ग़ज़ल
लोग फिर बातें बनाने आ गए,
यार मेरे, दिल दुखाने आ गए.
...
जिंदगी का ज़िक्र उनसे क्या करूँ,
मौत को जो घर दिखाने आ गए.
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रूठनें का लुत्फ़ आया ही नहीं,
आप पहले ही मनाने आ गए.
...
दो घडी बैठो, ज़रा बातें करो,
ये भी क्या बस मुँह दिखाने आ गए.
...
जेब अपनी जब कभी भारी हुई,
लोग भी रिश्ते निभाने आ गए.
...
राह से गुज़रा पुरानी जब कभी,
याद कुछ चेहरे पुराने आ गये.
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मौलिक व अप्रकाशित
निलेश 'नूर'
Comment
जी मैंने इस विषय पर चिंतन कर रहा हूँ ... जैसे ही कोई तरमीम सूझती है, बदलाव का निवेदन करूँगा.
सादर
बहुत खूब ग़ज़ल हुई है, आदरणीय ! विलम्ब से इस ग़ज़ल पर आया हूँ, इसका खेद है.
गुणीजनों के सारे सुझावो पर ध्यान दे रहे होंगे. मैं आश्वस्त इसलिये हूँ कि आप एक गंभीर और अपने प्रति निर्मम प्रयासकर्ता हैं.
इता दोष पर अवश्य आलेख देख जायें
सादर
शुक्रिया सभी को ....
इस ग़ज़ल के मतले में इता दोष है ... अब इसे सुधारना ...ग़ज़ल रचने से अधिक कठिन चुनोती है ....
उम्मीद है कि आप सब के स्नेह और साथ से इसे दुरुस्त कर पाऊंगा
पुन: आभार
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जेब अपनी जब कभी भारी हुई,
लोग भी रिश्ते निभाने आ गए.
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राह से गुज़रा पुरानी जब कभी,
याद कुछ चेहरे पुराने आ गये.
बहुत बढ़िया आदरणीय नीलेश जी
आदरणीय नूर जी ..हर शेर जानदार ..वर्तमान परिदृश्य का बेहतरीन खाका खींचा है आपने ..आजकल ये सब वाकई आम होता जा रहा है ..ढेरों बधाई कबूल करें भाई जी
//रूठनें का लुत्फ़ आया ही नहीं,
आप पहले ही मनाने आ गए.
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दो घडी बैठो, ज़रा बातें करो,
ये भी क्या बस मुँह दिखाने आ गए.
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जेब अपनी जब कभी भारी हुई,
लोग भी रिश्ते निभाने आ गए.// बहुत बढ़िया अशआर हुये हैं बधाई आपको
जिंदगी का ज़िक्र उनसे क्या करूँ,
मौत को जो घर दिखाने आ गए.
वाह बहुत खूब !!
नूर--=-=-=नूर-------------- नूर---------------i जी
क्या अदा क्या जलवे तेरे नूर i
ग़ज़ल नहीं ये है जन्नत की हूर ii
इस ही का मसअला यूँ हल किया है ...
रूठने का लुत्फ़ तो आया नहीं
आप पहले ही मनाने आ गए ...
ये कैसा रहेगा ???
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