किसी ने सच ही कहा है कि समय के पंख होते हैं। अब देखिये न देखते ही देखते पाँच साल गुज़र गए और हमारा प्रिय ओपनबुक्स ऑनलाइन छठे वर्ष में भी प्रवेश कर गया। सफर बेहद खुशनुमा रहा, रास्ते आसान नहीं थे। मगर हमसफ़र हमेशा ही दिलदार थे, समय समय पर रास्ता दिखाने वालों का साथ मिलता रहा - अब भी मिल रहा है। एक इकहरी शाख़ को एक छतनार शजर बनते हुए देखने का अनुभव कितना सुखद कितना जादुई होता है। तक़रीबन पाँच साल पहले गणेश जी बागी के नेतृत्व में इस सुहाने सफर की शुरुयात् हुई थी। उस समय भले ही जोश का बोलबाला था किन्तु एक जज़्बा था, एक आग थी सभी के अंदर कुछ कर गुजरने की। समय गुजरने के साथ ही जोश और होश का सुमेल होना प्रारम्भ हुआ और उस आग को एक मशाल का रूप मिला। उस मशाल को लेकर रौशनी बांटने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह निर्बाध जारी है।
इन गत पाँच वर्षों में ओबीओ परिवार न केवल अकार ही में बड़ा हुआ बल्कि साहित्यिक क्षेत्र में इसके सम्मान में भी कई गुणा वृद्धि हुई है। इसका सारा श्रेय मँच के शुभचिंतकों को जाता है। क्योंकि हमने पांच साल पहले जिस परिवार की कल्पना की थी, उसको साकार करने में इन्ही साहित्यानुरागियों की महान भूमिका है। इस अवसर पर मैं उन सभी महानुभावों का ह्रदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ।
मुझे यह बताते हुए बेहद हर्ष हो रहा है कि हमारे दो आयोजन; "ओबीओ लाईव महा-उत्सव" तथा "ओबीओ लाईव तरही मुशायरा" अपनी "स्वर्ण जयंती" मना चुके हैं। तीसरा आयोजन "ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" भी इसी वर्ष अपनी पचासवीं पायदान पर चढ़ने वाला है। यह तीनो आयोजन विश्व भर के साहित्य प्रेमियों के आकर्षण का केंद्र बन चुके हैं, इन तीन आयोजनों से इस मँच का कद और भी बुलन्द हुआ है। छंद और ग़ज़ल क्षेत्र में इन आयोजनों के माध्यम से ओबीओ के योगदान की सर्वत्र भूरि-भूरि प्रशंसा की जा रही है।
पारदर्शिता एवं लोकतांत्रिक क्रियाकलाप ओबीओ का एक मूल मंत्र रहा है। हर छमाही नई प्रबंधन समिति एवं कार्यकारिणी का चुनाव इसकी निशानी है। बिना किसी भेदभाव या राग-द्वेष के नवांकुरों को प्रोत्साहित करना हमारा उद्देश्य रहा है। हमें अपनी उपलब्धियों पर मान अवश्य है किन्तु किसी प्रकार का घमंड या खुश-फहमी क़तई नहीं। हमारे कार्यों में भी कोई कमी-बेशी अवश्य रही होगी। यदि सम्माननीय सदस्य इस और भी रौशनी डाल सकें तो बहुत अच्छा रहेगा। उन कमियों को सुधारने में मदद मिलेगी। इसके अतिरिक्त भी मँच को बेहतर बनाने हेतु यदि कोई सार्थक सुझाव देना चाहें, तो हार्दिक स्वागत है।
पिछले काफी समय से हमारे लघुकथाकार साथियों की यह मांग रही है कि मंच पर लघुकथा से सम्बंधित एक मासिक आयोजन भी रखा जाए। मेरा निजी मत भी यही है कि मँच पर एक आयोजन ऐसा हो जहाँ सदस्यगण लाईव किसी प्रदत्त विषय/चित्राधारित अपनी लघुकथाएँ पोस्ट कर सकें। उन लघुकथायों के गुण-दोषों पर विस्तृत समीक्षा की जाए। ओबीओ ने भारतीय शास्त्रीय छंदों पर उल्लेखनीय काम हो रहा है। ग़ज़ल पर भी महत्वपूर्ण काम हुआ है, अब लघुकथा पर भी सार्थक काम करने का समय भी अब आ चुका है। इस सिलसिले में आदरर्णीय सदस्यगणों की राय का इंतज़ार रहेगा।
अंत में इस शुभ अवसर पर मैं ओबीओ संस्थापक भाई गणेश जी बागी को हार्दिक धन्यवाद कहना चाहूँगा जिन्होंने हम सब को यह महान आकाश बख्शा । जिसमे हम सभी को उड़ान भरने में सक्षम किया। प्रबंधन समिति एवं नई पुरानी कार्यकारिणी के सदस्यों ने जिस प्रकार कंधे से कंधा मिलकर, लगन और निष्ठा के साथ जो योगदान दिया है, उसके लिए भी मैं हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। मैं आशा करता हूँ कि पाँच वर्ष पहले प्रारम्भ हुआ यह सफर अपनी मंज़िल की तरफ यूँ ही बढ़ता चला जाएगा।
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आ० अनुज
आपने अपने लेख में ओ बी ओ के पांच साल के सफ़र पर बड़ी ख़ूबसूरती से प्रकाश डाला और भविष्य की योजनाओ पर भी विचार किया . आपका आलेख स्वागत योग्य है औएर मैं व्यक्तिगत रूप से एतदर्थ आभारी हूँ . सादर .
