For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हिन्दी काव्य का फलक और अतुकांत कविता --- डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव

         

                                                   

 

           मेरे एक प्रबुद्ध मित्र ने फोनिक वार्त्ता के दौरान पद्य, कविता और काव्य के अंतर को स्पष्ट करने का अनुरोध किया तो पल भर को मै आत्मविस्मित सा हो गया I उन्होंने यह भी पूंछा कि हिन्दी साहित्य में कविता शब्द का प्रादुर्भाव कब हुआ I मेरे पास ऐसा कोई रेडी-रेकनर उपलब्ध नहीं था कि मै उन्हें तत्काल कोई आश्वस्तिपरक उत्तर दे पाता I पर तभी से मेरा मन इन प्रश्नों के प्रति चिंतनशील अवश्य हो उठा I ‘काव्य संस्कृत भाषा का शब्द है और यह अपने आप में इतना व्यापक है कि अनेक आचार्यों ने अपने-अपने ढंग से कई काव्य-संप्रदाय चलाये और काव्य- शास्त्रों की रचना की I इनकी एक संक्षिप्त झांकी इस प्रकार है -

          काव्य संप्रदाय                    आचार्य

  1. रस संप्रदाय                  भरत मुनि एवं विश्वनाथ

  2. अलंकार संप्रदाय         भामह, दंडी, उद्भट ,रुद्रट आदि

  3. रीति संप्रदाय              वामन

  4. वक्रोक्ति संप्रदाय           कुंतक

  5. ध्वनि संप्रदाय             आनंदवर्धन एवं अन्य

  6. औचित्य संप्रदाय           क्षेमेन्द्र

             उक्त विवरण से काव्य शब्द के वैराट्य का आभास होता है I वस्तुतः काव्य के व्यापक अर्थ में गद्य भी महाकाव्य की श्रेणी में आ जाता है I प्रेमचंद के गोदान को महाकाव्य (Epic) की संज्ञा हिन्दी के प्रख्यात विद्वानों ने ही दी है I मुझे याद है मेरे छात्र जीवन में प्रेमचंद के गोदान को महाकाव्य स्वीकारने में लोगो ने प्रश्न-चिह्न खड़े किये I महाकाव्य में वीर या श्रृंगार में से किसी एक को अंगी-रस के रूप में होना अनिवार्य है, जबकि गोदान में ऐसा नहीं है I तब हिन्दी के विद्वानों ने ही  तर्क दिया कि गोदान का कथानायक होरी पूरे जीवन भर जिन विषम संघर्षो से जूझता रहा वह तो कोई वीर नायक ही कर सकता है I शैली की दृष्टि से देखे तो भी गीतांजलि जैसे गद्य-काव्य को सुधी विद्वानों ने ही काव्य माना है I दृश्य-काव्य में गद्य एवं पद्य दोनों होते है पर वह भी काव्य की परिभाषा के अंतर्गत है I मैथिलीशरण गुप्त ने अपने अनुज सियारामशरण गुप्त के अनुरोध पर ही यशोधरा नामक चम्पू काव्य लिखा था जिसमे पद्य के साथ ही प्रभूत गद्य भी विद्यमान था I

             आज अधिकांशतः अतुकांत कविताये लिखी जा रही है और निस्संदेह बहुत अच्छी लिखी जा रही है पर उनका लेखक इस संकट से ग्रस्त है, हताश और परेशान है कि उसकी रचना मात्र कविता है या उसका शुमार काव्य में    भी है I मेरी अपनी समझ में काव्य का फलक इतना सीमित नहीं है कि वह अतुकांत रचनाओ को आत्मसात न कर सके I जब हम विशुद्ध गद्य को काव्य मानते आये हैं तो अतुकान्त कविता भी निस्संदेह काव्य है I  काव्य होता क्या है ? काव्य तो मात्र एक पात्र के सदृश है जिसमे कविता रूपी जल भरा रहता है I मै प्रायः देखता हूँ छंद बद्ध रचना करने वाले  अतुकांत कविताओ को महत्त्व नहीं देते और उनमे द्वन्द भी चलता है I पर यह सकारात्मक सोच नहीं है I अतुकांत लेखन भी भावाभिव्यक्ति का ही माध्यम होता है और उसमे भी रस-निष्पत्ति होती है तभी वह प्रमाता को आकृष्ट अथवा मुग्ध करती है I मैंने दोनों प्रकार की रचनाये की है I  मै यह मानता हूँ कि छंद लेखन अपेक्षाकृत कठिन है पर इससे अन्य किसी विधा का महत्व कम नहीं होता I सबके लिये  विकल्प खुले हुए है जिसकी गति जिस विधा में हो वह उस विधा में ही लेखन क्यों न करे I  कितु यह वहम पाल लेना के मेरी विधा ही अच्छी है सब मेरा ही अनुकरण करे, यह स्वस्थ मानसिकता नहीं है और न यह  सच्ची हिन्दी सेवा है I माता का शरीर है कोई सिर दबाये कोई पैर दबाये, कोई मालिश करे I  अनेक विधाएं है I हर विधा अच्छी है बशर्ते कवि उसे सम्प्रेषणीय बनाने का दम रखता हो I कितना ही अच्छा अनुभव होगा जब अतुकांत कविता में कोई प्रबंध-काव्य लिखा जाय और उसकी जयकार हो I

