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एक शाम

उदास सी थी

निस्तेज , निशब्द , निस्पंदित

निहारती सी

दूर तलक शून्य मे।  

कर्तव्य विहीन, कर्म विहीन

अचेतन जड़ हो गए जो

पुकारती सी

दूर तलक शून्य मे ।

नेपथ्य से कुछ सरसराहट

वैचारिक या मौन

विजयी पर प्रसन्न नहीं

श्रोता सी

दूर तलक शून्य मे ।

अन्तर्मन के क्रंदन को

छिपा मुख मण्डल पर खेलती जो

अलौकिक आभा थी

दूर तलक शून्य मे ............... ।  

 

 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

 

 

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Comment

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Comment by Sachin Dev on October 5, 2013 at 1:33pm

आदरणीया अन्नापूर्ण जी , एक अति सुन्दर कृति पर हार्दिक बधाई आपको ! 

Comment by annapurna bajpai on September 26, 2013 at 5:13pm

आदरणीय कुशवाहा जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on September 26, 2013 at 3:48pm

दूर तलक शून्य मे ।

नेपथ्य से कुछ सरसराहट

सुन्दर भाव 

बधाई सादर 

Comment by annapurna bajpai on September 23, 2013 at 12:19am
आ0 वैद्य नाथ जी आभार आपका ।
Comment by Saarthi Baidyanath on September 22, 2013 at 8:39pm

बहुत बढ़िया ....सुन्दर भाव सहेजे एक अच्छी कविता ...! बधाई मैडम :)

Comment by annapurna bajpai on September 21, 2013 at 12:18pm

adarniy Neeraj ji apka hardik abhar .

Comment by Neeraj Neer on September 21, 2013 at 11:46am

बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना आदरणीय 

Comment by annapurna bajpai on September 18, 2013 at 1:31pm
आपका हार्दिक आभार आ0 प्राची जी ।
Comment by annapurna bajpai on September 18, 2013 at 1:31pm
आपका हार्दिक आभार आ0 प्राची जी ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 17, 2013 at 10:48am

आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपेई जी 

इस अभिव्यक्ति में मन ही गहराइयों से सत्य को खोजती जिस निःशब्दता को शब्द मिले हैं.. उसके लिए आपको बहुत बहुत शुभकामनाएँ.. निःसारता से सार की ओर सामंजस्य बैठाती इस अभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई 

सादर.

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