For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रणाम      

 

देश के वीरों को प्रणाम

उन शहीदों को सलाम

हमारे कल के लिए नव कोपलों का बलिदान

माताओं ने किये बेटे कुर्बान

बहिनों ने दिया सुहाग का दान

सदियों सदा याद रखेगा हिंदुस्तान

 

संतान

 

देश के लिए जान दे

देश भक्ति का ज्ञान दे

राष्ट्र भाषा को मान दे

माँ ऐसे संतान दे.

 

आंसू

 

आंसुओं को यों ही पीते रहे

होंठों को यों ही सीते रहे

मज़बूरी में सितम सहते रहे

किसी की खातिर यों ही जीते रहे.

 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 560

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Mathpal on March 18, 2015 at 11:56am

 आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला ji,

बहुत आभार

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 18, 2015 at 11:35am

सुंदर  और  भावपूर्ण प्रस्तुति  के लिए बधाई 

Comment by Shyam Mathpal on March 18, 2015 at 10:54am

आदरणीय सौरभ पांडे जी ,

बहुत आभार .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 18, 2015 at 5:20am

आपका मंच पर स्वागत है, आदरणीय श्यामजी.

शुभ-शुभ

Comment by Shyam Mathpal on March 17, 2015 at 11:39am

Aadarniya Rajesh Kumari Ji,Aadarniya Er.Ganesh Jee ji,Aadarniya Krishna Mishra ji, Aadarniya Dr.Vijai Shanker Ji wa Aadarniya Mohan Sethi Ji.

Aap Sabhi ke bahumulya comments ke liye tahe dil se bahut dhanyabad ---- Sukriya . Aap yon hi hausala badhate rahiye.  Aadaniya Bagi Ji sujhav ke liye bahut dhanyabad.

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 17, 2015 at 4:18am

देश के वीरों को प्रणाम....माँ ऐसे संतान दे......बधाई स्वीकार करें 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 16, 2015 at 10:06pm
देश प्रेम की अच्छी क्षणिकाएँ , बधाई , श्याम मठपाल जी, सादर।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 16, 2015 at 9:58pm

देश के लिए जान दे

देश भक्ति का ज्ञान दे

राष्ट्र भाषा को मान दे

माँ ऐसे संतान दे.

खूबसूरत क्षणिकाएं बहुत- बहुत बधाई  आदरणीय shyam mathpal जी !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 16, 2015 at 9:34pm

तीनों क्षणिकाएं अच्छी लगीं, प्रथम का प्रवाह बाधित है, 

सदियों सदा याद रखेगा हिंदुस्तान

सदियों के साथ सदा की जरुरत नहीं है, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आदरणीय श्याम मथपाल जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 16, 2015 at 9:19pm

सुन्दर भाव युक्त क्षणिकाएं बहुत- बहुत बधाई .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
18 minutes ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
30 minutes ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
2 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
3 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
12 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service