ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi)
गुलशन ये ओ बी ओ है क्यूँ दिल मचल न जाये
मिलती जहाँ ख़ुशी क्यूँ भेजी ग़ज़ल न जाये
ये निसार तुझपे दिल है तोहफा बदल न जाये
मेरे दिल से खेल जब तक तेरा दिल बहल न जाये
ज़रा रहम कर खुदारा मेरे दिल के गुलसितां पर
न गिराना बर्क इसपर कोई साख़ जल न जाये
गुलशन अभी ज़मी पर उतरे हैं जो परिंदे
सय्याद कोई आकर इनको भी छल न जाये
ये झुकी झुकी निगाहें जो गिरा रही हैं बिजली
ये तेरी नज़र का जादू कहीं मुझपे चल न जाये
पत्थर को आज शीशा दिखला रहा हैं आंखें
कहीं लहजा पत्थरों का देखो बदल न जाये
बच्चों पे है नवाज़िश उसका ही सब करम है
रहता है माँ का साया जब तक संभल न जाये
है शब-ए-विसाल इसमें सुनो मेरी कुछ कहो तुम
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये
"गुलशन" अभी भी क़ायम सच्चाई पे है दुनिया
सच के सिवा जहाँ में कोई अमल न जाये
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मुझे सोगवार करके कहीं वो बहल न जाए
मेरे क़त्ल का इरादा कहीं फिर से टल न जाए
वो वफाओं का सिला दें, कि ज़फा का हो इरादा
मैं दुआ ये कर रहा हूँ कि वो दिल पिघल न जाए
मुझे शक्ले नज़्म आया जो सवाल है उधर से
तो जवाब में इधर से कहीं इक ग़ज़ल न जाए
ये फरेब था नज़र का मैं ये मानता हूँ लेकिन
गिरे अश्क तो गुहर में कहीं फिर से ढल न जाए
शबे वस्ल का ये लम्हा कहीं हो न जाए ज़ाया
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए
तेरा नाम लब पे आना जो गुनाह है तो 'वीनस'
ये गुनाह करते करते मेरा दम निकल न जाए
सोगवार - दुःखी
ज़फा - सितम
गुहार – मोती
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जब तक है गुंच-ए-दिल नायाब खिल न जाये
मौसम कहीं सुहाना देखो बदल न जाये
ये रात है सुहानी मौसम पे है जवानी
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये
सुन लें ज़माने वाले इतनी है बस गुज़रिश
छूना नहीं कली को जब तक वो खिल न जाये
जो शाह था जहाँ का मुमताज़ उसके दिल की
दुनिया तो छोड़ जाये छोड़ा महल न जाये
गिरते नही कभी हैं नज़रों से पीने वाले
चश्म-ए-करम हो उसकी वो क्यूँ संभल न जाये
वादे में हो सियासत रग-रग में जो समायी
देखो जुबां से कैसे फिसल न जाये
हैं कीमती ये मोती बिखरे हैं सब जहाँ में
'नायाब' है जभी तक जब तक वो मिल न जाये
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Rajendra Swarnkar
(1)
मिलने का शुभ मुहूरत , देखो जी , टल न जाए
शरमाइए न ऐसे , रुत ही बदल न जाए
मन बावरा बहक कर , फिर-से संभल न जाए
न झुकाओ तुम निगाहें , कहीं रात ढल न जाए
है अंग-अंग शोला , क्या आंच है बला की
आंचल सरक न जाए , दुनिया ये जल न जाए
नाराज़ आप होंगे तो ज़लज़ला उठेगा
न उदास होइएगा , पर्वत पिघल न जाए
छलके न भूल से भी , अश्कों का ये ख़ज़ाना
कहीं सीपियों से कोई मोती निकल न जाए
यूं बेतकल्लुफ़ी से सजिए न इसके आगे
दर्पण का क्या भरोसा , वो भी मचल न जाए
राजेन्द्र ख़ूबसूरत इस रात ने जो बख़्शे
वे राज़ शोख़ लम्हा कोई उगल न जाए
(2)
बदलाव का ये मौक़ा’ कहीं फिर निकल न जाए
