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हार्दिक बधाई नेहा जी!अच्छी लघुकथा हुई है!आपने विषय वस्तु का चुनॉव बहुत अच्छा किया है!
मरते मरते भी बेटे के सुख देखने का ख्बाब पालना एक माँ ही कर सकती हैं ..बधाई आपको एक अच्छी कथा के लिय |
आदरणीया नेहाजी, आपकी लघुकथा ने प्रभावित किया है. सहज शब्दों में विन्दुवत अभिव्यक्ति हुई है.
हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.
नेहा जी विषयानुरूप बहुत सुंदर लघुकथा हुई है, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें|
"भाईसाहब! इस बैग के ऊपर मेरा पता लिखा है, इसमें कुछ रुपये भी हैं जिनसे मेरा बेटा कई दिन खाना खा सकता है।-- सुन्दर मार्मिक लघुकथा प्रिय नेहा जी। बहुत बहुत बधाई
प्रत्युत्तर
" हा ,हा, हा , कैप्टन , अब तुम अकेले बचे हो । खुद को सरेन्डर कर दो और कोई चारा नहीं है ! " दुश्मन सेना के टैंक का कमांडर बार बार दहाड रहा था ।
" तुम्हारी सहायता को सुबह से पहले कोई नही आ सकता और तब तक हम तुम्हें और तुम्हारी चौकी को मटिया मेट कर देंगे । जबाब दो , जल्दी जबाब दो ! "
अपनी चौकी पर अकेले बचे सुरेन्दर सिंह अच्छी तरह जानते थे कि दुश्मन सही कह रहा था । पर प्रत्युत्तर देना जरूरी था उन्होने कुछ सोचा और हाथ उपर करके बाहर आ गए ।
" हा , हा, ये है नामी फौजी , हमारे टैंक ने मिट्टी मे मिला दिया इनकी चौकी को । इनके पास हमारा जबाब ही नहीं है। बोल जबाब दे ! "
अचानक सुरेन्दर सिंह ने अपने शरीर पर बंधी बमों की पिन निकालकर टैंक के ऊपर छलांग लगा दी ।
देखते ही देखते टैंक दुश्मन सहित टुकडो मे बिखर गया । जबांज जवान ने प्रत्युत्तर दे दिया था
मौलिक और अप्रकाशित
देशभक्ति के जज़्बे से भरपूर यथार्थ की धरातल से चुनी गयी ये क्षण विशेष की प्रस्तुति शानदार हुई है आदरणीया बबिता जी। इस सार्थक लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें।
देश के वीरों को सलाम करती इस सार्थक प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें आदरणीया बबीता जी
लघुकथा एकदम विषयानुरूप हुई है आ० बबिता चौबे जी, हालाकि अंत में थोड़ी नाटकीयता भी आ गई I बहरहाल, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें I
देश भक्ति के जज्बे की हकीक़त से प्रेरित लघु कथा बहुत अच्छी बनी उस जांबाज को दिल से सलाम | हार्दिक बधाई आपको बबिता जी
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