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बेटी की बुनियाद तो पहले से ही कहीं न कहीं हिली हुई थी, जिसकी प्रतिक्रिया से परिवार की बुनियाद भी हिल गयी, माता-पिता पर क्या गुजरेगी, और फिर परिवार के अन्य भाई-बहनों का भविष्य क्या होगा यह समझे बिना इस तरह का कदम हमेशा ही नुकसानदायक होता है| रचना करारी चोट देती है, आदरणीय सर| बधाई आपको इस रचना के लिये|
कथा पर सटिक प्रतिक्रिया देने के लिऐ एवम परिवार की बुनियाद क्यो हिल गयी के सुन्दर विश्लेशण के लिऐ chandresh kumarji आपका आभारी हु.
जी सही कहा बच्चों के एक गलत कदम से परिवार की बुनियाद तो हिलना स्वाभाविक है किन्तु कोशिश यही करनी चाहिए के ऐसा मौका ही क्यूँ दे बच्चों को एक तरफ तो हम उसे इतने बड़े ओहदे पर देख कर खुश हैं दूसरी और उसकी पसंद से आपको लगता है बुनियाद हिल गई व्यवहार में ऐसा दोहरा पन क्यूँ ?काश माँ बाप ने ख़ुशी ख़ुशी आशीर्वाद दे दिया होता| बहुत बहुत बधाई आ० मदन लाल जी|
आपने मेरी लघु कथा पर समय दिया एवम अपने विचार रक्खे उसमे लिऐ राजेश कुमारीजी आपका अभार.
सबसे पहले तो ओबीओ पर पहली रचना पोस्ट करने हेतु हार्दिक अभिनन्दन स्वीकारें आ० श्रीमाली जी। लघुकथा अच्छी हुई है, तथा प्रदत्त विषय के साथ न्याय भी कर रही है। किसी घर की बेटी का माँ बाप की आज्ञा के बगैर और वह भी किसी गैर धर्म में शादी करवा लेना सच में घर वालों के विश्वास की बुनियाद पर कुठाराघाट करने वाला ही हुआ करता है। आपकी लघुकथा भी उसी आहात बुनियाद की बात करती है, बहुत खूब।
आदरणीय मदन्लाल जी, आपकी लघुकथा की नायिका ने बुनियाद हिलाई नहीं बल्कि नई बुनियाद रख दी है!हार्दिक बधाई!
बच्चों पर विश्वास की बुनियाद का हिलना , बहुत कष्ट्दाई होता है। सुन्दर लघुकथा आ. मदनलाल श्रीमाली जी।
प्रदत विषय पर सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय। वर्तमान में यही सब हो रहा है। आखिर किसे दोष दें - बुनियादी संस्कारों को , स्वतंत्र विचारों के बदलते परिवेश को, आज की मानसिकता को - आरम्भ से संस्कारों की दी जा रही शिक्षा कैसे रेत के महल की तरह ढेर हो जाती है और दिल में रह जाती है एक टीस कि आखिर क्या कमी रह गयी बुनियाद की मजबूती में .... बहरहाल इस सत्यपरक लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय।
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