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आदरणीय विजयशंकरजी, आपकी प्रस्तुत लघुकथा का मर्म अत्यंत प्रभावी है. शैल्पिक विन्यास भी बिधाजन्य हुआ है. किन्तु निर्वहन के क्रम में, जैसा मैं समझ रहा हूँ, तनिक और सहज होने की आवश्यकता थी. जैसे, सीनियर का प्रत्युत्तर था या प्रत्युत्तर पूर्ण था जैसे वाक्य का तात्पर्य या इसकी आवश्यकता समझ में नहीं आयी.
वैसे, यदि कथ्य निर्वहन की बातों को तनिक परे करें तो आपकी प्रस्तुत लघुकथा अपने उद्येश्य में सफल अवश्य है. किन्तु यह सफलता विधा की कसौटी से विलग कितनी रहे यह अवश्य ध्यान में रखने वाली बात है.
एक अत्यंत प्रभावी तथ्य के लिए हार्दिक बधाइयाँ
सादर
मुझे तो समझ में लाने के लिए गंभीर होना पड़ा बधाई हो
अंत में "कोई प्रश्न शेष नहीं रहा" कह तो दिया लेकिन इस रचना ने कई प्रश्न खड़े कर दिए| समयानुसार गधे को बाप कहने में कोई हर्ज नहीं है, हालाँकि जो नहीं कहता वो गधे से काम भी नहीं करवा सकता| कई स्थानों पर यह सार्थक है और कई स्थानों पर नहीं भी| लेकिन रचना की दृष्टि से अच्छा कार्य आदरणीय डॉo विजय शंकर जी सर, बधाई स्वीकार करें साथ ही वरिष्ठजनों की राय अवश्य संज्ञान में लें, मेरे तो यही पाठ हैं, जिनसे सीखता हूँ|
आजकल यही ज़माना है। सुन्दर लघुकथा आ. विजय शंकर जी। बधाई
आदरणीय शेख जी आप ने बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति की है. बधाई इस लघुकथा के लिए.
अच्छी लघु कथा कही आ० शेख़ जी लघु कथा का अंत बहुत प्रेरणादाई है अच्छा सन्देश दे रही है कथा |बहुत बहुत बधाई आपको .
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