For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

व्यक्तिगत जीवन की व्यस्तताओं व विवशताओं के कारण पूर्व की भाँति न तो लिख पा रहा हूँ और न ही प्रतिक्रिया ही प्रकट कर पा रहा हूँ किन्तु ओबीओ पर पोस्ट रचनायें प्रतिदिन नियमित तौर पर पढ़ रहा हूँ. हाँ ! मासिक आयोजनों में सक्रिय रहने की यथा शक्ति कोशिश अवश्य कर रहा हूँ.

पहले हर सदस्य हर विधा पर प्रयासरत दिखता था.इन्हीं विविध विधाओं के कारण जहाँ यह मंच बहुरंगी छटा बिखेरता था वहीं मुझ जैसे रचनाकार ने भी कविता, गीत, छन्द, गज़ल, बाल गीत, आंचलिक गीत, लघु कथा जैसी विभिन्न विधाओं पर रचना कर पाने का गौरव प्राप्त किया.

इन रचनाओं की शुरुवात हुई सहज त्रुटियों के साथ फिर मंच के परस्पर सीखने-सिखाने के विशिष्ट तत्व के कारण वे परिमार्जित होती गईं."बहुत अच्छा" का गर्व तो नहीं किन्तु "कुछ अच्छा"  के आत्म विश्वास ने मुझे  अपने अंचल में भी पहचान दिलाई.

आज इस मंच पर न जाने क्यों मुझे एकरसता नजर आ रही है. जो जिस  विधा में लिख रहा है, वह उस विधा में ही रमा हुआ नजर आ रहा है. पहले सा बहुरंगी वातावरण न जाने क्यों मुझे नहीं दिखाई दे रहा है.

हो सकता है मेरा भ्रम हो. "सुझाव व शिकायत" के माध्यम से आप सुधि पाठकों से अनुरोध कर रहा हूँ कि अपने विचार प्रकट कर मेरे भ्रम का निवारण करने में मेरी सहायता करेंगे.

Views: 1833

Replies to This Discussion

आदरणीय अरुण सर,

आपने बिलकुल सही कहा है, जो जिस  विधा में लिख रहा है, वह उस विधा में ही रमा हुआ नजर आ रहा है. 

और ऐसा करते हुए मंच की मूल भावना सीखने सिखाने की परंपरा और कार्यशाला की संकल्पना का उद्देश्य अपेक्षाकृत वैसा पूरा नहीं हो रहा है जैसा होना चाहिए.

जो जिस विधा में सिद्धहस्त है वह केवल उसी विधा में लिखकर केवल वाहवाही बटोर रहा है और अन्य विधाओं की तरफ झाँकने का प्रयास भी नहीं कर रहा है. जबकि प्रतिमाह आयोजित होने वाले चार लाइव आयोजन - लाइव महोत्सव, छंदोत्सव, तरही मुशायरा और लघुकथा गोष्ठी में सहभागिता निभा ली जाए तो मंच पर प्रचलित लगभग सभी विधाओं में रचनाकर्म हो जायेगा. लेकिन एक विधा में लिखने वाले दुसरी विधा आधारित आयोजन में भी शरीक नहीं होते. यहाँ तक कि ओबीओ मेनेजमेंट टीम के सदस्य भी सम्मिलित नहीं होते. भई समय का टोटा सबका है. यहाँ बात सीखने की उत्सुकता और इच्छाशक्ति की है. 

आपका कहना बिलकुल सही है. ओबीओ में पहले सा बहुरंगी वातावरण लाने के लिए सबसे पहले ओबीओ मेनेजमेंट टीम के सदस्यों को ही आगे आना होगा. और सभी साथियों को इस दिशा में प्रेरित करना होगा. और सभी लाइव आयोजनों में सहभागिता निभानी होगी. भले ही शुरूआती सहभागिता एक पाठक के रूप में हो जो धीरे धीरे स्वतः रचनाये करने के लिए प्रेरणा होगी.

साथ ही दागो और भागो वाली प्रवृत्ति को भी छोड़ना होगा. यहाँ  रचनाकारों की संख्या, पाठक संख्या से अधिक होती दिखाई दे रही है. जो किसी विधा का रचनाकार नहीं है वो कम अज कम पाठक तो बन ही सकता है रोज लेटेस्ट ब्लोग्स में 20 रचनाये प्रदर्शित होती है जिसमे किसी भी रचना पर 20 कमेंट्स भी नहीं आते. जब 20 रचनाकार है तो कम से कम 20 पाठक तो हो.

बातें बहुत है मगर आज इतनी ही .... शेष चर्चा के आगे बढ़ने के साथ साथ 

सादर 

आदरणीय अरुण निगम सर की चर्चा क्या यह मेरा भ्रम है ? मुखपृष्ट पर प्रदर्शित नहीं हो रहा है इसकी लिंक यदि मुखपृष्ट हो तो सभी चर्चा में सम्मिलित हो सकेंगे.

