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स्नेह रस से भर देना …..

स्नेह रस से भर देना …..

कुछ भी तो नहीं बदला
सब कुछ वैसा ही है
जैसा तुम छोड़ गए थे
हाँ, सच कहती हूँ
देखो
वही मेघ हैं
वही अम्बर है
वही हरित धरा है
बस
उस मूक शिला के अवगुण्ठन में
कुछ मधु-क्षण उदास हैं
शायद एक अंतराल के बाद
वो प्रणय पल
शिला में खो जायेंगे
तुम्हें न पाकर
अधरों पर प्रेमाभिव्यक्ति के स्वर भी
अवकुंचित होकर शिला हो जायेंगे
लेकिन पाषाण हृदय पर
कहाँ इन बातों का असर होता है
घाव कहीं भी हो
उसे नेत्र जल ही धोता है
उच्च पर्वत शिखरों के मध्य
दूर अन्नंत में विलुप्त होती राह
हमारी स्मृतियों की धरोहर हो गयी है
मेरे काजल युक्त अश्रु मेघों से तुम्हें
मेरी हृदय पीड़ा का आभास हो जाएगा
व्योम के इन्द्रधनुष का हर रंग
मधु क्षणों को दोहराएगा
मेरे याचक नयनों की मौन अभिलाषा
तुम्हारी नयन देहरी तक
ये पवन ले आयेगी
देखो तब
सजल नयनों के
मौन निमन्त्रण को स्वीकार कर लेना
अपनी प्रेयसी के
विरही एकाकी पलों को
अपने स्नेह रस से भर देना

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on November 20, 2014 at 6:26pm

आदरणीय  लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी रचना पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on November 20, 2014 at 6:25pm

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी रचना पर आपकी ऊर्जावान  प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on November 20, 2014 at 6:23pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव     जी रचना पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 20, 2014 at 10:22am

भावपूर्ण लाजवाब रचना मन को छू गई | हार्दिक  बधाई श्री सुशील सरना जी 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 19, 2014 at 11:25am

बहुत खूब आ० सरना जी। बहुत सुन्दर और भावपूर्ण हेतु  बधाई स्वीकारें।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 18, 2014 at 6:39pm

आमीन i ईश्वर आपकी अदम्य अभिलाषा पूरी करे i

Comment by Sushil Sarna on November 18, 2014 at 1:31pm
आदरणीया rajesh kumari जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 18, 2014 at 11:17am

बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति ..हार्दिक बधाई आ० सुशील सरना जी 

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