४७ वर्षीय बृजेश नीरज का काव्य-संग्रह ‘कोहरा सूरज धूप’ अनेक कोणों से पाठक का ध्यानाकर्षण करता है. सबसे पहले तो मुझे इस संग्रह में शब्द-लय और अर्थ-लय की अविराम अनुभूति हुई. आज की मुक्त-छंद और छंद-मुक्त कविताओं में जिस अनपेक्षित खुरदुरेपन के दर्शन होते हैं, वह बृजेश नीरज के यहाँ न के बराबर है. उसका कारण संभवतः यही है कि बृजेश गीत और नवगीत की पृष्ठभूमि से आते हैं.
अपनी कविताओं में बृजेश नीरज ने जीवन की प्रत्येक छोटी-बड़ी घटना को कविता का विषय बनाया है. एक ईमानदार और जागरूक रचनाकार के तौर पर अपनी रचनाओं में बृजेश अपने परिवेश, देश, काल, समाज से जुड़े हुए दिखाई देते हैं.
रोजी-रोटी का संघर्ष व्यक्ति को प्रणय के चरम क्षणों में भी याद रहता है. इसके लिए उनकी कुछ काव्य-पंक्तियाँ-
तुम्हारे आगोश में
भूल जाता हूँ
सारे कष्ट
लेकिन
रात की शीतलता में भी
चुभती है एक बात कि
शेष है
कल की रोटी का जुगाड़
वर्तमान व्यवस्था झुग्गी-झोपड़ी में जन्मे बच्चे को जन्म के साथ ही ‘रोटी’ की फ़िक्र में मुब्तिला कर देती है. ऐसे बच्चों में झरनों जैसा उत्साह और उच्छ्र उच्छ्रिख्लता कहाँ? बचपन में ही ऐसे बच्चे अपना खिलखिलाता बचपन बहुत पीछे छोड़ आते हैं. वे बहुत जल्दी वयस्क हो जाना चाहते हैं. बृजेश नीरज की कुछ पंक्तियाँ-
व्यवस्था के पहिये टेल
दमित बचपन
बेचैन था वयस्क हो जाने को
इस प्रकार बृजेश नीरज ने वर्तमान समय में अपने परिवेश में व्याप्त प्रत्येक विसंगति विषमता एवं शोषण-उत्पीडन के साथ मनुष्य के जीवन-संघर्ष एवं उसकी जिजीविषा को जांचा-परखा है.
एक समर्थ रचनाकार होने के बावजूद ‘अपनी बात’ में बृजेश नीरज कहते हैं- ‘साहित्य के विशाल सागर में रचनाकार के तौर पर मेरी हैसियत कण के बराबर भी नहीं.’ लेकिन, बृजेश जी याद रखिये ऐसी ही अरबों-खरबों बूँदें मिलकर साहित्य के विशाल समुद्र का निर्माण करती हैं.
मुझे लगता है- बृजेश नीरज साहित्य यात्रा में लम्बा सफ़र तय करेंगे. ‘कोहरा सूरज धूप’ तो उनकी काव्य यात्रा का पहला पड़ाव है.
- जहीर कुरैशी
(गज़लकार)
भोपाल
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आदरणीय बृजेश 'नीरज' जी के ज़मीनी रचनाकर्म को जितना मैंने समझा है...जाना है... उससे शब्दशः हामी भरती आदरणीय ज़हीर कुरैशी जी की "कोहरा सूरज धूप' पर समीक्षा से गुज़रना बहुत अच्छा लगा..
रचनाओं में रचनाकार अपनी अन्तःवाणी को शब्द देता है और समीक्षा भी जब उसी अन्तःवाणी की प्रतिध्वनि सी सुनाई देती है तो रचनाकार भी अपनी रचनाओं की सम्प्रेशानीयता पर आश्वस्त होता है साथ ही पाठकों का भी पुस्तक से बिलकुल सही परिचय होता है...
ऐसी ही इस समीक्षा के लिए मैं आ० ज़हीर कुरैशी जी की समीक्षा के प्रति सहमत हूँ और आदरणीय बृजेश जी को उनके काव्य संग्रह 'कोहरा सूरज धूप' पर हार्दिक बधाई देती हूँ.
आदरणीया प्राची जी आपका हार्दिक आभार!
ग़ज़ल की नई विचार धारा के झंडा-बरदार आदरणीय ज़हीर क़ुरेशी द्वारा पुस्तक ’कोहरा सूरज धूप’ के कवि के प्रति यह कहा जाना कई अर्थों में उनके काव्य प्रयास को परिभाषित करता है - मुझे इस संग्रह में शब्द-लय और अर्थ-लय की अविराम अनुभूति हुई. आज की मुक्त-छंद और छंद-मुक्त कविताओं में जिस अनपेक्षित खुरदुरेपन के दर्शन होते हैं, वह बृजेश नीरज के यहाँ न के बराबर है.
ज़हीर क़ुरेशी साहब द्वारा हुई समीक्षा संक्षिप्त किन्तु अत्यंत सान्द्र है. इस सारगर्भित समीक्षा के लिए जहाँ कवि बृजेशभाई उनके आभारी हैं, हम जैसे पाठक संतुष्ट !
शुभ-शुभ
आदरणीय सौरभ जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीया गीतिका जी आपका हार्दिक आभार!
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