वह पथ क्या पथिक सफलता क्या जब पथ पर बिखरे शूल न हों I
नाविक की धैर्य परीक्षा क्या जब धाराएं प्रतिकूल न हों
आपके स्नेहिल शब्दों से अभिभूत हूँ आ० डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी। परिवार में स्नेह इत्तेफ़ाक़ यूँ ही बना रहे, यही कामना है।
ओपन बुक्स ऑनलाइन मंच की पांचवी वर्षगाँठ पर ओ. बी. ओ परिवार से जुडे सभी स्नेही गुनीजनो को हार्दिक बधाई. मंच का पांच साल का साहित्यिक सेवा का सफर अपने आप में एक उपलब्धि है | ईश्वर से प्रार्थना है कि मंच भविष्य मे भी निरंतर प्रगति के सोपान चढे एवं उत्तरोत्तर सफलता के मार्ग की ओर अग्रसर हो.
सादर बधाई
मैं इन उपलब्धियों को "पड़ाव" का नाम दूँगा आ० सत्यनारायण सिंह जी। सफर अभी बहुत बाकी है, लेकिन विश्वास है कि पाँच वर्ष पहले प्रारम्भ हुआ यह काफिला शीघ्र ही मंज़िल से चार क़दम आगे होगा।
आ. योगराज जी सादर,
यह बात सोलह आने सच है कि यदि सोच सकारात्मक हो तो जीवन में कुछ भी असंभव नहीं. अगर दृढ़ता और जज्बा है तो किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है आपकी इस सकारात्मक सोच और दृढ जज्बे को मैं सलाम करता हूँ आदरणीय
सादर
इस उपलब्धिपूर्ण अवसर OBO की पूरी टीम को एवं हम सभी को बधाई :)
हार्दिक आभार भाई नीरज कुमार नीर जी।
obo मंच के पांच वर्ष पूर्ण होने और स्थापना दिवस के अवसर पर सभी परिवारजनों को हार्दिक बधाईयां!!हम आभारी है आ० बागी सर और obo की पूरी टीम को जिन्होंने हमें यह उज्जवल मंच प्रदान किया है!आप सभी गुरुजनों का आशीर्वाद हम सभी सदस्यों को इसी प्रकार मिलता रहें ईश्वर से यही प्रार्थना है!!
बहुत बहुत शुक्रिया भाई "जान गोरखपुरी" जी।
पाँच वर्ष पूर्ण करने पर ओबीओ के समस्त सदस्यों एवं खासतौर पर आदरणीय श्री योगराज सर एवं श्री गणेशजी बागी को बहुत बहुत बधाई। मुझे ओबीओ से जुड़े दो वर्ष हो गये पता ही नहीं चला समय कैसे बीत गया। इसी ओबीओ में मैंने ग़ज़ल की मूलभूत बातें सीखा है ओबीओ को धन्यवाद एवं शुभकामनायें।
आपने ग़ज़ल की शिक्षा पाई तो हमने आपके रूप में एक कर्मठ सदस्य। दोनों ही अपने उद्देश्य में सफल रहे भाई शिज्जु जी। वो कहते हैं न - "और जीने को क्या चाहिए …… "
ओबीओ के पाँच वर्ष पूरे हो गए...वाह वाकई बेहद खुशी की बात है ..आदरणीय योगराज सर , आ. बागी जी तथा ओबीओ टीम को बहुत -2 बधाइयां ...भविष्य के लिए ढे़रो शुभकामनाएं.. साल दर साल प्रगति की राह पर बढता रहे...
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