम है।
वो यहां उतना ही आला नाम है॥......बिलकुल घोटाले ही घोटाले .....


कर सको तो जुल्म मेरे तय करो।
लूट हत्या जालसाजी काम है॥...वाह क्या बात है 


जानते हो देश की पहचान क्या?
भेड़ राजा शेर अब गुमनाम है॥.........शेर तो वैसे ही लुप्तप्राय  हो रहे हैं 


है वही ज्ञानी गुणी धीवान भी।
पास जिसके बाहुबल छल दाम है॥............बिलकुल सही बात 

मुफलिसी से तंग आकर मर गया।

अब यहां आराम ही आराम है ही नहीं चला ..

.उफ्फ्फ ये बड़ी विकट बात कह गए आप ......पर एक बहुत बड़ी त्रासदी हमारे देश की  कि जो  किसान सबके पेट भरने के लिए दिन-रात एक के देते हैं वही भूख से तड़प कर जान देने पर मजबूर हो जाते हैं 

आदरणीया सीमा दीदी! आपने मुझ नाचीज की रचना पर अपना बहुमूल्य समय दिया और विस्तृत समीक्षा किया।इसके लिये अनुज आभारी हूं।लोगों की अक्सर यही शिकायत होती है कि मेरा नाम जटिल है,अब मैं अपने नाम को सरल करता हूं।घर पर लोग मुझे विनय कहते हैं,कागजी नाम के साथ घरेलू नाम भी जोड़ देता हूं।
पुनश्च आपका बहुत बहुत आभार

वाह वाह बहुत बढ़िया सामयिक ग़ज़ल लिखी है विंध्येश्वरि जी देश के आज के हालात का अच्छा चित्र खींचा है मक़ता अर्थात अन्तिम शेर बहुत ही उत्तम है बहुत अच्छी गिरह लगाई है दाद कबूल कीजिये 

आदरणीया राजेश कुमारी जी!पंक्तियों की सराहना के लिये हार्दिक आभार

जानते हो देश की पहचान क्या?
भेड़ राजा शेर अब गुमनाम है॥..umda

तय करे जो देश की तकदीर को।
बन गया देखो विधाता आम है॥..wah!

विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी ji

आदरणीय अविनाश बागड़े सर जी!पंक्तियों की सराहना के लिये हार्दिक आभार

आदरणीय विध्येश्वरी जी सादर, सुन्दर गजल दिली दाद कुबुलें.

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"सुविचारित सुंदर आलेख "
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सदस्य टीम प्रबंधन
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"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
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"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
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