For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओ बी ओ लखनऊ-चैप्टर की मासिक गोष्ठी : माह जुलाई 2015 की रिपोर्ट

ओ बी ओ लखनऊ-चैप्टर की मासिक गोष्ठी : माह जुलाई 2015 की रिपोर्ट
प्रस्तुति: डा0 गोपाल नारायण श्रीवास्तव
एवं शरदिंदु मुकर्जी
     

      दिनांक 26-07-2015 को ओ बी ओ लखनऊ-चैप्टर की मासिक गोष्ठी 37, रोहतास एन्क्लेव, फैजाबाद रोड, लखनऊ में सायं 4.00 बजे प्रारम्भ हुयी I गोष्ठी के प्रथम चरण में डा0 शरदिंदु मुकर्जी ने “Poetry of North -East” विषय पर साहित्य अकादमी द्वारा जारी डाक्यूमेंट्री को प्रोजेक्टर के माध्यम से बड़े परदे पर प्रक्षेपित कर उपस्थित सभी को देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों के साहित्य से साक्षात कराया I उत्तरपूर्वी भारत की कविताएँ आज विश्व साहित्य की प्रमुख आवाज बन चुकी हैं i उत्तर-पूर्व के नए साहित्यकार अधिकांशतः अंग्रेजी भाषा में साहित्य रच रहे हैं, जबकि पुराने कवि क्षेत्रीय भाषा में साहित्य सृजन के पक्षधर हैं I प्रोजेक्टर के द्वारा प्रदर्शित विवेच्य डाक्यूमेंट्री में उत्तर-पूर्व के अनेक कवि एवं साहित्यकारों के मुख से उनकी रचनाएँ और उनके विचार सुनने को मिले I इनमें रोबिन एस नागंगम, डेसमंड एल खरमावफ्लांग, और ममांग दई प्रमुख हैं I इन साहित्यकारों के विचारों से ज्ञात होता है कि उत्तर-पूर्व की साहित्यिक रचनाओं में भी वह तनाव देखने को मिलता है जो बड़े साहित्य का गौरव समझा जाता है I यहाँ भी आत्म-तत्व की तलाश और शांति की खोज प्रमुख प्रतिपाद्य है I

 

      गोष्ठी के द्वितीय चरण में काव्यपाठ के साथ ही अन्य विधाओं में पाठ यथा कहानी, लघुकथा और संस्मरणों का भी आवाहन किया गया था लेकिन काव्य पाठ ही इस माह भी अन्य विधाओं पर हावी रहा I इस चरण का आरम्भ संचालक मनोजकुमार ‘मनुज’ की वाणी वंदना से हुआ I मनुज ने छंदों में माँ सरस्वती की सुन्दर वंदना प्रस्तुत की I इसके बाद भू-वैज्ञानिक एवं साहित्य रसिक एस. सी. ब्रह्मचारी ने अपने युवा काल की एक शृंगारिक रचना प्रस्तुत की –
गीत रचूंगा बैठो थोड़ा
मैना क्यूँ संग-संग आयी है
कोई संदेशा ले आयी है
तुम करीब अब आओ मेरे
समझो सजनी अब मेरा मन
उड़ता जाता दूर गगन में प्रिय वहाँ पंछी का जोड़ा
गीत रचूंगा बैठो थोड़ा

 

      केवल प्रसाद ने गीतिका, हरिगीतिका के साथ कुछ सिंहावलोकन छंद भी सुनाये I कुछ बानगी इस प्रकार है –

क्षम्य, करुणा प्रेम हम सम्वेदना  को ही  वरें
आदमी हम आदमी के प्राण में ऊर्जा भरें "
- गीतिका 
तुम शब्द सरगम साधना वीणा मधुर झंकार हो 
हम शुष्क मुरली बांस तन तुम कृष्ण सी साकार हो 

-हरिगीतिका

 

      डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव ने साथ और संसार छोड़कर जाने वाले जीवन साथी को एक बड़े ही मार्मिक गीत से विदा दी -
साथ यहीं तक था साथी अब तुम्हें अकेले जाना है
चार दिनों के बाद हमें भी इसी पंथ पर आना है
सपनो में सुधियों में आकर प्रिय मुझसे मिलते रहना
स्मृतियों की बांह पकड़कर सुख दुःख की बातें कहना
इस निर्बल सम्बल के बल पर भी जीवन कट जाना है
चार दिनों के बाद हमें भी ------------------------------
     

      उपस्थित कवियों के अनुरोध पर उन्होंने लगभग 30 वर्ष पूर्व लिखी अपनी एक शृंगारिक कविता सुनायी –
चश्मे बद से न देखो मेरे यार को
नजर लग न जाए मेरे प्यार को

 

      महनीया कुंती मुकर्जी ने सम्वेद्ना सिक्त गीतों से वातावरण को करुण कर दिया –
एक बुलबुल अपने आकाश की शहजादी
उड़ती थी स्वच्छंद गाती थी मंद मंद
एक दिन समय के बहेलिये ने बिछाया जाल
कैद हो गयी उड़ान और तान
दर्द से सराबोर और भी हो गया
सुरीली बुलबुल का गान

