परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 53 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह भारत के प्रसिद्ध शायर जनाब बशीर बद्र साहब की ग़ज़ल से लिया गया है| पेश है मिसरा ए- तरह
"ये चाँद बहुत भटका सावन की घटाओं में "
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मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 26 दिसंबर दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 27 दिसंबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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कागज की भी कश्ती का हमको न तजुरबा था!
और नाव चले लेकर तूफानी हवाओं में!!
इस् बेहतरीन शेर के लिये दिली दाद आदरणीय राहुल जी..............
शैतान किये हैं घर जब चार दिशाओं में
किस सोच में डूबा है भगवान खलाओं में खला - आसमान
है धर्म की बैसाखी बातों में, सदाओं में
पर क्यों न खुदा दिखता मासूम अदाओं में
नश्लों की तबाही है पुरखों की खताओं में
हर उम्र गुजरनी है अब यार अजाओं में अजा-शोक मनाना
है प्रश्न जो समझे हैं खुद को भी खुदाओं में
मासूम हँसी कब तक डूबेगी अनाओं में अना - पीड़ा
कुछ आब करो पैदा संसार दुआओं में
जो जह्र न धुलने दे अब और हवाओं में
है प्यास अभी बाकी शायर की कताओं में कता - अंदाज
सागर सा उमड़ता है उन मौन सलाओं में सला - निमंत्रण
आयेगी तपिष कैसे इन सर्द हवाओं में
ये चाँद बहुत भटका सावन की घटाओं में
(मौलिक व अप्रकाशित)
जबरदस्त लक्ष्मण जी ... क्या प्रयोग किये हैं ...
आ० भाई दिगंबर जी , प्रसंशा के लिए हार्दिक धन्यवाद l
आ० भाई दिनेश जी , यह आप सभी का स्नेह ही है जो अपनी और से बेहतर लिखने का प्रयास कर पाता हूँ l स्नेह बनाये रखें l
आ० भाई खुर्शीद जी , हार्दिक धन्यवाद l
बहुत खूब ! आदरणीय लक्ष्मण भाई , पूरी ग़ज़ल आपने मतला और हुस्ने मतला कही है , वाह ! बधाइयाँ ।
आ० भाई गिरिराज जी , आपका स्नेह पाकर धन्य हुआ ल शुभ शुभ ....
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