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आदरणीय धर्मेन्द्र जी आज अनायास इस समुह में प्रवेश करते ही मेरे काव्य संग्रह पर की गई समीक्षा पर नजर पडी । यकिन मानिए इतनी अाश्चर्यमिश्रित खुशी हुई कि बयान नहीं कर सकती । मुझे बिल्कुल संज्ञान नहीं था कि आपने समीक्षा लिखी है और करीब एक महिना से उपर हो गया है पोस्ट हुए।
कवि के तौर पर बेहद ईमानदारी से लिखी गई समीक्षा के लिए हृदय तल से आभारी हूँ । पुस्तक मेले में किए गए वादे को अापने गंभीरता से लिया , समय दिया इसके लिए आभारी हूँ।
शुक्रिया महिमा जी। मैं वादा करता हूँ तो निभाने की पूरी कोशिश करता हूँ। वैसे किसी अच्छे रचनाकार की समीक्षा विश्वसनीय नहीं होती। इसका कारण आस्कर वाइल्ड के शब्दों में कहूँ तो एक अच्छा रचनाकार जिस तरह की रचनाएँ वो करता है उन रचनाओं में ही इतना डूब जाता है कि उसे किसी और तरह की रचना अच्छी नहीं लगती इसलिए एक बेहतर समीक्षा वही लिख सकता है जो ख़ुद अच्छा रचनाकार न हो। आपको समीक्षा अच्छी लगी तो मुझे अपने रचनाकार होने पर संदेह हो रहा है। :)
// एक अच्छा रचनाकार जिस तरह की रचनाएँ वो करता है उन रचनाओं में ही इतना डूब जाता है कि उसे किसी और तरह की रचना अच्छी नहीं लगती इसलिए एक बेहतर समीक्षा वही लिख सकता है जो ख़ुद अच्छा रचनाकार न हो //
ऑस्कर वाइल्ड अनगढ़ रचनाकार रहे होंगे. हा हा हा..
हा, हा, हा। आदरणीय सौरभ जी, उन्होंने कोई समीक्षा नहीं लिखी केवल समीक्षा के बारे में एक विस्तृत लेख लिखा है। उसे पढ़कर मैं आश्चर्यचकित रह गया। उनके अनुसार समीक्षा पक्षपात पूर्ण होनी चाहिए लेकिन पूर्वाग्रह से मुक्त होनी चाहिए और अच्छी समीक्षा अपने आप में एक रचना होती है उसमें समीक्षक वहाँ तक पहुँचता है जहाँ तक रचनाकार भी नहीं पहुँचा होता। बाकी रचनाकार तो वो खैर बहुत अच्छे थे।
जिस आत्मीय संलग्नता के साथ आदरणीय धर्मेन्द्रजी ने महिमा श्री की उनकी सद्यः प्रकाशित पहली पुस्तक पर अपने विचार रखे हैं उसमें शुभकामनाओं के भाव मुखर हैं.
इस पुस्तक के लोकार्पण आयोजन में महिमाश्री की इस पुस्तक पर मैंने कई बातें कहीं थीं, लेकिन अधिक बातें वो थीं जो मैंने नहीं कही थीं. महिमा को मेरे सम्बोधन के बाद शिकायत थी कि मैंने विशेष कुछ कहा क्यों नहीं था. वस्तुतः जब आठ पुस्तकॊं का समेकित लोकार्पण हो तो समय अधिक बड़ा कारण होता है जिसके बिना पर कोई आयोजन संचालित होता है. किन्तु, आज उस न कहे की भरपाई हो गयी.
हार्दिक शुभेच्छाएँ ..
शुक्रिया आदरणीय सौरभ जी
आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी संतुलित समीक्षा के लिए बधाई
आदरणीया महिमा श्री जी को उनकी प्रकाशित पहली पुस्तक ‘अकुलाहटें मेरे मन की’ काव्य संग्रह हेतु शुभकामनायें ।
शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश जी
बहुत ही उम्दा बात कही आपने...वाकई दावं पर सबकुछ तो रचनाकार का ही लगा होता है. शब्द चुनाव के लिए विशेष बधाई
शुक्रिया आदरणीय गौरव जी
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