             कवि एवं काव्य शब्द यदि संस्कृत का है तो कविता निश्चित ही हिन्दी का शब्द है और इसकी व्युत्पत्ति अवश्य कवि अथवा काव्य शब्द से ही हुयी होगी I कविता के इतिहास के प्रमाण से हम जानते है कि हिन्दी कविता की आयु बहुत अधिक नहीं है I फिर भी हजार वर्ष से अधिक का समय तो हो ही चुका है I कविता शब्द भी लगभग इतना ही पुराना होना चाहिए I हिन्दीशब्द-सागर में कविता को निम्नप्रकार परिभाषित किया गया है

कविता
संज्ञा स्त्री० [सं०] मनोविकारों पर प्रभाव डालनेवाला रमणीय पद्यमय वर्णन । काव्य ।

       उक्त परिभाषा में कविता को काव्य कहा गया है और रमणीय पद्यमय वर्णन भी कहा गया है I यदि पद्य की बात की जाय तो शास्त्रीय पद्धति पर रची गयी चतुष्पदीय रचना को पद्य कहते है I

पद्य
संज्ञा पुं० [सं०] १. पिंगल के नियमों के अनुसार नियमित मात्रा वा वर्ण का चार चरणोंवाला छंद। कविता। गद्य का उलटा।

               परिभाषाओ और अर्थो के घालमेल से कविता, काव्य और पद्य एक जैसे ही प्रतीत होते है और यह सत्य है क्योंकि वीरगाथाकाल से लेकर पूर्व आधुनिक काल तक तो हिन्दी कविता का ढांचा छंद बद्ध ही था I रीति-काल में लक्षण ग्रन्थ लिखे ही इसलिए गए कि नए कवि छंद के लक्षणों को समझे i उस समय छंद  बंधन ही काव्य का निकष हुआ करता था I उस समय का तो  Slogan ही यही था

             तंत्री नाद कवित्त रस  सरस-राग रस-रंग

               बूड़े  अनबूड़े  तिरे  जे  बूड़े  सब  अंग

       अतः उस काल तक यदि इन तीनो शब्दों के समान अर्थ रहे हों तो इसमें आश्चर्य ही क्या ? लेकिन जब मुक्त छंद में अथवा छंद मुक्त रचनाओ का चलन प्रारंभ हुआ तो कविता, काव्य और पद्य के अर्थ भी उत्तरोत्तर व्यापक होते चले गए I रबर छंद, केचुआ छंद, अकविता, अगीत, प्रगीत, नव-गीत एवं अतुकांत कविता सभी को इन शब्दों ने आत्मसात कर लिया I आज अतुकांत कवि कविता के अंतर्गत अपनी पहचान तलाश रहे हैं I वे भ्रमित है कि उनकी रचनाये पद्य है, काव्य है, कविता है अथवा नहीं या फिर वे महज कविता है काव्य और पद्य नहीं है  नहीं है I उन मित्रो को मै पूरे भरोसे के साथ बताना चाहूँगा कि उनका सम्पूर्ण कर्तृत्व पद्य है, काव्य है और कविता है I भाषा विज्ञान के अनुसार भी वही भाषा अपना भंडार निरंतर समृद्ध करती है जिसमे नए अर्थो और संभावनाओ को आत्मसात करने की शक्ति विद्यमान होती है I अतः हिन्दी भाषा के इन शब्दों को संकुचित अर्थ में न देखें I इनके आयाम अब बदल चुके है और आगे भी जब-जब काव्य विधा में कोई नवीन प्रयोग या  परिवर्तन होगा तब-तब ये शब्द अधिकाधिक भास्वर एवं अर्थपूर्ण होते जायेंगे I