कहीं वक़्त की ये मिट्टी फिर से फिसल न जाए
जिन्हें बाग़बां बनाया , निकले हैं वे लुटेरे
अब क़त्लगाह में ये गुलशन बदल न जाए
खटते हैं रात-दिन हम , हथियाते हैं वे आ’कर
उन्हीं हाथों में ही ताज़ा फिर से फ़सल न जाए
सच है कि खोटे-सिक्के बरसों से चल रहे हैं
जनता फ़रेब खा’कर फिर से बहल न जाए
पिसती अवाम ! ताक़त समझो है वोट की क्या
फिर चाल गुर्गा लीडर कोई हमसे चल न जाए
कहते हैं जिसको संसद , यह है हमारा मंदिर
यहां कुर्सी-जूते-चप्पल फिर से उछल न जाए
मत घौंसले से बाहर चिड़ियाओं ! तनहा जाना
वहशी-दरिंदा कोई तुमको मसल न जाए
कोई हो यतीम-बेवा , या हलाक ज़ख़्मी क्यों हो
न कहीं हो बम-धमाका , कोई फिर दहल न जाए
सर पर है ज़िम्मेदारी , हर दिन है हमपे भारी
न झुकाओ तुम निगाहें , कहीं रात ढल न जाए
बन’ सब्र का जो दरिया , बहता है ख़ूं रगों में
कुछ भी न होगा हासिल जब तक उबल न जाए
अब तक राजेन्द्र धोखे , हमको मिले मुसलसल
फिर से ख़ुदाया ! क़िस्मत कहीं हमको छल न जाए
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arun kumar nigam
न पिलाओ प्रेम-मदिरा,मेरा दिल मचल न जाये
सुन बात मीठी-मीठी , कहीं जाँ निकल न जाये
अब उम्र तो नहीं है , तुमसे लड़ाएँ नैना
डर भी ये लग रहा है, कहीं दिल फिसल न जाये
जुल्फें सजी खिजाबी , कपड़े जवाँ – जवाँ हैं
करी लाख रंग-रोगन , जुन्नी शकल न जाये
अचरज न कीजे जानूँ , इस बात में भी दम है
जल जाए पूरी रस्सी , फिर भी तो बल न जाये
यह शेर आखिरी है , पूरी गज़ल तो कर लूँ
न झुकाओ तुम निगाहें , कहीं रात ढल न जाये
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शबे वस्ल जो मिला है वो भी एक पल न जाए
अभी दिल नहीं भरा है अभी दम निकल न जाए
तू जो चाँद है फलक पर तुझे क्यों कहूं मैं रोशन
इसी बात की बिना पर मेरा चाँद ढल न जाए
मेरी आँखों को ये आंसू तेरी हिज्र ने दिए हैं
जो ये बात राज़ की है पता सबको चल न जाए
है ज़बान जिसकी शीरीं जो दिखाता रोशनी है
उसे रोकना मुसाफिर कहीं वो निकल न जाए
जो कबीर सा बुने हैं जो अमीर सा कहे हैं
कभी गा के उनको देखो कि ज़बान जल न जाए
मेरी खामियाँ बताता है जो शख्स उसके सदके
यही रोज़ सोचता हूँ कहीं वो बदल न जाए
इसी रात की सियाही में है चाँद मुस्कुराता
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए
ये सियासतों की बातें मेरे वास्ते नहीं हैं
मैं वतन को पूजता हूँ ये वतन बदल न जाए
तेरे आने की ख़ुशी में ये सितारे गा रहे हैं
बड़ा शुभ है ये महूरत कहीं ये भी टल न जाए
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न दे अब्र के भरोसे.. मेरी प्यास जल न जाये
न तू होंठ से पिला दे मेरा जोश उबल न जाये
ये तो जानते सभी हैं कि नशा शराब में है
जो निग़ाह ढालती है वो कमाल पल न जाये
तू मेरी सलामती की न दुआ करे तो बेहतर
जो तपिश दिखे है मुझमें वही ताव ढल न जाये
मेरे नाम इक दुपट्टा कई बार भीगता है
कहीं आह की नमी को मेरी साँस छल न जाये
घने गेसुओं के बादल मुझे चाँद-चाँद कर दें
"न झुकाओ तुम निग़ाहें कहीं रात ढल न जाये"
मेरे तनबदन में खुश्बू.. कहो क्या सबब कहूँगा
जरा बचबचा के मिल तू, कहीं बात चल न जाये