आदरणीय निगम साहब, आप से पुनः अनुरोध है कि यह चर्चा मुख्य फोरम में पोस्ट करें, तत्पश्चात टिप्पणी दाता अपनी टिप्पणी कॉपी पेस्ट कर लें. 

आदरणीय अरुण जी

जो हम सब शिद्दत से अनुभव करते थे , उसे आपने चर्चा का बिंदु बनाया , इसके लिए हम आपके आभारी हैं  i आपके कथन से पूरी सहमति  जताते हुए मैं  कहना चाहता हूँ कि आ0 सौरभ जी, मिथिलेश जी , भंडारी जी,  लडी वाला जी   जैसे कुछ ही साहित्य प्रेमी ऐसे है जिनमे सीखने की ललक दिखती है  i समूह और फोरम की और लोगों में  रूचि ही नहीं है i लिखना तो दूर लोग पढ़ना भी पसंद नहीं करते i यह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है कि  मैं  तुझे खुजाता हूँ , मुझे तू खुजा I लोग आनन् फानन में बड़े साहित्यकार बनना  चाहते है i उन्हें पता ही नहीं की यहाँ बुजुर्ग भी सीखता है और यह एक अविरल  प्रक्रिया है I  किसी  रचनाकार को सही मार्गदर्शन भी चुभता है  i वह आपकी रचनाओ पर आना ही बंद कर देता है  I ऐसी बहुत सी समस्याएं है i एडमिन  चाहे तो इसमें कुछ सुधार हो सकता है  जैसे  वह फोरम या समूह  में  लेखक या पाठक की हैसियत से सहभागिता  सक्रिय  सदस्य या उत्कृष्ट लेखन के लिए अनिवार्य कर दे या फिर  समूह  या फोरम के लिए भी प्रति माह एक  डिस्कसन  आयोजित किया जाए  i पुरस्कारों में भी खामी है i  अभी तक  पुरस्कार के प्रमाण पत्र निर्गत नही हो  पाए है ,जबकि उत्साह वर्धन के लिए यह तो परम आवश्यक है  i आ० एडमिन स्वयं सक्षम है वह नये रास्ते तलाश सकता है और बना भी सकता है  i  बाकी  जो जैसा सक्षम हो उस पर चले.  सादर .

आदरणीय गोपाल नारायनजी, आप से पुनः अनुरोध है कि चर्चा ’फोरम’ में हो रही है, आप अपनी इस टिप्पणी को भी वहीं पेस्ट कर दें.
सादर

आदरणीय अरूण जी जुनून तो इतना है कि जी चाहता है पुरे दिन ओबीओ से जुडा रहूँ। इस मंच का मैं बहुत कर्जदार हुँ यहीं से मैनें काव्य की बारींकिया जानी है मगर जान कर भी उन पर प्रयोग नहीं कर पा रहा हुँ। कुछ पारीवारिक समस्या, बहुत सी जिम्मेदारियाँ कुछ पुलिस की नौकरी जिसमें ड्यूटी का कोई निश्चित समय ही नहीं । मैं जानता हुँ ऐसा मैं ही नहीं लगभग सभी के साथ है मैं आगे से सभी रचनाओं पर जरूर प्रतिक्रिया देने की कोशिश करूगां। सादर प्रणाम े

आदरणीय राहुल डान्गीजी, आप से पुनः अनुरोध है कि चर्चा ’फोरम’ में हो रही है, आप अपनी इस टिप्पणी को भी वहीं पेस्ट कर दें.
सादर

मै पिछले कुछ महीनों से यहाँ जुडी़ हूँ । शुरू के दिनों में मै यहाँ भ्रमित सी रहती थी । यहाँ के रूल्स पढने के बाद भी कई गलतियाँ कर बैठती थी । अति वरिष्ठ जनों के सानिध्य में लिखने की इच्छा यहाँ खींच लाई । सहमते हुए ,जरा - जरा सा डरते हुए कई महीनों पश्चात अब लगता है कि इस मंच ने मुझे और मैने इस मंच को अपना लिया है । यहाँ अब लिखना , सबको पढना और सबसे जरूरी चीज़ सीखना बहुत ही अच्छा लगता है ।
आपने जो कहा आदरणीय अरूण निगम जी कि पहले ऐसा या वैसा हुआ करता था .... इससे तो मै अनजान हूँ , लेकिन आप यहाँ पूराने है इसलिए कह रहे है क्योंकि आपने काफी तेवर और चमक देखे होंगे ..... लेकिन हम नये लोगों के लिये तो ओबीओ की चमक हीरे की चमक से भी तेज प्रतीत होती है , तभी तो ओबीओ में नये होने के कारण चौंधियाये से रहते है और समय बीतने पर ही यहाँ की चमक को अपने में जज्ब कर पाते है । हममें वहीं जज्बात है सीखने के , हर चीज़ हम भी जानना चाहते है पूरी लगन से यहाँ । ओबीओ अभी और चमकेगा आप सबकी लगन और चाहत से । कोई भ्रम नहीं है यहाँ आदरणीय अरूण जी , आप रचे बसे है तो युँ कहिये कि आप सब आदतन हो गये है । ओबीओ के रंग और सरूर तो हम नये लोगों पर हुए असर से ही आपको पता चलेगा । नमन आप सभी को

