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हार्दिक धन्यवाद आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब.
आपने ठीक ही कहा जल्दी में ही लिखी व पोस्ट की गई रचना है, अतः गलतियां तो होनी ही थीं व आपके द्वारा पकड़ में भी आनी ही थीं। समय मिलने पर संशोधित कर दूंगी आ. सौरभ जी।
आपका सादर धन्यवाद आदरणीया नीरज शर्माजी.
आपकी साहित्यिक समझ और आपकी रचनाओं की संभावनाओं के कारण ही आपकी रचनाओं की त्रुटियाँ अलग ही दिख जाती हैं. हम आपकी रचनाओं और रचना-प्रयास् से बहुत कुछ सीखते हैं. यह परस्पर सीखना ही अपना संबल है और इस मंच का हेतु !
परस्पर् सहयोग बना रहे आदरणीया.
सादर
बहुत बहुत आभार आपकी सहृदयता के लिए आ. सौरभ जी। सहयोग यूं ही बना रहे।
परम्परावादी लोगों की मानसिका बदलने में सक्षम और सुंदर सन्देश देती अच्छे स्तर की लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई डॉ. नीरज शर्मा जी | सादर
आदरणीय नीरज जी, प्रदत्त विषय से पूरी तरह न्याय करती आपकी इस प्रस्तुति के लिए आपको अत्यंत शुभकामनाएं।
सभी सुधिजनों का हार्दिक आभार मेरी रचना पर प्रतिक्रिया देने के लिए। पारिवारिक कुछ दुखद कारणों की वजह से सबको पृथक पृथक धन्यवाद ग्यापित करने में इस बार असमर्थ हूं क्षमा करें। सादर
आदरणीया नीरज शर्मा जी, क्या खूब रचना है, जितना वाह कहें कम लग रहा है| सकारात्मक सन्देश के साथ समाप्त हुई इस लघुकथा की पंच लाइन भी वास्तव में बहुत बढ़िया है| कृपया बधाई स्वीकार करें|
इस सुन्दर लघुकथा के लिए बधाई स्वीकारे आ नीरज शर्मा जी
तपस्या (प्रत्युत्तर विषय आधारित)
"तड़ाक !! अधर्मी , छब्बीस वर्ष इसी सफेद पल्लू और तुम्हारे निसंतान ताऊ की स्नेहिल-छाँव में जमाने के ताने सुनते हुए काट दिये। जबकि असंख्य अवसर आये थे नई दुनिया बसाने के।और तुम आज साज- श्रृंगार की बात कर रहे हो।"
" माँ , जो कुछ हुआ अच्छा नही हुआ , लेकिन आपकी बहू ने तो वही कहा जो उसने लोगों से सुना।मेरे ख्याल से आपको और ताऊ जी को विवाह कर...|"
" बहू और दुनियावालों को क्या दोष दूँ ? जब अपने जाये ने ही मेरी निश्छलता और तपस्या पर घड़ों पानी फेर दिया।"
कहने को तो उसने कह दिया लेकिन वह स्वयं पर संयम नहीं रख पा रही थी। बेटे के शब्द तेज़ाब बन मन मस्तिष्क को झुलसा रहे थे।
मौलिक और अप्रकाशित
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