मैं समन्दरों की फितरत तेरा प्यार पूर्णिमा सा
जो सिहर रही रग़ों में वो लहर मचल न जाये
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किसी बेजुबान दिल में कोई ख़्वाब पल न जाये
तेरी भौंह के धनुष से कोई तीर चल न जाये
है कहाँ ये दम सभी में के वो सह लें आँच इनकी
न उठाओ तुम निगाहें कहीं चाँद गल न जाये
तेरी आँख के जजीरों पे टिकी हुई है जाकर
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये
है तेरी नज़र से उलझा जो मेरी नज़र का धागा
न हिलाओ स्वप्न खिंच के ये मेरा निकल न जाये
तेरी आँख का समंदर मेरे तन को रक्खे ठंढा
न चुराओ तुम निगाहें कहीं दिल पिघल न जाये
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गुलशन है खूब सूरत, तबियत मचल न जाये
बच्चों से नाज नखरें, उलफत गजल न जाये
कहीं रूतबा जोश सानी, तेरी जिन्दगी दिवानी
रहती है आसमां पर, कहीं चांद खल न जाये
मयसर तो आज होगा, सच के हसीं नजारे
वो वफाओं का समन्दर, मेरे साथ जल न जाये
अच्छा है माल देखो, मेरे कत्ल का बहाना
दुनियां तो सांप समझे, कहीं वो बहल न जाये
ये गुलामी ताज पोशी, मेरा रंग - रंग होना
रहता है तन वतन में, कहीं दाग फल न जाये
मैं दुआ वो बद्दुआ हैं, अब शोर हो रहा है
न झुकाओ तुम निगाहें, कहीं रात ढल न जाये
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चलो साथ मेरे हमदम नज़ारा बदल न जाये,
जवानी ये रेत जैसी जानेमन फिसल न जाये,
तेरे हुस्न का नशा है मेरी जान, जानलेवा,
तुझे देख मेरा दिल ये सीने से निकल न जाये,
एक दूजे से मिलन की बेला सालो बाद आई,
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये
नहीं फेंक कोई पत्थर बुराई में तू उठाकर,
भरोसा नहीं तुझी पे ये कीचड उछल न जाये,
सभी के घरों में इक बस यही बात चल रही है,
कोई धूर्त अपनी फिर से कहीं चाल चल न जाये.
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यूँ हज़ार क़त्ल करके कहीं वो निकल न जाये
न समझिये हम हैं बुजदिल कहीं खूं उबल न जाये
बिन नाम का लिफ़ाफ़ा मेरे हाथ में थमाया
क्या यकीं कि खोलने पर कोई बम निकल न जाये
वो जफ़ा का तोहफा देकर हाल पूछते हैं
न कुरेदो जख्म मेरे कहीं हाथ जल न जाये
तेरे ख्याल का तजाजुब पुरज़ोर खींचता है
न कशिश में तुम जलाओ मेरा दिल पिघल न जाये
ये हसीन रुत नज़ारे यूँ ही हो न जाए बेघर
न झुकाओ तुम निगाहें कही रात ढल न जाये
ये घटाएँ घनघनाती मेरा दिल बिठा रही हैं
कहीं "राज "उल्फतों के मौसम बदल न जाये
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(1)
मेरी ख्वाहिशों का मंज़र किसी शाम ढल न जाए
ये शहर की भीड़ मुझको कभी यूं निगल न जाए
यूं ही जिंदगी की खातिर जो बेज़ार से रहे हम
मेरी आंख में शमा बन कहीं वो पिघल न जाए
जो सूरज की चंद किरनें मेरे घर में खेलती हैं
किसी रोज तो हमारी कहीं नींद जल न जाए
ये सब्र आखिर हमारा देगा भी तो साथ कितना
कहीं भूख की तपिश में वो शीशा उबल न जाए
जो उठी तेरी पलक तो यहां चांदनी है बिखरी
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए
देती हैं जो रोज लहरें किनारों को यूं चुनौती
