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सभी जगह नाम लिखा होने पर धीरे धीरे अपने आप ही याद रह जाता है, सही भी है, चार साल की उम्र में जितना कम स्ट्रेस डालें उतना ही बेहतर है| हालाँकि दोनों पहलू हैं देखकर बोलने की आदत भी हो रही है परन्तु सकारात्मक पक्ष ज्यादा मज़बूत है, क्योंकि बार बार पढने की आदत भी तो डाली जा रही है| गजनी फिल्म की याद आ गयी, परन्तु लघुकथा में कहीं फ़िल्मीपन महसूस नहीं हुआ| हार्दिक बधाई आपको इस सुंदर रचना के लिये|
प्रयास तो अच्छा है आ० सीमा सिंह जी। किन्तु दुर्भाग्य से यह रचना लघुकथा की श्रेणी में नहीं आती।
ये तो ग़लत शुरूआत है नक़ल कराने की,माँ से ये उम्मीद नहीं की जा सकती वह बच्चे की प्रथम गुरू होती है।तब बुनियाद कितनी मज़बूत होगी न आदरणीय सीमा सिंह जी।
आदरणीय सीमा जी, आपकी लघुकथा पढने में तो रोचक है पर अन्य मामलों में मैं कुछ कहने में असमर्थ हूं!मेरी ओर से बधाई!
जब शुरुआत ही नकल से होगी तो बुनियाद भी कमज़ोर होनी ही है। अच्छे संस्कार डालना घर वालों की ही जिम्मेदारी होती है। बहुत अच्छी रचना। बधाई सीमा सिंह जी।
आदरणीया सीमा जी, बहुत ही बारीकी से पकड़ा है आपने इस बात को. और एक कमाल की लघुकथा लिख दी. ऐसी खोखली बुनियाद पर इमारतें नहीं बना करती. आपको इस शानदार प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई.
यह भी अवश्य है कि इस रचना में दो दृश्य अलग अलग है. संभवतः इसे लघुकथा के शिल्प विधान में दोष माना जाता है. वैसे अभी मैं भी इस विषय पर पूरी तरह स्पष्ट नहीं हूँ. सादर
सटीक लघु कथा बनी है आपकी , बधाई सीमा जी
वाह ..... क्या खूब सन्देश दिया आपने आदरणीय सीमा सिंह जी कथा के माध्यम से ! बच्चों मैं हम खुद ही ऐसी आदतें डालेंगे तो बुनियाद तो हिलेगी ही ! हार्दिक बधाई आपको !
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बच्चों को जो सिखायेंगे वही सीखेगा जब बचपन से ही नक़ल की तरकीब माँ सिखा रही है कल वो क्या करेगी क्या ये भी सोचा है फिर बच्चो को दोषी भी हम लोग ही ठहराते हैं ..लघु कथा अच्छी लगी हार्दिक बधाई सीमा जी |