आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर वन्दे.
ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 29 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. पिछले 28 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने 28 विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है.
फागुन का महीना बसंत ऋतु के रंग-वैविध्य से अनुप्राणित हुआ नयनाभिराम रंगीनियों से संतृप्त होता है. तभी तो चित्त की उन्मुक्तता से भावोन्माद की पिनक-आवृति खेलने क्या लगती है, सारा वातावरण ही मानों मताया हुआ प्रक्रुति के विविध रंगों में नहा उठता है ! लोहित टेसू के वाचाल रंगों, पीत सरसों के मुखर रंगों, निरभ्र नील गगन के उद्दात रंगों से प्रमुग्ध धरा नव कोंपलों की अनिर्वचनीय हरीतिमा से स्वयं को सजाती-सँवारती हुई ऊषा की केसरिया संभावना तथा निशा की चटख उत्फुल्लता से आकंठ भरी सहसा सरस हो उठती है.
इस आयोजन के अंतर्गत कोई एक विषय या एक शब्द के ऊपर रचनाकारों को अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करना होती है. ऐसे अद्भुत रंगीन समय में आयोजित हो रहे काव्य-महोत्सव का शीर्षक और क्या हो सकता है.. सिवा रंग होने के !!
इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :
विषय - "रंग"
आयोजन की अवधि- शुक्रवार 08 मार्च 2013 से रविवार 10 मार्च 2013 तक
ऋतुराज की यह रंगों पगी उद्विग्नता है कि यौवन की अपरिमित चंचलता मन्मथ की अनवरत थपकियों से उपजी जामुनी जलन को झेले नहीं झेल पाती.. अह्हाह ! बार-बार झंकृत होती रहती है !... . तभी तो वसुधा के अंगों से धानी चुनर बार-बार ढलकती दिखती है... . तभी तो अरुणाभ अंचल में हरी-हरी पलकें खोल रही वसुधा की कमनीयता अगड़ाइयों पर अँगड़ाइयाँ लेती दुहरी हुई जाती है.. . तभी तो यौवना देह की रक्तिम गदराहट और-और गहराती हुई कमसिन दुधिया-दुधिया महुआ के फूट रहे अंगों की फेनिल सुगंध से आप्लावित हो उठती है... . तभी तो मत्त हुए कृष्ण भ्रमरों को आम्र-मंजरों के रस की ऐसी लत लगी होती है कि वे बौराये-बौराये डोलते फिरते हैं... तभी तो.. तभी तो.. चन्दन-चन्दन अनंग के पनियाये तीक्ष्ण अस्त्र-शस्त्र और-और मारक हुए मुग्धा को विवस्त्र किये जाते हैं !... .
तो आइए मित्रो, उठायें हम अपनी-अपनी कलम और दिये गये विषय को केन्द्रित कर दे डालें अपने भावों को एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति ! बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य-समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित पद्य-रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है. साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका इत्यादि)
अति आवश्यक सूचना : OBO लाइव महा उत्सव अंक- 29 में सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ ही दे सकेंगे. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 8 मार्च -13 दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा )
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.
Tags:
Replies are closed for this discussion.
सीमा मैम , आपके संवेदनशील और सकारात्मक उर्जा से भरे ह्रदय को प्रभावित किया कविता ने तो सचमुच मैं रंग में आ रहा हूँ ! आखिर ये काम आसान तो नही ! :-)))
आपने गोचर अगोचर हर पक्ष को समझा , सराहना की , बहुत ही प्रसन्नता हुई ! सादर !
सीने को किताबों से छुपाए ,
आँखे झुकाए ,
धरती से सम्मान चुनती सांवली लड़की
बेदखल कर दी गई !
अब कविताएँ लिखी जाती हैं -
उसके अंतःवस्त्रों के चटकीले रंग पर ------ बेदखल करने वालो का तो मुहं काला, पर सरस्वती के साधक नहीं हो सकते जो लिखते
है कविताए किसी बाला के अन्तः वस्त्रों के च्कीले रंग पर, हां मंचीय कवियों को
वाह वाही लूटने के यह एक जरिया अवस्य बन गया है |
रचना सशक्त है, बेहद सुन्दर है, सुन्दर शैली है | हार्दिक बधाई श्री अरुन्श्रीवास्ताव् जी
लक्षमण लाडीवाल सर , सच्चाई यही है इस सतही कवियों की संख्या बढती जा रही है ! आपने बिल्कुल ठीक कहा //बेदखल करने वालो का तो मुहं काला// ! बहुत बहुत धन्यवाद अपने चार प्रकट करने के लिए !