कभी इस अदा पे साहिल का ही दिल मचल न जाए
किसी ख्वाब को भी हमने न छुआ तनिक उम्र भर
मुझे डर था इस बहाने जिंदगी ही छल न जाए
(2)
ये वज़ूद की लड़ाई किसी दिन बदल न जाए
मेरे हाथ में हो खंज़र ये समां यूं ढल न जाए
जो शहर की हर गली में ये पसर गयी खामोशी
तो सहर भी डर के अपना कही रुख बदल न जाए
यहां बह रही थी गंगा वो भी सूखने लगी है
कहीं रेत की तपिश में मेरे पांव जल न जाए
ये नज़र का ही तो जादू जो यूं चांद मुस्कुराए
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए
मेरा वक्त हर कदम पर दे रहा है ऐसे धोखा
मेरी जुस्तजू ही मुझको किसी दिन निगल न जाए
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तेरे हुस्न की तपिश से मेरा दिल पिघल न जाये
शबे-हिज्र की घडी में मेरा मन बदल न जाये
ये हसीं तुम्हारे लब की, ये उजाला जेवरों को
मुझे डर रहा हमेशा कि परिन्दा जल न जाये
ये सहर तुझे अता की, तू बहाना मत बना अब
न उठा पुराने किस्से कहीं दिन निकल न जाये
जो मिला था वक़्त हमको वो भी गुजरा तल्खियों में
'न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये
वो 'सलिल' तुम्हें भुला दें, न भुलाना तुम उन्हें भी
कि गुहर सी बूँद आँखों से कहीं फ़िसल न जाये
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चलो हर कदम सँभल के, कहीं पग फिसल न जाए,
जो मिला है आज अवसर, कहीं वो भी टल न जाए।
बड़े दिन के बाद आए, ज़रा देर पास बैठो,
यूं न छोड़ जाओ जब तक, मेरा मन संभल न जाए।
जो वफा की खाते कसमें, नहीं उनका कुछ भरोसा,
जिसे मन से अपना माना, वही मीत छल न जाए।
सुनो प्राणिश्रेष्ठ मानव, करो नेक कर्म भी कुछ,
यूं ही पाप बढ़ गया तो, ये धरा दहल न जाए।
ये खिली खिली सी धरती, हमें दे रही हवाला,
रहे जल का संतुलन भी, कहीं पौध गल न जाए।
करो कैद गीत नगमें, कि गज़ल ने है बुलाया,
है ये मंच शायरों का, क्यों ये मन मचल न जाए।
बड़े दिन के बाद आया, तेरे दीद का ये मौका,
“न झुकाओ तुम निगाहें, कहीं रात ढल न जाए”
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तुझे देखने कि चाहत कहीं दिल मचल न जाये
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये
मेरे घर की दीवारें जब मुझ से न बात करती
मुझ को डर घुटन से कहीं दम निकल न जाये
अभी रात बाकी है न कहीं नजर में सहर है
यकीं तो है,दिल मगर ये कहीं ओर चल न जाये
तुने जिस किताब में फूल कभी प्यार संभाल रखे
न जलाना मेरे दोस्त कहीं याद जल न जाये
कभी जख्म देते हैं, वो कभी मरहम लगते हैं
उसी कस्मकस, मेरा कहीं दिल पिघल न जाये
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कलियों सम्भल के रहना मधुकर कुचल न जाए
तेरा बागवां ही तेरा दुश्मन निकल न जाए
निज आत्मजा को हमने धर ध्यान खूब पाला
हमको सता रहा डर बहशी निगल न जाए
ललकार आम जनता करने पे आमादा है
सम्भलो वतन फरोशों दिल्ली दहल न जाए
तुमसे ही था उजाला इस देश में ऐ दीपक
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए
सुधरा वतन जो चाहे खुद को सुधार लें हम
तुम ही गलत हो पापा सुत कह मचल न जाए
खतरे में देश भारी सरहद पे चीन धमका