 आज जो कवि छंदोबद्ध रचना कर रहे है, वे हमारी विरासत की रक्षा कर रहे है I उन्हें उनके पथ पर चलने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए I किन्तु इससे से विकास का मार्ग नहीं रुकता I जो नवीनता के आग्रही है उनका मार्ग तो स्वतः प्रशस्त है I यह भी एक प्रकार का जनरेशन गैप है I  मेरे जैसे वरिष्ठ के फेवरिट यदि मैथिलीशरण गुप्त, हरिऔध, पन्त, निराला, और महादेवी वर्मा जैसे कवि है तो आज के युवा शमशेरसिंह, भवानी प्रसाद मिश्र, नागार्जुन, त्रिलोचन, केदारनाथ सिंह और धूमिल की बात करते है और गर्व से पूंछते है कि आपने इन्हें पढा है I  फिर वही कहते है- हाँ, मैंने पढा है I  पर मै उनसे यह नहीं पूंछ पाता कि तुमने रत्नाकर को पढा है I विद्यापति को पढा है ? ऐसा ही कुछ द्वन्द छंद के समर्थको और अतुकांत रचनाकारों के बीच है जो शाश्वत नहीं है I एक दिन ऐसा आएगा जब छंद रचनाकार ढूँढने पर भी नहीं मिलेगा पर तब अतुकांत रचनाकारों को बहुत संभव है नवागत भावी पीढ़ी के किसी अजगुत रुझान का संकट सताने लगे और नये कवि उन्हें आउट-डेट कहने लगे I पर साहित्य में अधिकांशतः प्रवृत्ति आउट-डेट नहीं होती I वह एक निश्चित कालखंड में प्रज्वलित होती है, अपना प्रकाश फैलाती है और फिर सुसुप्त हो जाती है i जैसे जीवो में छिपकली और मेढक कुछ समय के लिये Hybernate  करते हैं I

                 चंदबरदाई ने यदि छप्पय छंद का अधिकाधिक उपयोग किया तो आज के नौजवान जो छंद प्रेमी है वह इसे चुनौती मानते हैं और उनमे से अनुजवत एक युवा कवि धीरज मिश्र है जिन्होंने मुझसे स्वयं कहा कि वे छप्पय में रचना करेंगे I यह उनकी प्रतिबद्धता है I परन्तु यह भी सच है कि कतिपय प्रवृत्तियां दुहराई न जाने से या काल के प्रभाव् से अपौरुषेय हो जाती है I आज हम में से कितने लोग पालि, प्राकृत, अपभ्रंश अथवा डिंगल को जानते है ? जब भाषा ज्ञान ही नहीं बचा तो उसमे काव्य रचना करना आज के समय में अपौरुषेय ही कहा जायेगा I किन्तु हिन्दी की आदि छंद परंपरा अभी जीवित है I जिन्होंने छंद शस्त्र का तनिक भी अध्ययन किया होगा वह जानते है कि एक ही छंद के कितने अधिक भेद और उपभेद है I सोलह मात्राओ के संस्कारी छंद के 1597 भेद है I अठारह मात्राओं के  पौराणिक छंद के 4181 भेद है I इसी प्रकार बीस मात्राओं वाले महादैशिक छंद के 10946 भेद है I तात्पर्य यह है कि छंदों की संख्या अपने भेदों एवं उपभेदो सहित लाखो में है और वर्तमान में जो छंद छंद प्रभाकर प्रभृति पुस्तकों में उपलब्ध होते है उनकी संख्या अधिक से अधिक 600 या 650 होगी और इनमे भी  अपवाद को छोड़कर अधिकांश कवियो की पहुँच 20 या 25 छंदों से अधिक नहीं होगी I दोहा छंद के ही 23 भेद है और सभी प्रकार के दोहे शायद ही किसी विद्याव्यसनी ने किसी अभियान या योजना के अंतर्गत लिखे हों I छंद का इतना अल्प ज्ञान रखकर भी यदि हम किसी नवीन काव्य-प्रवृत्ति की अनदेखी करते है या उसके समर्थको से द्वन्द करने पर उतारू होते है तो यह मात्र अविचरिता ही है I हिन्दी के सुधी विद्वानों एवं सेवको को इससे परहेज करना चाहिए I   

                                                                                                     ई एस -1 /436, सीतापुर रोड योजना कॉलोनी

                                                                                                              सेक्टर-ए, अलीगंज , लखनऊ I

(मौलिक व् अप्रकाशित )

Views: 3900

Reply to This

Replies to This Discussion

कविता की बारी मई लिखे गए रोचक और ज्ञानवर्धक लेख के  लिए बहुत बधाई

मुकेश जी

आपका सादर आभार  i

ऐसा लगा ज्ञान के सागर में गोते लगा रहा हूँ, हो सकता है कुछ सीपियाँ हाथ लगी हो ...समयानुसार निखार आए तो समझूं कुछ अर्जित कर सका हूँ. आपका हार्दिक अभिनन्दन!

