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ग़ज़ल -निलेश "नूर"--कितना आसान है आसान का मुश्किल होना.

२१२२, ११ २२, ११२२, २२/ ११२ 
.

आप का, ग़म में हमारे कभी शामिल होना,
अपनी क़िस्मत में नहीं था ये भी हासिल होना.
.

ये सफ़र ज़ीस्त का था, साथ चली रुसवाई,
देखना बाक़ी रहा...राह का मंज़िल होना.
.

इक सफ़र चलता रहा उसके फ़ना होने तक,
एक हसरत थी लहर की, कभी साहिल होना.

.

जश्न में डूबे हुए दिल में ख़लिश थी हरदम,
रोज़ महसूस किया, याद का...महफ़िल होना.  
.

बोझ नाक़ाम सी हसरत का उठाकर देखो,
कितना आसान है आसान का मुश्किल होना.
.

“नूर” इल्ज़ाम उठाकर लगे जीना मुश्किल,
हाय!! आसाँ भी नहीं ख़ुद का ही क़ातिल होना.  
.
निलेश "नूर"
मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 18, 2014 at 7:47am

धन्यवाद आ. सौरभ जी ..
"बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना".. गुनगुनाते हुए ये ख़याल आया था कि अक्सर आसान का मुश्किल होना बहुत आसान है सो ये शेर हुआ ..
आपकी दाद से अभिभूत हूँ ..
धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 15, 2014 at 6:13pm

मैं भी मतले पर मुग्ध हूँ.

इसके अलावा ये दोनों शेर बेहद अपने से लगे हैं - 

बोझ नाक़ाम सी हसरत का उठाकर देखो,
कितना आसान है आसान का मुश्किल होना.
.

“नूर” इल्ज़ाम उठाकर लगे जीना मुश्किल,
हाय!! आसाँ भी नहीं ख़ुद का ही क़ातिल होना. ...

ढेर सारी दाद कुबूल हो, आदरणीय नीलेश जी..

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 9, 2014 at 6:45pm

शुक्रिया आ. गुमनाम जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 9, 2014 at 6:45pm

शुक्रिया आ. मदन मोहन सक्सेना जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 9, 2014 at 6:45pm

शुक्रिया आ. शिज्जू भाई 

Comment by Madan Mohan saxena on July 9, 2014 at 3:47pm

बहुत सुन्दर गजल ,हार्दिक बधाई

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 9, 2014 at 7:01am

बहुत सुन्दर गजल हुई है। बधाई स्वीकारें.............................................


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 8, 2014 at 10:42pm

वाह आदरणीय निलेश भाई लाजवाब ग़ज़ल है खास तौर पर मत्ला बेमिसाल हुआ है

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 8, 2014 at 10:36am

शुक्रिया आ. अरुण कुमार जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 8, 2014 at 10:36am

शुक्रिया आ. वेदिका जी 

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