फिर से कहीं न नक्शा दुश्मन बदल न जाए
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न पुकारो तुम हमें यूँ उसे बात खल न जाए,
न बिठाओ पास इतना ये नियत बदल न जाए |
न निगाह चार करना सरे राह जी किसी से,
देखना नया कहीं आँख में ख्वाब पल न जाए |
फेरकर निगाह जाना न मुझसे दूर यारा,
ठेहरी है जान तन में देखना निकल न जाए |
मिलता है कोई ऐसा कहाँ प्यार करने वाला,
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए |
चेहरा ‘अशोक’ उसका न चुरा ले दिल कहीं जो,
न गुजरना उस गली से कहीं दिल मचल न जाए ||
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मुझे डर सता रहा है कहीं तू बदल न जाये॥
कहीं हो गया जो ऐसा मेरी जां निकल न जाये॥
तू बला की खूबसूरत तेरा जिस्म संगमरमर,
तेरा हुस्न देख करके ये नज़र फिसल न जाये॥
तेरी आशिक़ी ने दिल में हैं खिलाये प्यार के गुल,
कहीं बेरुख़ी से तेरे मेरा ख़्वाब जल न जाये॥
अभी मुतमइन नहीं हूँ के तू हमसफ़र है मेरा,
मेरा साथ छोड करके कहीं तू निकल न जाये॥
न मेरे क़रीब आओ अभी फासले रखो तुम,
तेरे हुस्न की तपिश से मेरा ज़िस्म जल न जाये॥
हुआ चाँद भी है मद्धम ये सितारे सो गए हैं,
"न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये" ॥
मेरा इश्क़ एक शोला तेरा हुस्न मोम सा है,
मुझे प्यार करते करते कहीं तू पिघल न जाये॥
अभी नासमझ बहुत हो अभी आग से न खेलो,
ये हैं आग आशिक़ी की कहीं हाथ जल न जाये॥
तेरा इंतिज़ार करते ये ढली है रात “सूरज”,
न सताओ मुझको इतना कहीं दम निकल न जाये॥
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shashi purwar
मुझसे न दूर जाओ , मेरा दम निकल न जाये
तेरे इश्क का जखीरा ,मेरा दिल पिघल न जाये
मेरी नज्म में गड़े है ,तेरे प्यार के कसीदे
मै कैसे जुबाँ पे लाऊं ,कहीं राज खुल न जाये
खिड़की से रोज निकले ,मेरा चाँद सबसे प्यारा
न झुकाओ तुम निगाहे ,कहीं रात ढल न जाये
तेरी आबरू पे कोई , कभी छाप लग न पाये
मै अधर को बंद कर लूं ,कहीं अल निकल न जाये
ये तो शेर जिंदगी के ,मेरी साँस से जुड़े है
मेरे इश्क की कहानी ,कही गजल कह न जाये
ये सवाल है खुदा से ,तूने कौम क्यूँ बनायीं
दुनिया बड़ी है जालिम , कहीं खंग चल न जाये
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VISHAAL CHARCHCHIT
न जताओ यूं मुहब्बत कहीं दिल मचल न जाए
कहीं तीर-ए-दिल्लगी से मेरा दम निकल न जाए
न बनो तुम इतने नादां खुलेआम इश्क खतरा
ये खयाल रक्खो हरदम कि जहां ये जल ना जाए
कभी तुम हो दूर मुझसे कभी मैं हूँ दूर तुमसे
अभी जो मिला है मौका वो भी यूँ निकल न जाए
ये भी है मजाक अच्छा मिले और 'जाऊं - जाऊं'
कभी तो रुको कि जब तक मेरा दिल बहल न जाए
अरे यार तुम भी 'चर्चित' ये कहां पे आ फँसे हो
ये जो आशिकी है बाबू कहीं ये निगल न जाए
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न हँसो दबा के आँखें कहीं दिल मचल न जाये.
इस भोलेपन पे जालिम मेरी जां निकल न जाये .
छत पे सूखा ना गेसू , रुख से हटा के चिलमन.
ये चाँद देखकर के सूरज पिघल न जाये.
चलो ख्वाब में ही आई आ तो गयी खुद्दारा.
