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मीडिया कहीं न कहीं गलत रास्ते पर है और उसे सही राह पर लाने की ज़रूरत है, लोकतंत्र का यह चौथा स्तम्भ भी पैसे की लालसा में कमजोर हो गया है| इस समयानुकूल रचना हेतु बधाई स्वीकार करें आदरणीय सतविन्दर कुमार जी
बहुत खूब प्रयास हुआ है आपका ये आदरणीय सतविंदर जी , बधाई
बड़े बड़े बोल बोल कर हकीकत को नहीं नकारा जा सकता। सुन्दर कथा आ.सतविंदर जी, बधाई आपको
न्याय (लघु कथा)
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लगन व इमानदारी देखते हुए “कर्मचारी इलाज हेतु अस्पताल अधिकृत करने बाबत” समिति में सदस्य सचित मेरे बॉस ने “समिति को असिस्ट” करने हेतु मुझे चुनिन्दा अस्पतालों से “बंद लिफ़ाफ़े में जरूरी सूचनाएं” लाने का कार्य करने का कहा | मैंने समिति सदस्यों के मध्य वार्ता में सूना था कि जरूरी सूचनाओं के बंद लिफ़ाफ़े के साथ सुविधा शुल्क का छोटा लिफाफा होगा | इसलिए मेने यह कार्य किसी अन्य से कराने को कहा तो मेरे बॉस बोले –“माधव बाबू, जुम्मेदारी का काम हर किसी से नहीं करा सकते, कार्य आप ही करेंगे वर्ना आपका बाहर तबादला निश्चित समझो | आपको तो लिफाफा लाकर सोपने अर्थात कोरियर का कार्य करना है |
बॉस के दबाव के आगे कार्य शुरू किया ही था कि वृद्ध बीमार माँ के स्वर्गवास पर 15 दिन का अवकाश लेना पड़ा | तीये की बैठक में आये बॉस ने कहा- माधव बाबू कार्य एक सप्ताह में कर रिपोर्ट सोंपनी है, मंत्री जी का दबाव है | घर में गीताजी के पाठ छोड़ बॉस द्वारा भेजी गाडी लेकर मै 2 अस्पताल ही जा पायां था कि बॉस का फोन आया “नमन अस्पताल में डॉ. साहब इन्तजार कर रहे है, पहले वहाँ पहुँचो वहाँ लिफाफा तैयार है “मेरी बात हो गई है”| वहां पहुँचते ही डॉ, ने लिफ़ाफ़े के साथ 20 हजार नकद बॉस को देने हेतु पकडाए | मैंने कहाँ- मुझे केवल लिफाफा लाने के ही आदेश है | डॉ. बोला बॉस से बात हो गई, आप तो उन्हें दे देना | डॉ. ने जैसे ही नोट हाथ में दिए, सीबीआई दल ने पकड़ लिया और बेग की व जेब की तलाशी ले, लिफाफे खोले और जेब में मिले 5 हजार रूपये के बारे में पूछा ? मैंने कहाँ “मै माँ की अस्थियाँ लेकर हरिद्वार गया था, जेब में जहाँ से मेरे बचे हुए पैसे है | सीबीआई ने रिश्वत का मामला बना मुझे गिरफ्तार कर लिया |
बड़े भाई घर में बताते हुए बोले “माधव की बातों से स्थिति भाँपते हुए ही मैंने इसे मना करते हुए स्वेच्छिक रिटायरमेंट लेने को कही थी | फिर भी इसने माँ की मृत्यु पर अवकाश में भी जाकर कार्य किया तो लालच की बू आना तो स्वाभाविक है |” सम्भ्रान्त परिवार की समाज में बदनामी करादी | लिखित शिकायत पर रंगें हाथों पकडे जाने से अब बच नहीं सकता | दूसरे दिन अखबारों में छपा “इमानदारी के लिए राष्ट्रपति पदक से समानित माधव बाबू रिश्वत लेते रंगें हाथों गिरफ्तार” |
बॉस ने अपना व समिति का बचाव करते हुए अदालत में उत्तर दिया-“समिति ने “बंद लिफ़ाफ़े में” अस्पताल की दरें लाने का कार्य सोंपा था | माधव बाबू ने ही अपने स्तर पर अस्पतालों से राशि एकत्रित करने की योजना बनाई है | इसमें समीति के सदस्यों का कतई हाथ नहीं है |
माधव बोला –“साहब,ये मेरी कार्य के प्रति लगन और आदेशों की पालना का मुझे तोफा दिया जा रहा है” | अंत में न्यायाधीश ने निर्णय सुनाते हुए कहाँ– डॉ.और समिति के सदस्य सचिव के मध्य वार्ता की मोबाइल डिटेल बताती है कि समिति ने रिश्वत की मांग अस्पतालों से की है “भ्रष्ट बड़े अधिकारी कैसे सीधे सादे छोटे कर्मचारियों के जरिये घूस खाते है और स्वयं बचते रहते है, इसका ये केस ज्वलंत उदाहरण है” |
(मौलिक व अप्रकाशित)
कई बार अपनी मातहत कर्मचारियों को इस तरह बलि का बकरा बनाया जाता है बॉस साफ़ बच निकलते हैं ये बातें आज आम हो रही हैं गरीब बेचारा अपनी नौकरी छूटने के डर से ये सब करता रहता है |अच्छी कहानी है आ० लक्ष्मण जी बहुत बहुत बधाई
हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी | सादर
प्रयास अच्छा है आ० लड़ीवाला जी, लेकिन यह कथानक लघुकथा की बजाय कहानी के लिए ज्यादा मुफीद है I रचना अनावश्यक विस्तार भी ले गई है, जिस कारण अधिक प्रभाव नहीं डाल पाई I बहरहाल, प्रतिभागिता हेतु अभिनानंदन स्वीकारें I
हार्दिक आभार आदरणीय श्री योगराज भाई जी | कहानी लिखने के बाद दो बार में लगभग 40% कटौती करने का प्रयास किया है |
महत्यपूर्ण तथ्यों को रखते हुए, कहनी में एक अच्चे सन्देश को ध्यान में रखकर पोस्ट करने का साहस किया | आपका ये कहना काफी हद तक सही है कि यह कहनी के लिए मुफीद है | आपका पुनः आभार | सादर
आदरणीय लक्ष्मण सर, बढ़िया कहानी हुई है इस सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई
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