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आभार ओम प्रकाश जी ..
'आंख का अंधा और नाम नयनसुख' जैसे बचपन में पढ़े मुहावरे को पूरी तरह चरितार्थ करती आपकी प्रस्तुत लघुकथा के लिए आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं आदरणीय सीमा सिंह जी । आयोजन में सम्िमलित कथायों का स्तर देखते हुए जहां प्रसन्नता हो रही है वहीं अपनी रचना को लेकर थोड़ा सा डर भी लग रहा है । ओबीओ प्रबन्धन टीम को इस स्तरीय आयोजन के लिए साधूवाद । सादर
धन्यवाद आ०रवि जी.. आपकी प्रशंसा सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है..
//दादी माँ ने मिसेज़ रॉय के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा: "वो सब ठीक है, लेकिन अन्नपूर्णा की परिभाषा तो मत बदलो बेटी।”//
रचना की यह अंतिम पंक्तियाँ पाठक को रचना समाप्त होने के बाद भी रचना से दूर नहीं जाने देती, जैसे चलती हुई ट्रेन को एकदम से ब्रेक लग जाएँ और यात्री अंदर ही बैठे रह जाएँ|
बहुत धन्यवाद आ० चंद्रेश जी, संस्कार खून में बस जाएँ तभी बात बनती हैं... कथा की आत्मा को सराहने का ह्रदय से धन्यवाद..
आजकल आधुनिकता की परिभाषाये कुछ और ही हुई जाती हैं | सुंदर सीख देती हुई रचना .. बधाई आ. सीमा सिंह दीदी , सादर
आधुनिकता के साथ साथ संस्कारों को भी थाम कर रखा जाये तब बात बनेगी ना... बहुत धन्यवाद सुधीर भैया...
संस्कार तो बड़ों से ही इन्हेरिट होते हैं .. आप का सानिध्य एवं स्नेह पाकर कम से कम मैं तो इस बात से आश्वस्त हूँ ही .. साथ में रक्षा बंधन की असीम शुभकामनाओ सहित ..
आदरणीय कांता जी आपके लम्बे चौड़े वक्तव्य से ऐसा लग रहा है जैसे कि भोजन बनाना आना कला ना होकर सज़ा है. ये भी हुनर ही है कांता जी. मेरा मानना तो ये कि पाक कला को भी अन्य कलाओं जैसी बल्कि उन सब से भी बढ़कर मान्यता देनी चाहिए क्योकि कि ये आपके साथ दूसरों का भी पेट भरती है. वैसे भी हम भारतीय हैं और अपनी संस्कृति और संस्कारों के बिना अपूर्ण हैं... बेटी और बेटे को समान मानने का अर्थ ये तो ना हुआ कि बेटों की बराबरी करते करते बेटी बेटी ही ना रहे... अन्नपूर्णा होना गुण है, भाव है, विशेषता है, समर्पण है. और ओछापन या पिछडापन तो हरगिज नहीं हैं... जैसे आपने सिद्ध करने का प्रयास किया है.. नारी मुक्ति का झंडा उठाये रखने वाले भी दो दिन बिना भोजन के रह ना पायेंगे..
एक हुनर ही नहीं बल्कि एक बड़ी ही आनंददायी कला है जो कार्य किये जाने का संतोष भी देती है और स्वाद का आनंद भी. जिसे पाककला का ए बी सी डी नहीं आता यानि कुछ भी पकाते नहीं आता उन्हें 'बेचारे' ही कहा जाता है और यकीनन वो सहानुभूति के पात्र है कि बिचारे दो निवालों के लिए भी आश्रित है. हा हा हा सादर
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