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये.
मासूम बेटियों के आँसू से यूँ ना खेलो .
उनके रुदन से अपना , ये चमन ही जल न जाये.
सत्ता के हुक्मरानों अब भी तो संभल जाओ .
कुछ वक्त का भी सोचो कहीं ये बदल न जाये.
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ये हो शयारी मेरी , उनको ही खल न जाये
बनकर हनीफ उसका किरदार जल न जाये
मेरा हबीब मुझकों देता है क्यों नसीहत
कहीं बात उसकी सुन कर मेरा दिल बदल न जाये
यूँ अतिशे हवस में जलता है ये ज़माना
हैवानियत का चश्मा फिरसे उबल न जाये
वो कर रहा जफायं मैं निभा रहा वफ़ा को
पयमाना सब्र का भी फिरसे उबल न जाए
तुम को कसम खुदा की मेरे तरफ तो देखो
"न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये"
बिखरे हुए है अरमा टूटी है दिल ख्वाहिश
रंजो अलम का लावा दिल में पिघल न जाये
"खुर्शीद" नूर बक्शे अपना ही दिल जल कर
रूहे रवां कहीं फिर दिल से निकल न जाये
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मुझे डर है मेरे दिलबर मेरा दिल बदल न जाये
तेरी राह तकते तकते मेरी जां निकल न जाये
अभी प्यार का है मौसम ये बहार टल न जाये
"न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये"
तू ही मेरी आरजू है तू ही मेरी जुस्तुजू है
अभी तुझको प्यार कर लूं कही दम निकल न जाये
तेरी हर अदा में शोखी तेरी हर नज़र में जादू
तुझे देख कर कहीं अब मेरा दिल मचल न जाये
मैं बहुत हुआ हूँ रुसवा तेरी आशिकी मैं जाना
मुझे डर है ये ज़माना कही मुझ से जल न जाये
तेरा रूप है सलोना तू न कर गुरूर इतना
तेरा हुस्न रफ्ता रफ्ता मेरे दोस्त ढल न जाये
मझे बेक़रार करके कभी दूर तू न रहना
तेरी बेरुखी का खंजर मेरे दिल पे चल न जाये
कभी हसना मुस्कुराना कभी रूठना मनाना
यूँ तुम्हारा मुझ से मिलना कहीं सब को खल न जाये
मैं हर एक सांस अपनी तेरी नाम कर दूं लेकिन
मुझे डर है ऐ "शफाअत" कही तू बदल न जाये
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ये जहाँ बदल रहा है, मेरी जाँ बदल न जाये
तेरा गर करम न हो तो, मेरी साँस जल न जाये
ये बता दो आज जाना, कि कहाँ तेरा निशाना
जो बदल गये हो तुम तो, कहीं बात टल न जाये
न वफ़ा ये जानता है, मेरा दिल बड़ा फ़रेबी
ये मुझे है डर सनम का, कि कहीं बदल न जाये
तेरी जुल्फ़ हैं घटायें, जो पलक उठे तो दिन हो
'न झुकाओ तुम निगाहें, कहीं रात ढल न जाये'
मेरा दिल लगा तुझी से, तेरा दिल है तीसरे पे
तेरा इंतज़ार जब तक, मेरा दम निकल न जाये
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आ0 राणा प्रताप सिंह जी, सभी गजले एक साथ देख कर बहुत अच्छा लगा। बेहतरीन और नायाब सलीका सहित प्रस्तुत सभी गजलें साफ दर्पण का कार्य कर रहीं हैं। आपके कुशल संपादकीय कार्य लगन और निष्ठा को सादर नमन्। बहुत-बहुत दिली बधाई स्वीकारें। सादर,
भाई राणाजी, इस द्रुत गति का जवाब नहीं. इतना तेज़ तो वे समाचार चैनल भी नहीं हैं जो ऐसा क्लेम करते हैं.. :-)))))
प्रस्तुत हुई ग़ज़लों का संकलन और उनमें से दोषयुक्त मिसरों को चिह्नित करने केलिए आवश्यक धैर्य .. वाह वाह
इस दफ़े के मिसरे ने और उसकी बह्र ने तो ग़ज़लकार प्रतिभागियों का पूरा क्लास लगा लिया भाई. रवायती ग़ज़ल के लिए इतनी सुगढ़ ज़मीन और बुद्धि लगाने के लिए बह्र ! ये सब.. सारा कुछ मिल कर एक नया अनुभव दे गये. मन मुग्ध है
जिस तरह से आपने अपनी अति व्यस्तता के बावज़ूद समय निकाला है, वह हम सबों के लिए उदाहरण भी है.