जवाहरलाल जी

आपका अतिशय आभार i

बहुत ही उत्कृष्ट लेख लिखा है आपने आ० डॉ० गोपाल नारायण जी,बहुत सी भ्रांतियाँ दूर हुई आपके विचारों से पूर्णतः सहमत हूँ हिन्दी साहित्य सागर है तो सब विधाएं उसमे विलीन होने वाली बहुमूल्य मणियाँ हैं सभी काव्य है |बहुत अच्छा लगा ये आलेख पढके बहुत बहुत बधाई आपकी लेखनी को नमन  सादर . 

महनीया

आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया से संबल मिला i आपका बहुत बहत आभार i सादर i

आ.निसन्देह ये लेख मेरे जैसे रचनाकारों की कई दुविधाओं का समाधान करता है ,मेरे मन में भी हताशा और भ्रम था कि मैं जो कविता लिखने की कोशिश करता हूँ ,क्या वो कविता है भी ?पर अब बादल हटते प्रतीत होते हैं |जीवन की विविधताओं की तरह काव्य भी विविध और व्यापक है और एक रचनाकर की भूमिका में हमें सृजन के लिए कार्यशील रहना चाहिए ,

इस शोधपूर्ण लेख के लिए तहे दिल से शुक्रिया 

प्रिय सोमेश जी

आपकी प्रतिक्रिया से लगा कि लेख लिखना शायद सफल हुआ i बहुत बहुत आभार i  स्नेह i

आदरणीय डॉ साहब,
यह मत पूछिएगा कि क्यों मैंने इतनी देर से आपका लेख पढ़ा....लेकिन आज जब मैंने इसे पढ़ा तो मुग्ध हो गया आपकी साहित्यिक ईमानदारी और तत्सम्बंधी चारित्रिक बलिष्ठता से. जिस प्रकार सहज और स्पष्ट रूप से आपने कविता अथवा काव्य की व्याख्या की है उससे ढेर सारे द्वंद्व, अनिश्चयता, संकोच का अंत होकर नये युग के नये कवि को प्रेरणा मिलती है कि वह अपने भाव व्यक्त करे निर्भय होकर. हाँ, इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि अतुकांत कविता के भी अपने नियम होते हैं, अनुशासन होता है, सीमाएँ होती हैं. उससे भटक जाने पर आलोचना की ओखली में तो रचनाकार को पिसना ही होगा.
आप लिखते हैं // शैली की दृष्टि से देखे तो भी गीतांजलि जैसे गद्य-काव्य को सुधी विद्वानों ने ही काव्य माना है// क्षमा करें लेकिन गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की 'गीतांजलि' को आपने गद्य-काव्य क्यों कहा यह बात समझ में नहीं आ रही है. मुझे लगता है कि आपने अनुवाद के रूप में गीतांजलि की जो रचनाएँ पढ़ी हैं उसीसे आपने यह निष्कर्ष निकाला है. मूल बांग्ला में रचित गीतांजलि की रचनाएँ अधिकांशत: छंदबद्ध हैं और गेय भी. मैं आपको मूल रचना पढ़कर सुनाऊंगा फिर आपके विचार जानने की इच्छा रखता हूँ.
बहरहाल, एक समयोचित और बहु उपयोगी लेख के लिए आप अतिशय प्रशंसा के और आदर के पात्र हैं. मेरा अभिवादन स्वीकार करें. सादर.

dad

दादा श्री

आपने सत्य ही कहा मैंने टैगोर जी की अनूदित रचनायें ही पढी है  i बंगला भाषा का ज्ञान मुझे नहीं है  i मगर मैंने कही पढा था कि उनकी गीतांजलि अतुकांत है i हो सकता हो उस लेखक को भी ऐसा ही भ्रम रहा हो i किन्तु अब आप ने भ्रम निवारण किया है i इस हेतु आभार i आपसे टैगोर जी को अवश्य सुनूंगा  सादर  i

ज्ञानवर्धक और उत्कृष्ट लेख लिखा है आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर .. आपको हार्दिक बधाई और आपकी लेखनी को सादर नमन 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
7 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
yesterday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service