आदरणीया कान्ताजी, आप से पुनः अनुरोध है कि चर्चा ’फोरम’ में हो रही है, आप अपनी इस टिप्पणी को भी वहीं पेस्ट कर दें.
सादर

आदरणीय अरुण निगम जी के द्वारा उठाये गए बिंदु से मैं शत प्रतिशत सहमत हूँ . कभी कभी तो ऐसा लगता है कि दुनियाँ ( साहित्य ) में सिर्फ एक ही या दो खेल हैं , बस। जैसे क्रिकेट , बस खेलो तो क्रिकेट, देखो तो क्रिकेट , बात करो तो क्रिकेट। बस कुछ और तो देखना , सुनना , बोलना नहीं।
वास्तव में साहित्य को जितना व्यापकता दी जाए, जितना लिबरल बनाया जाए , जितनी विविधता उसे दी जाए वही उसके उठान के लिए सहायक होगी। कविता जितने रूप में हो सकती है , विचार व्यंग, हास-परिहास , सैटॉयर , संकेत जैसे भी प्रस्तुत हो काम से काम पढ़े तो जाए।
यह निवेदन अवश्य है कि चूकि मंच पारिवारिक है ,अत:प्रस्तुतियाँ ऐसी हों जिसे परिवार के सभी सदस्य पढ़ सकें। बाकी किसी सीमा का लगाया जाना , विचारों पर प्रतिबद्ध लगाया जाना सा लगता , देखें, मंच एक विविधतापूर्ण माँछ के रूप में उभरे , केवल हिन्दी की किसी विधा विशेष की कक्षा मात्र बन कर न रह जाये। सामान रुझान न भी बन पाये तो कम से काम सम्यक दृष्टि अवश्य हो.
मेरे विचारों से सहमत होना जरूरी नहीं हैं, पर प्रकरण पर स्वतंत्र होकर , विचार अवश्य करें। हिन्दी का उत्थान चाहते हैं तो उसे व्यापकता प्रदान करे, विविधता प्रदान करें।
सादर।

आदरणीय विजय शंकरजी, आप से पुनः अनुरोध है कि चर्चा ’फोरम’ में हो रही है, आप अपनी इस टिप्पणी को भी वहीं पेस्ट कर दें.
सादर

आदरणीय निगम सर ..आपने बहुत ही सार्थक प्रश्न किया है ..यह बात मुझ पर भी लागू हो रही है ..मैंने ग़ज़ल लिखना की कोशिस इस मंच से आदरणीय सौरभ सर , आदरणीय वीनस जी आदरणीय बागी जी आदरणीय योगराज जी जैसे बिद्वत जनो के स्नेहिल मार्गदर्शन के साथ शुरू की ..आज भी प्रयास रत हूँ ..यह प्रश्न मैंने व्यक्तिगत रूप से किया था लेकिन मैं भी सिर्फ ग़ज़ल तक सीमित रहा ..बाकी बिधाओं में लिखना मुझे सहज नई लगा लेकिन आदरणीय मिथिलेश जी की इस बात से सहमत हूँ की लिख न सको तो पाठक बन जाओ ताकि साहित्य जिसके उन्नयन का सपना ध्यान में रखकर आदरणीय बागी जी ने इस मंच की स्थापना की है, साकार हो सके ..मैं बाकी बिधाओं पे बतौर पाठक अपनी उपस्थित दर्ज करने का भरसक प्रयास करूंगा ..यह हम सबकी साझा जिम्मेवारी है लिखने वालों को हौसला मिलना जरूरी है ..इसके लिए प्रतिक्रियाओं का होना भी जरूरी है ..मैं सिर्फ ग़ज़ल तक सीमित हूँ ,,बाकी मंचीय रचनाएँ करता हूँ उन्हें साझा करने की हिम्मत नहीं कर पाता पर ..सौरभ सर , योगराज सर बागी सर वीनस जी नूरजी गिरिराज भाईसाब , कबीर जी की प्रतिक्रिया जब तक रचना पर न हो तब तक रचनायें पढने में मजा नाही आता ..इन बिद्वत जनो की प्रतिक्रिया और स्नेहिल स्वभाव , और सबको सिखाने का जज्वा इस मंच की जान है ..इनसे जो सीखने को मिलता है वो किताबो से नहीं सीखा जा सकता है ..इस चितन के लिए हार्दिक धन्यवाद ..भविष्य में अपनी गलतियाँ सुधरने के वादे के साथ ....सादर 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
4 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service