बहुत-बहुत बधाई आपको इस सफल संचालन पर.
शुभ-शुभ
राणा भाई क्या कहूँ, आश्चर्यचकित हूँ, १२ बजे रात्रि में आयोजन समाप्त हुआ और सुबह सभी गजलों को एकत्र कर बेबहर मिसरों को आपने चिन्हित भी कर दिया, कमाल है भाई इस क्विक रिस्पांस पर आपको बहुत बहुत बधाई । इस बार का बहर कुछ कठिन रहा, खास कर 1121 को मित्र गण 221 में बांधने की भूल कर बैठे जिससे लाल रंग की बाढ़ आ गई है ।
मैं एक नाम बड़ी शिद्दत से लेना चाहता हूँ, मुझे लगता है कि उनकी यह कोई पहली ग़ज़ल है और वह ग़ज़ल बिलकुल बाबहर है, वह नाम है आदरणीया गीतिका वेदिका जी का, मैं आपकी लगन और समर्पण को सलाम करता हूँ, उनको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ ।
श्री वीनस केशरी, श्री अभिनव अरुण, श्री धर्मेन्द्र संह, श्री सौरभ पाण्डेय, श्री आशीष नैथानी, आदरणीया कल्पना रामानी, श्री विशाल चर्चित और जनाब सफ़त खैराबादी जी को बधाई देना चाहता हूँ , आप सभी की ग़ज़लें बाबहर रही, श्री बृजेश सिंह जी की प्रस्तुत दूसरी ग़ज़ल एक मिसरा छोड़ बाबहर पाई गई, आपको भी बधाई ।
मैं सभी साथियों का आभार प्रकट करना चाहता हूँ जिन्होंने कार्यक्रम के दौरान एक दूसरे की ग़ज़ल पर चर्चा करते रहे और गुण दोष पर प्रकाश डालते और सीखने-सिखाने की परम्परा को बनाये रखे । यह कहने की जरुरत नहीं कि ओ बी ओ पर विभिन्न आयोजनों का उद्देश्य भी यही है कि प्रविष्टियों पर व्यापक चर्चा हो, हम सभी गुण दोष से वाकिफ़ हों और सीखने सिखाने की परंपरा बनी रहे ।
श्री वीनस केशरी जी का बहुत बहुत आभार, आप अंत तक प्रविष्टियों के गुण दोष पर चर्चा करते रहे । इस सफल आयोजन हेतु मंच संचालक श्री राणा जी, प्रबंधन सदस्यों, कार्यकारिणी सदस्यों तथा सभी प्रतिभागियों को बहुत बहुत बधाई ।
सादर ।
गणेश जी बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार
नमस्ते राणा जी , शानदार गजल समारोह के लिए टीम प्रबंधक को हार्दिक बधाई , आयोजन में सच में बहुत आनंद आया , लाल रंग से रंगे मिसरे
हमें हमारी गलतियों सो सुधार कर सिखने का मौका दे रहे है . बहुत जल्दी यहाँ यह कार्य हो जाता है , सच में इस मंच पर दिल लग गया , उम्दा परिवार है यह और उम्दा रचनाये ही पढने को मिलती है . ऐसे परिवार की तलाश थी मुझे जो अब मिल गया . इस बार 1 ही दिन में जल्दी से लिखकर पोस्ट कर दिया , वीनस जी राणा जी गलतियों पर आपकी चर्चा करना हमें बहुत पसंद आया . पुनः सफल संचालन हेतु हार्दिक बधाई , हम अपने लाल रंग के मिसरों को पुनः सुधार कर बाबहर कर देंगे . आभार :)
ओ बी ओ इसी प्रकार दिनानुदिन उन्नति पथ पर अग्रसर रहे यही कामना है आदरणीय श्री बागी जी बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं !!
