For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मोहना ओ मेरे मनमोहना, तू कहाँ सो रहा है?

मोहना ओ मेरे मनमोहना, तू कहाँ सो रहा है?

               

(तस्वीर-गूगल इमेजिस से साभार) 

मोहना ओ मेरे मनमोहना, तू कहाँ सो रहा है?

एकबार आके देख तो सही, यहाँ क्या हो रहा है!

चीर हरण के समय, तूने द्रौपदी की लाज बचाई

इन बच्चियों की चीख, फिर क्यों न दी सुनाई ?

इंसान पतन की ओर, पर तू क्यों पथरा रहा है  

एकबार आके देख तो सही, यहाँ क्या हो रहा है!

धर्म की हानि होने पर, अवतार लेने की कसम

क्या भूल गया भारत की, पाप-मुक्ति की रसम

तेरी इस धरा पर अधर्म, का चरम पार हो रहा है

एकबार आके देख तो सही, यहाँ क्या हो रहा है!

बस! अब और नहीं, ऐसा कुछ भी सहा जाता

राधा-मीरा न सही, गोपियों से भी तो था नाता

उसी नाते की लाज रखने में, क्यों देर हो रहा है

एकबार आके देख तो सही, यहाँ क्या हो रहा है!

बांसुरी की तान में यूँ, तुम सुध बुध भूलो मत

खोखली जमीन पर उगे, कदम्ब पर झूलो मत

उठाओ चक्र और दिखादो, पाप नाश हो रहा है

एकबार आके देख तो सही, यहाँ क्या हो रहा है!

 

मोहना ओ मेरे मनमोहना, तू कहाँ सो रहा है?

एकबार आके देख तो सही, यहाँ क्या हो रहा है!

मौलिक व अप्रकाशित 

-उषा तनेजा 

Views: 575

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 25, 2013 at 7:27pm

बहुत सुन्दर और सामयिक रचना की लिए हार्दिक बधाई मैडम उषा तनेजा जी 

हनुमान जयंती पर हार्दिक शुभकामनाए 

Comment by Usha Taneja on April 25, 2013 at 5:55pm

आदरणीय Ashok Kumar Raktale जी, आपके विचारों की अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार!

Comment by Usha Taneja on April 25, 2013 at 5:52pm

आदरणीय मैडम कुंती मुकर्जी जी, 

रचना पढने व समझने के लिए धन्यवाद!

सादर आभार 

Comment by Usha Taneja on April 25, 2013 at 5:50pm

राम शिरोमणि पाठक जी, 

रचना को सुन्दर कहकर उत्साह बढ़ने के लिए शुक्रिया!

सादर 

Comment by Usha Taneja on April 25, 2013 at 5:48pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी, 

भावुकता को समझने के लिए धन्यवाद.

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 25, 2013 at 2:00pm

धर्म की हानि होने पर, अवतार लेने की कसम

क्या भूल गया भारत की, पाप-मुक्ति की रसम

बहुत खूब! हम अपने दायित्वों को याद रखें ना रखें इश्वर को तो याद रखना ही चाहिए. वाह! सुन्दर रचना. बहुत बहुत बधाई आदरणीया उषा तनेजा जी.सादर.

Comment by coontee mukerji on April 24, 2013 at 10:12pm

बांसुरी की तान में यूँ, तुम सुध बुध भूलो मत

खोखली जमीन पर उगे, कदम्ब पर झूलो मत

उठाओ चक्र और दिखादो, पाप नाश हो रहा है

एकबार आके देख तो सही, यहाँ क्या हो रहा है!..........उषा तनेजा जी आपके मोहना कैसे इस धरती पर आऐगे.....उसके लिये जमीन ही

कहाँ है ? और...तो और  वह हो कलयुगी कंस मामा के जेल में बंध है. कहने और समझने की बातें बहुत है .सादर कुंती .

 

Comment by ram shiromani pathak on April 24, 2013 at 9:34pm

सुन्दर रचना। बधाई स्वीकारे।  

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 24, 2013 at 9:44am

आ0  तनेजा जी,  अतिभावुक सुन्दर रचना। बधाई स्वीकारे।  सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। भाई अमित जी के सुझाव भी अच्छे हैं।…"
17 minutes ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"जी भाई  मैं सोच रही थी जिस तरह हम "हाथ" ,"मात ",बात क़वाफ़ी सहीह मानते…"
21 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"पाँचवें शेर को यूँ देखें वो 'मुसाफिर' को न भाता तो भला फिर क्योंकर रूप से बढ़ के जो रूह…"
42 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई संजय जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
50 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. रचना बहन, तर की बंदिश नहीं हो रही। एक तर और दूसरा थर है।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए बहुत बहुत बधाई।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"कर्म किस्मत का भले खोद के बंजर निकला पर वही दुख का ही भण्डार भयंकर निकला।१। * बह गयी मन से गिले…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार बहुत अच्छा प्रयास तहरी ग़ज़ल का किया आपने बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी की…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी नमस्कार बहुत ही ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये एक से एक हुए सभी अशआर और गिरह…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय अमित जी नमस्कार बेहतरीन ग़ज़ल हुई आपकी बधाई स्वीकार कीजिये मक़्ता गिरह ख़ूब, हर शेर क़ाबिले तारीफ़…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"2122 1122 1122 22/112 घर से मेले के लिए कौन यूँ सजकर निकलाअपनी चुन्नी में लिए सैकड़ों अख़्तर निकला…"
6 hours ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, तरही ग़ज़ल कहने के लिए हार्दिक बधाई।"
6 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service