 

      संचालक मनोज कुमार ‘मनुज’ ने योगी और भोगी की अनेक समानताओं को अपनी कविता में उतार कर एक अद्भुत आकर्षण उत्पन्न किया I उन्होंने कुछ कवितायेँ लीक से हटकर सुनाईं I यथा –
मैंने की विद्युत् तरंगो की गहन अनुभूति तन में
सत्य यह उन्मुक्त होकर वह किया आया जो मन में
कल्पना के यान में उड़ गगन के पार आया
भोथरी सी जिन्दगी पर प्रणय की धार लाया
प्रेम पत्थर में दिया था उसी ने मीत बनकर
मैंने अधरों को प्रकम्पित कर दिया था गीत बनकर
वेदना नापे जो वो फीता रहा हूँ
मैं नयन से सोमरस पीता रहा हूँ

 

      कार्यक्रम के अंत में डा0 शरदिंदु मुकर्जी ने ‘आशंका’ और ‘स्मृति’ शीर्षक से दो भावपूर्ण कवितायेँ पढ़ीं i इन कविताओं को प्रारंभ से लेकर अंत तक पढ़ने पर ही सच्चा रस प्राप्य है I महज जिज्ञासा को स्पंदित करने हेतु कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं
एक बेचैन सन्नाटे को पछाड़कर
मैं एक खामोश कोलाहल में
परेशान भटक रहा हूँ
शायद अकारण ही
शायद आगे उस मोड़ पर
कोई तूफान मिल जाए
शायद उन कंटीली झाड़ियों के पीछे
कोई झुरमुट मिल जाए

 

प्रेम विषय से सिक्त विभिन्न भाव लिए विभिन्न समय में रचित कविताओं की रसधार से इस छोटी सी गोष्ठी को एक अभूतपूर्व आधार मिला जहाँ से हम नयी उड़ान भरने की कल्पना कर सकते हैं. लगभग तीन घंटे के इस आयोजन ने हम सभी को विशेष संतुष्टि प्रदान की I अस्तु.

 

 

 

 

Views: 1241

Reply to This

Replies to This Discussion

आ0 गोपाल भाई जी,  उत्तर-पूर्व के कवि एवं साहित्यकारों  के नामो के आगे उनके प्रांत और शहरों के भी नाम  लिख देते तो समझने में और भी  आसान होता.  आपने मेरे नाम के साथ ही रचनाओ में भी गल्तियां की  हैं. ...

क्षम्य, करुणा प्रेम हम सम्वेदना  को ही  वरें
आदमी हम आदमी के प्राण में ऊर्जा भरें "
- गीतिका 
तुम शब्द सरगम साधना वीणा मधुर झंकार हो 
हम शुष्क मुरली बांस तन तुम कृष्ण सी साकार हो 

-हरिगीतिका

 

आ० केवल जी

इस बार कुछ गलतियाँ अवश्य हुयी है . कुछ तो आ० दादा  शरदिंदु  जी ने सही की पर फिर भी कुछ रह गयीं और सबसे बड़ी कमी तो यह रही कि आ० सौरभ जी की जो रेकार्डिंग हमने सुनी  जिसमे हरिगीतिका का ओजपूर्ण गायन था उसका उल्लेख करना हम भूल गए . हालांकि दादा श्री ने रिमाइंड  भी कराया था . मैं रायबरेली की तैयारी  में था  तो कुछ जल्दबाजी हो गयी  यह हमारे लिए एक सबक है.  भविष्य में हम सचेत रहेंगे, यह वादा है . सादर

// सबसे बड़ी कमी तो यह रही कि आ० सौरभ जी की जो रेकार्डिंग हमने सुनी  जिसमे हरिगीतिका का ओजपूर्ण गायन था उसका उल्लेख करना हम भूल गए //

इस सूचना से आदरणीय गोपाल नारायनजी, हम अनुगृहित हुए. भाईजी, इसे अब भी एडिट कर इस रपट में चस्पां कर दें ताकि सनद रहे, कि ऐसा भी कोई क्षण आया था. .. :-))) 

गोष्ठी में सम्मिलित होने को लेकर हम इसबार सबसे पहले सहमति जता चुके थे लेकिन ऐसा कई कारणों से न हो सका. फिर भी मेरी रचना की उपस्थिति बनी यह अभिभूत कर रहा है.

 

रपट केलिए सादर धन्यवाद आदरणीय गोपालनारायनजी. 

आदरणीय केवल प्रसाद जी, आपकी रचना और नाम को Edit कर दिया है. सादर.

गोष्ठी के संचालन के लिए आदरणीय मनोज कुमार मनुजजी कोहार्दिक बधाई. सभी उपस्थित सदस्यों के प्रति सम्मान के भाव हैं.