गणेश भाई जी,
हार्दिक आभारी हूँ आयोजन समाप्त होते होते मैं एक पार्टी के लिए निकल गया था, सो राजेन्द्र भाई जी कमेन्ट वापस आ कर पढ़ सका
देख कर दुःख हुआ कि मेरे कारण माहौल कुछ बदल गया था
जहाँ राजेन्द्र जी के मजाक को पहले मैं नहीं समझ पाया था तो राजेन्द्र जी भी इस बार मेरे मजाक को नहीं समझ पाए ...
मैं दोहरी बात कहने का आदी नहीं हूँ और अपने कहे हर शब्द की जिम्मेदारी लेते हुए शर्मिंदा हूँ
सादर
भाई राणा प्रताप सिंह जी शायद इसी तरही में मेरी भी एक ग़ज़ल थी । लगता है ग़ज़ल आपकी नज़रों में जगह नहीं बना सकी और भूलवश छूट गयी है ...आप को बहुत बहुत बहुत मुबारकबाद और बधाइयाँ इस तरही को सफलता पूर्वक आयोजित करवाने और संकलित करने के लिए ।
आदरणीय डा ० साहब न जाने कैसे आपकी ही ग़ज़ल छूट गई| मुशायरे की श्रेष्ठतम ग़ज़लों में से एक का छूट जाना मेरी व्यक्तिगत क्षति है| बहरहाल भूल सुधार कर दिया है, आपकी ग़ज़ल यथा स्थान लगा दी गई है| आशा इस त्रुटी के लिए आप क्षमा कर देंगे|
सादर
आदरणीय डॉ साहब, आप की ग़ज़ल छूटी नहीं थी बल्कि तकनीकी समस्या की शिकार हुई थी, दरअसल सभी सदस्य अलग अलग फॉण्ट, फोर्मेट में अपनी ग़ज़लों को पोस्ट करते है, संग्रह करने में कुछ ऐसी दिक्कत होती है कि ग़ज़ल तो रहती है पर जब अपलोड किया जाता है तो दिखती नहीं । अभी समस्या ठीक हो गई है । त्रुटि पर ध्यान दिलाने हेतु आभार महोदय ।
अन्य सदस्यों से भी अनुरोध है कि यदि आप को भी किसी प्रकार की त्रुटि दिखे तो प्रबंधन को अवगत करा दें ।
आ० राणा प्रताप जी ग़ज़लों को एक मंच पर त्वरित संकलित करने जैसे श्रम साध्य कार्य हेतु हार्दिक आभार एवं बधाई |
आदरणीय राणा प्रताप जी सादर, त्वरित संकलन और गलत मिसरों को लाल रंग देना आपकी कुशलता में चार चाँद लगा रहा है. मुशायरे के सफल संचालन के लिए हार्दिक बधाई. लाल रंग से यह तो सुनिश्चित हुआ की सुधार कहाँ करना है.सादर आभार.
सभी ग़ज़लों को एक स्थान पर और वो भी कसौटी पर कसा देख सुखद अनुभव हो रहा है । ओ बी ओ ने मुझ जैसे कई सीखने वाले रचनाकारों के लिए पाठशाला का कार्य किया है । अतः इस पाठशाला के सभी गुरुजनों को सादर नमन वंदन !! आज हर कोई अपने अपने रोज़ी रोज़गार में व्यस्त है और उसके बाद घर परिवार नातेदार समाज भी ... ऐसी आपाधापी के बीच भी अगर साहित्य के बीज पल्लवित पुष्पित हो रहे हैं और देश - विदेश के विभिन्न कलमकार इस मंच पर एक दूसरे से लेखन -अनुभव - समीक्षा साझा कर रहे हैं यह एक महत्वपूर्ण व् स्तुत्य तथ्य है । सभी शायरों गुणीजनों को बहुत बहुत शुभकामनाएं और अभिवादन !! भाई राणा जी को बहुत बहुत साधुवाद सफल सञ्चालन के लिए !!
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