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क्षणिकाएँ...

1.घन गरजे घनघोर
तिमिर चहुँ ओर
तृण-तृण से तन बहे
करके सब कुछ शांत
मेह हो गया शांत

..........................

2. सावन की फुहार
सृजन की मनुहार
रंगों का अम्बार
आयी बहार
हुआ धरा का
पुष्पों से शृंगार

.......................

3.बुझ गयी
कुछ क्षण जल कर
माचिस की तीली सी
जंग लड़ती साँसों से
असहाय ये काया

.........................

4.हर शाख पर
शूल ही शूल
फिर भी महके
शूल शय्या पर
जीवन बन
सुर्ख गुलाब

..........................

5.स्वयं से अंजान
स्वयं की पहचान
स्वयं को जान
झाँक स्वयं को
स्वयं में सिमटा
जीवन-मरण का 
शाश्वत ज्ञान

6.चिलचिलाती धूप में
तालियों के शोर में
करतब दिखाती बच्ची
रस्सी से गिर पड़ी
साँसों से संघर्ष भी
भीड़ को करतब लगा
सिक्के उछलते रहे
डुगडुगी बजती रही
इक रोटी की आस में

भूख मगर सिसकती रही

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 570

Comment

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Comment by Sushil Sarna on November 5, 2014 at 6:06pm

 आदरणीय   डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव  जी रचना पर आपकी स्नेहिल   प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 5, 2014 at 3:59pm

सरना जी

बहुत सुंदर i इक रोटी की आस में  भूख मगर सिसकती रही i

Comment by Sushil Sarna on November 4, 2014 at 8:05pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी  जी आपकी मधुर ऊर्जावान प्रशंसा का हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 4, 2014 at 5:26pm

आ. सुशील सरना भाई , बहुत सुन्दर क्षणिकाओं की रचना हुई है , सभी बढ़िया लगे । आपको दिली बधाइयाँ ।
चिलचिलाती धूप में
तालियों के शोर में
करतब दिखाती बच्ची
रस्सी से गिर पड़ी
साँसों से संघर्ष भी
भीड़ को करतब लगा
सिक्के उछलते रहे
डुगडुगी बजती रही
इक रोटी की आस में
भूख मगर सिसकती रही --- लाजवाब !

Comment by Sushil Sarna on November 3, 2014 at 12:39pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी क्षणिकाओं पर आपकी ऊर्जावान मधुर प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on November 3, 2014 at 12:31pm

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी क्षणिकाओं पर आपकी आत्मीय मधुर प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on November 3, 2014 at 12:30pm

आदरणीय  khursheed khairadi jee रचना पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on November 3, 2014 at 12:28pm

आदरणीया  rajesh kumari jee   रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 3, 2014 at 12:21pm

सभी क्षणिकाएं बहुत सुन्दर हुई हैं 

........

सिक्के उछलते रहे 
डुगडुगी बजती रही
इक रोटी की आस में

भूख मगर सिसकती रही......मर्मस्पर्शी शब्द-चित्र 

हार्दिक बधाई आ० सुशील सरना जी 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 3, 2014 at 11:17am

क्षणिकाएँ बहुत सुन्दर रची हैं आ० सुशील सरना जी।  हार्दिक बधाई। 

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