अरुण श्री जी खेद है रचना देर से पढ़ रही हूँ आज कल भागते वक्त को बस खींच रही हूँ और टुकड़ा टुकड़ा ओ बि ओ से जुड़ पा रही हूँ बहुत व्यस्त हूँ अभी भी बाहर जाना है आपकी कविता की तारीफ के लिए शब्द खोज रही हूँ मिल ही नहीं रहे निशब्द हूँ बस इतना ही कहूँगी माँ सरस्वती को इसी तरह आशीर्वाद रहे तुम पर और मेरा भी आशीर्वाद
राजेश कुमारी मैम , सबसे पहले वक्त की गति के साथ आप सामंजस्य बना सकें इसके लिए शुभकामनाएँ ! आगे , आपका आशीर्वाद मेरे लिए किसी भी तारीफ से बढ़कर है ! बस वो बना रहे ! सादर !
एक सशक्त रचना .अद्बुत भाव विन्यास से परिपूर्ण.........
लेकिन हैं कुछ रंग
जो आबद्ध नहीं है ,
परिवर्तन की सत्ता से !
रंग-
-कुछ कबीलों के हौसले का ,
उन सोमालियाई बच्चों की तरह
जो आज भी पत्थर उछालते हैं
अमरीकी वायुयानों की ओर !
ज्योतिर्मई पन्त मैम , आपकी सराहना ने मेरा हौसला बढ़ाया ! उपस्थिति के लिए धन्यवाद !
दुनियाँ के विविध रंग
हर क्षणिका में
उभर आये हैं
सवालों की तरह
कुछ तने, कुछ सने
कुछ अनमने
सालों की तरह.........
अति सुंदर अरुण श्री जी........
//मटमैला रंग
मिट्टी से पोती गई दीवार का ,
हार जाता है
चमचमाती हुई टाई से !
खूंटी का अकेलापन गवाही देता है !//
प्रिय अरुण भाई ऐसे विचार कोई अकस्मात नहीं आया करते ,इसके लिए तो मिट्टी के साथ मिट्टी बनना पड़ता है, अनुभव करना पड़ता है, वाह,अभिभूत हूँ ।
//रंग बदल लिया कविताओं ने भी !
सीने को किताबों से छुपाए ,
आँखे झुकाए ,
धरती से सम्मान चुनती सांवली लड़की
बेदखल कर दी गई !
अब कविताएँ लिखी जाती हैं -
उसके अंतःवस्त्रों के चटकीले रंग पर !//
क्या बात है , ऐसे उत्कृष्ट भाव, सच यह रचना अब आपके लिए एक नया स्तर तय कर दी है , बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें ।
मेरी पहली प्रस्तुति,(अतुकांत)में
रंग
धीरे-धीरे
शांत रहकर
अपना प्रभाव छोड़ते है,
वे नही,
चीखते / चिल्लाते
ज़रा भी
रंगों को बिखरा हुआ
देखकर हमे,
लगता जरूर है ऐसा!
कि इनके बीच
मचा हुआ है हाहाकार!
इनमे से, कोई
चीख रहा है
कोई खीझ रहा है
किन्तु ऐसा होता नही है
रंग
शांत रहकर
धीरे-धीरे
अपना प्रभाव छोड़ते है,
हम पर,
वे उतरते ही चले जाते है
ह्रदय की गहराइयों में
दबे पाँव,
चुपचाप...!
रंग
शांत रहकर
धीरे-धीरे
अपना प्रभाव छोड़ते है,
हम पर,
वे उतरते ही चले जाते है
ह्रदय की गहराइयों में
दबे पाँव,
चुपचाप...!
आदरणीय धीरेन्द्र सिंह भदौरिया जी सादर, वाह! बहुत उम्दा रचना. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
//वे उतरते ही चले जाते है
ह्रदय की गहराइयों में
दबे पाँव,
चुपचाप...!//
बिलकुल बिलकुल, आपकी इस रचना की तरह ...अच्छी लगी यह प्रस्तुति, बधाई स्वीकार करें भदौरिया साहब ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |