For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"OBO लाइव तरही मुशायरे"/"OBO लाइव महा उत्सव"/"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता के सम्बन्ध मे पूछताछ

"OBO लाइव तरही मुशायरे"/"OBO लाइव महा उत्सव"/"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता के सम्बन्ध मे यदि किसी तरह की जानकारी चाहिए तो आप यहाँ पूछताछ कर सकते है !

Views: 12236

Reply to This

Replies to This Discussion

55 वें तरही मुशायरे में ग़ज़ल किस तरह पोस्ट करें,और ग़ज़ल में मक़ता रख सकते हैं या नहीं ?, कृपया जल्द जवाब देने का कष्ट करें |

आदरणीय समर भाई , आपके जल्द जवाब के अनुरोध को देख सोचा कि मै ही आपको उचित जानकारी दे दूँ । 

1. मक्ता रखना आपकी स्वेच्छा पर है ।

2.  गिरह लगाना ज़रूरी है

3. पोस्ट करने के लिये दिये गये लिंक को क्लिक करियेगा - वहाँ आपको एक बाक्स मिलेगा , जो 29 की रात 12 बजे खुलेगा , अर्थात 30 लगते ही । वहीं आपको अपनी गज़ल पोस्ट करनी है । अभी आपको वो बाक्स बंद मिलेगा । ये बाक्स 31 की रात 12 बजे तक खुला मिलेगा , 1 फरवरी लगते ही फिर बन्द कर दिया जायेगा । इस बीच आप कभी भी अपनी गज़ल पोस्ट कर सकते हैं । प्रतिक्रिया देने के लिये हर पोस्ट के नीचे Reply लिखा मिलेगा इसे क्लिक करने से बाक्स मिलेगा  यहीं आपको अपनी प्रतिक्रियें देनी है । आशा है आपको वांछित जानकारी  मिल गई होगी । अब भी कोई कमी हो तो कृपया  सुधिजनों का इंतिज़ार करें ।

आदरणीय गिरिराजभाईजी, सदस्य के किसी प्रश्न पर आपका इस तरह से इनिशियेटिव लेना अत्यंत आश्वस्तिकारक है, बहुत अच्छा लगा. विश्वास है, आप द्वारा उपलब्ध करायी गयी सूचना से आदरणीय समर कबीर संतुष्ट होंगे. वस्तुतः आपके हवाले से भाई समरजी को यह भान हो गया होगा कि इस मंच के आयोजन इण्टरऐक्टिव हुआ करते हैं.
 
आप द्वारा उपलब्ध करायी गयी समुचित सूचना में मुझे एक और जानकारी जोड़नी है, आदरणीय. हालाँकि यह जानकरी संभवतः आयोजन की भूमिका में लिखी हो, कि, ग़िरह-मिसरे का प्रयोग मतले में या हुस्नेमतले में नहीं करना है.
शुभ-शुभ

आदरणीय ऐडमिन जी ,
तरही मुशायरा -५६ के सन्दर्भ में अपनी प्रविष्टि के विषय में यह निवेदन है कि बह्र की दृष्टि से यदि बिना कोई परिवर्तन किये , केवल शब्दों को आगे पीछे कर के कुछ परिवर्तन करूँ तो क्या बह्र की बात भी बन जाएगी। निवेदन है कि क्या यह परिवर्तन संभव है ? यदि हाँ, तो कृपया करना चाहें। अनुगृहीत होऊंगा।

यहां बनावटी अदाकारियाँ नहीं चलतीं
इश्क में ज्यादा होशियारियाँ नहीं चलतीं ॥

किसी जंग से कम नहीं होती है आशिकी
यहां बहाने औ लाचारियाँ नहीं चलतीं ||

इश्क गुलामी है क्या क्या करना पड़ जाए
समझ लो खाली वफ़ादारियाँ नहीं चलतीं ॥

दिलों का मामला है जहमत उठा लीजिये
यहां दिमागी कारगुजारियाँ नहीं चलतीं ॥

तलवार धार पे चल सकते हों तो चलिए
साथ फ़ौज हरदम फुलवारियां नहीं चलतीं ॥

झुकना सिखा देती है मोहब्बत दोस्तों
दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं ॥
आदरणीय जनों को सादर प्रणाम , मै मुशायरे में अपनी कमेंट दर्ज नहीं कर पा रही हूँ । इसके कारण क्या हो सकते है कृपया मार्गदर्शन करें । आभार

१- गूगल क्रोम ब्राउज़र का प्रयोग करें.

२- एक बार ब्राउज़र से कुकीज साफ़ कर लें, इसके लिए ....

Shift + Ctrl + Del कर लें और जो पेज ओपन हो उसमे the beginning of time ड्राप डाउन से सेलेक्ट करें और सभी बॉक्स में टिक कर Clear browsing history को क्लिक करें.

३- ओ बी ओ ओपन कर log in कर लें.

समस्या का समाधान हो जाना चाहिए. 

आभार आपको मेरा मार्गदर्शन करने के लिए । आपके कहे अनुसार कोशिश करती हूँ । आभार
नमस्कार सर
इस बार के मुशायरे में बहर में 112 के स्थान पर 22 की छूट जायज़ है या नहीं
जैसा कि इस बहर में होता ही है
ग़ज़ल लिखनी शुरू कर रहा हूँ
आशा है आप जल्द जवाब देदेगे
सादर

आदरणीय मनोज भाई जी,

इस बह्र के विषय में जितना पता है वो इंटरनेट और कुछ किताबों के आधार पर है. कोई प्रमाणिक जानकारी मुझे नहीं है. ये बहरे-मजतस है. यह एक ऐसी बह्र है जिसकी मुज़ाहिफ़ शक्लों का ही प्रयोग होता हैं. सालिम का प्रयोग अब तक मेरे देखने में नहीं आया है. इसके सालिम अर्कान मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन (1222, 2122, 1222, 2122) हैं. इसकी एक मुज़ाहिफ़ शक्ल --मफ़ाइलुन - फ़इलातुन - मफ़ाइलुन - फ़इलुन (1212 - 1122 - 1212 - 22 / 112) है इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार निवेदित कर रहा हूँ-

करूँ न याद उसे किस तरह भूलाऊँ उसे(112)
ग़ज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे.(112)-- फ़राज़ 

सुना है लूट लिया है किसी को रहबर ने(22)
ये वाक्या तो मेरी दास्तां से मिलता है.(22) --शमीम जयपुरी 

वो मै नही था जो इक हर्फ़ भी न कह पाया(22)
वो बेबसी थी कि जिसने तेरा सलाम लिया.(112)

हरेक बात पे कहते हो तुम के तू क्या है(22)
तुमी कहो कि ये अंदाज़े-गुफ़्तगू क्या है.(22)

हुआ है शह का मुसाहिब फिरे है इतराता (22)
वगरनह शहर में ग़ालिब की आबरू क्या है(22) ग़ालिब

गज़ब किया तिरे वादे पे ऐतबार किया (112)
तमाम रात कयामत का इंतज़ार किया.(112)-- दाग 

मेरी जानकारी अनुसार इस बार के मुशायरे में बहर ("ये खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे"... 1212 1122 1212 112 ) में 112 के स्थान पर 22 की छूट लेना बिलकुल जायज़ है 

मिसरा-ए-तरह अज़ीम शायर जनाब "बशीर बद्र" साहब की जिस ग़ज़ल से  लिया गया है उसी के दो अशआर में यह छूट ली गई है 

ये चाँद तारों का आँचल उसी का हिस्सा है

कोई जो दूसरा ओढे़ तो दूसरा ही लगे

अजीब शख़्स है नाराज़ होके हंसता है
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे

आशा है मैं अपनी बात स्पष्ट कर सका हूँ. सादर 

बहुत आभार आदरणिय मिथिलेश सर
आपकी बात से मेरी बात को बहुत बल मिला
मैंने ग़ज़ल देखी थी
सोच भी रहा था
छूट के बारें में
अब आपकी बात सुनकर आश्वस्त हो गया हूँ
धन्यवाद

ओबीओ तरही मुशायरा,अंक-63 की रचनाओं का संकलन कब तक उपलब्ध होगा..?

सादर नमस्कार।मैं नया अभ्यर्थी रचनाकार हूँ, फेसबुक ग्रुप्स में चार माह से लिख रहा हूँ।"अास/उम्मीद" विषयक एक प्रविष्ठी में कितनी विधाओं में कितनी रचनाएँ पोस्ट कर सकते हैं।मैं एक ही प्रविष्ठी में एक तुकांत+एक अतुकांत+पांच हाइकू+पांच मुक्तक+तीन दोहे+तीन सिंहावलोकनी दोहा-मुक्तक+तीन वर्ण पिरामिड जसाला पिरामिड+दो कुण्डलिया+एक ग़ज़ल प्रेषित कर सकता हूँ क्या? यदि नहीं तो सही उपाय बताईयेगा।
_शेख़ शहज़ाद उस्मानी

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई सर"
14 hours ago
Admin posted discussions
17 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत खूब, बहुत खूब ! सार्थक दोहे हुए हैं, जिनका शाब्दिक विन्यास दोहों के…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय सुशील सरना जी, प्रस्तुति पर आने और मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए आपका आभारी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय भाई रामबली गुप्ता जी, आपसे दूरभाष के माध्यम से हुई बातचीत से मन बहुत प्रसन्न हुआ था।…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय समर साहेब,  इन कुछेक वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। प्रत्येक शरीर की अपनी सीमाएँ होती…"
yesterday
Samar kabeer commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"भाई रामबली गुप्ता जी आदाब, बहुत अच्छे कुण्डलिया छंद लिखे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।"
yesterday
AMAN SINHA posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
Wednesday
रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service