For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हर तरफ जंग की तस्वीर नई होती है॥

जब कभी अम्न की तदबीर नई होती है॥

हर तरफ जंग की तस्वीर नई होती है॥

ख़त्म कर देती है सदियों की पुरानी रंजिश,

वक़्त के हाथ में शमशीर नई होती है॥

पहले होते हैं यहाँ क़त्ल धमाके दंगे,

और फिर अम्न पे तक़रीर नई होती है॥

मेरे हर ख़्वाब में आता है नज़र तू ही तू, 

फिर भी हर ख़्वाब की ताबीर नई होती है॥

गुल हो या ख़ार यहाँ जो भी बनाता है ख़ुदा,

उसके हर चीज की ता’मीर नई होती है॥

मेरा अंदाज़ ए बयां चाहे पुराना हो मगर,

मेरे हर लफ़्ज़ की तासीर नई होती है॥

आजकल के वो ज़माने का है राँझा यारों

रोज़ बाहों में कोई हीर नई होती है॥

जब भी होता है हसीं ताजमहल का चर्चा,

सामने प्यार की जागीर नई होती है॥

रोज़ आज़ादी का लिखता हूँ फ़साना “सूरज”

रोज़ ही पाँव मे ज़ंजीर नई होती है॥

डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”

*तदबीर=निर्माण ,तक़रीर =बहस ,ताबीर= स्वप्नफल , तामीर =बनावट तासीर=प्रभाव, गुण

(मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 611

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 3, 2013 at 3:20pm

एक सुन्दर ग़ज़ल सुनाने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, डॉक्टर साहब.

ढेरों दाद लें.

इन पर विशेष बधाई लें -

पहले होते हैं यहाँ क़त्ल धमाके दंगे,
और फिर अम्न पे तक़रीर नई होती है॥

मेरा अंदाज़ ए बयां चाहे पुराना हो मगर,
मेरे हर लफ़्ज़ की तासीर नई होती है॥

रोज़ आज़ादी का लिखता हूँ फ़साना “सूरज”
रोज़ ही पाँव मे ज़ंजीर नई होती है॥

बधाई.

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 30, 2013 at 9:30pm

वाह वाह वाह वाह मस्त मस्त मस्त जबरदस्त आदरणीय सर जबरदस्त क्या लाजवाब अशआर हुए हैं सच कहूँ तो आज दोहपर में आपकी ग़ज़ल पढ़ी थी उस समय टिपण्णी नहीं की मन एक बात आई क्यूँ न एक बार रात को तसल्ली से दोबारा आनंद उठाया जाए. दोनो दफा वही ताजगी महसूस हुई आनंद कम नहीं हुआ. ह्रदय से ढेरों बधाई प्रेषित है स्वीकार करें.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 30, 2013 at 5:24pm

बहुत खूब | उम्दा गजल सभी अशआर एक से बढ़ कर एक | हार्दिक बधाई डॉ सूर्या बाली "सूरज" जी -

आपकी क्या तारीफ़ करे भाई, 

आपकी हर बात नई लगती है |

Comment by विजय मिश्र on July 30, 2013 at 3:52pm
"मेरे हर ख़्वाब में आता है नज़र तू ही तू,
फिर भी हर ख़्वाब की ताबीर नई होती है॥
मेराअंदाज़ ए बयां चाहे पुराना हो मगर,
मेरे हर लफ़्ज़ की तासीर नई होती है॥
आजकल के वो ज़माने का है राँझा यारों
रोज़ बाहों में कोई हीर नई होती है॥"-- लाजबाव ,किसी को कायल बना दे आपका , मुझे तो हुआ ही समझिए . तारीफ़ के काबिल गजल .अपने तखलुस्स से कमतर नहीं हैं आप .आभार
Comment by बसंत नेमा on July 30, 2013 at 2:53pm

आ0 डाँ बाली जी     बहुत ही सुन्दर ........ रचना   बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 30, 2013 at 10:24am

//जब कभी अम्न की तदबीर नई होती है

हर तरफ जंग की तस्वीर नई होती है//  वाह बहुत खूब

खूबसूरत मतला डॉ बाली सर
बकिया अशआर भी अच्छे हैं, इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई कुबूल फरमाएँ

 

 

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on July 30, 2013 at 10:09am

Mukammal gajal, kaabile daad hai sir. aapki lekhni ko nanam.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 30, 2013 at 9:52am

आजकल के वो ज़माने का है राँझा यारों

रोज़ बाहों में कोई हीर नई होती है॥.......वाह! बहुत ही शानदार शेर

 

जब भी होता है हसीं ताजमहल का चर्चा,

सामने प्यार की जागीर नई होती है॥.......वाह वाह! बिलकुल सच कहा

आदरणीय डा.सूर्या जी, बेहतरीन गज़ल पेशकश पर, तहे दिल से बधाई..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service