साहित्य के जिस सर्वसमाही स्वरूप को इस गोष्ठी के माध्यम से स्वीकृति मिल रही है वह सुखद है. अतः इसके तनिक और व्यापक बनाने की आवश्यकता है ताकि इसका उद्येश्य कुछ और सहजता संप्रेषित हो सके. 

सादर शुभकामनाएँ आदरणीय शरदिन्दु जी. 

आदरणीय केवल जी से सबसे पहले क्षमा याचना कि उनके नाम में ही ग़लती रह गयी. इसके लिए आ. गोपाल नारायन जी ही नहीं मैं भी समान रूप से जिम्मेदार हूँ.

//आ0 गोपाल भाई जी,  उत्तर-पूर्व के कवि एवं साहित्यकारों  के नामो के आगे उनके प्रांत और शहरों के भी नाम  लिख देते तो समझने में और भी  आसान होता.// क्या समझना आसान होता  केवल भाई?  आप स्वयं उस गोष्ठी में उपस्थित थे अत: आपको मालूम ही है कि कौन कहाँ का है. और जिन्हें ये तथ्य जानने में कौतूहल हो वे पूछें तो विवरण देने में हमें प्रसन्नता होगी.

आपने इतने ध्यान और आग्रह से यह रिपोर्ट पढ़ा इसके लिए हम आपके आभारी हैं.

सादर

  

// अतः इसके तनिक और व्यापक बनाने की आवश्यकता है ताकि इसका उद्येश्य कुछ और सहजता संप्रेषित हो सके.//

आदरणीय सौरभ जी, ओ.बी.ओ.लखनऊ चैप्टर की मासिक गोष्ठिओं में अनुपस्थित रहते हुए भी वैचारिक मंतव्यों के माध्यम आपकी सकारात्मक  सक्रियता हम सबके लिए शिक्षाप्रद है. ओ.बी.ओ.लखनऊ चैप्टर वास्तविक उन ही समस्याओं से पीड़ित है जिनका लगभग हर साहित्यिक मंच सामना करता है. सदस्यों के पास समय का अभाव है- कारण बहुतेरे हैं यथा नौकरी, घर की परेशानियाँ, स्वास्थ्य सम्बंधी समस्या आदि. देखिए, ओ.बी.ओ. के लगभग 3000 सदस्यों में से मात्र 30 के आसपास सक्रिय हैं. मैं स्वयं इतना कम आ पाता हूँ (कार्यकारिणी सदस्य होने के बावजूद) कि मुझे बहुत बेचैनी होती है. मैं अपने को अपराधी समझता हूँ कि जितना न्यूनतम समय मुझे देना चाहिए ओ.बी.ओ. को वह मैं नहीं दे सकता. फलत: महीने के अंत में जो छोटा सा उत्तरदायित्व निभाना होता है उसे भी पूरा नहीं कर पा रहा हूँ. लखनऊ चैप्टर कोई अपवाद नहीं है. हम जो कतिपय सदस्य इस मंच पर हर महीने दीया जलाते हैं उनकी कोशिश तो बनी हुई है कि इसे विस्तार मिले....देखा जाए क्या होता है आने वाले दिनों में. आपसे इस बारे में दिशानिर्देश मिले तो हम आभारी रहेंगे विशेष रूप से इसलिए कि आप ओ.बी.ओ. के प्रबंधन टीम के सदस्य भी हैं और ओ.बी.ओ.लखनऊ चैप्टर के औपचारिक सदस्य भी. हम आपको इतना आश्वासन दे सकते हैं कि जब तूफान में भी दीया जलता रहा तो उसकी लौ को हम बुझने नहीं देंगे ऐसे रोज़ के छोटे मोटे हवा के झोंकों से....बस आप लोग हमारा मनोबल बढ़ाते रहें.

 

सादर 

//इतना आश्वासन दे सकते हैं कि जब तूफान में भी दीया जलता रहा तो उसकी लौ को हम बुझने नहीं देंगे ऐसे रोज़ के छोटे मोटे हवा के झोंकों से //

यह एक महती आश्वस्ति है, आदरणीय. 

आप सही कह रहे हैं. साहित्यिक गोष्ठियों या मंचों की दशा वस्तुतः दुर्दशा है. एक विन्दु के बाद सदस्य ’बड़े’ या एकांगी हो जाते हैं. लेकिन दायित्वबोध से भरा मनस अपने अनन्यों के सहयोग से लगातार दीया जलाये रखता है. इस अदम्य संलग्नता का सभी विवेकी सदस्य सम्मान करते हैं. 

हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीय शरदिन्दुजी. 

आदरणीय डा0 गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर एवं आदरणीय शरदिंदु मुकर्जी सर, आयोजन से  रपट के माध्यम से हमे जोड़ने के लिए हार्दिक आभार तथा  इस आयोजन की सफलता हेतु हार्दिक बधाई.

धन्यवाद आदरणीय .

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
11 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service