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मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार
आदरणीय कांता रॉय जी, प्रधान संपादक आदरणीय योगराज जी व आदरणीय सौरभ पांडेय जी की विस्तृत समीक्षा के बाद वाकई कुछ कहने को शेष नहीं है । कथा के विस्तार व व्याकरण अशुद्धियों की वजह से कथा में निहित सार्थक संदेश कहीं लुप्त सा हो गया। मुझे पूर्ण आशा है कि भविष्य की प्रस्तुतियों में आप इन पर अतिरिक्त सर्तकता बरतेंगी । सौरभ भाई जी वाला शुभ-शुभ । सादर
आप जी लघुकथा जिंदगी के बारे बहुत कुछ कह गई , आज कल शहर में वृक्ष तो विकास के नाम पर काटे जा रहें हैं और इसका दुष्प्रभाव हम झेल रहें हैं ऐसी लघुकथा के लिए बधाई
बहुत बढ़िया सोच के साथ लिखी गयी रचना आपकी उच्च कोटि की भावनाओं को अभिव्यक्त कर रही हैं आदरणीया कांता जी| भाव-प्रधानता होने पर कला को महत्व कम ही मिलता है| आपकी इस रचना पर लघुकथा के बारे में वरिष्ठजनों की राय से मैं भी काफी कुछ सीखा हूँ| साथ ही आपके शुद्ध भावों को भी नमन करता हूँ, पढ़ कर अच्छा ही लगा| सुंदर रचना हेतु बधाई प्रेषित है|
जी ,मैं भी बहुत कुछ सीखी हूँ इस रचना के माध्यम से आदरणीय चंद्रेश जी। ये गोष्ठी मेरे लिए बेहद फलित हुई है। आभार आपको।
आदरणीया कांता जी, लघुकथा की परिधि में इस कथा को बाँध कर पढ़ने में मैं असमर्थ हूँ. सादर.
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