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हार्दिक बधाई आदरणीय रवि प्रभाकर जी!बहुत बज़नदार तरीके से आपने हमारे देश की राजनीतिक शतरंज़ का कच्चा चिट्ठा खोला है!लघुकथा पढकर मन मुग्ध हो गया!
आदरणीय रवि जी प्रदत विषय को साकार करती और वर्तमान व्यवस्था पर सटीक चोट करती इस सार्थक लघु कथा की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।
प्यादे ऐसे ही तौयार करते लोग अपनी गोटी फिट करने के लिये...बहुत बढ़िया कथा!!सादर नमस्ते
वाह सर गज़ब की कथा हुई है... तू डाल डाल मैं पात पात...सरकार बनाये नीतियां, कर दे सीट आरक्षित, मगर शासन तो दबंग ही करेंगे.. समाज में व्याप्त इस विसंगति को सामने से उघाड़ कर रख दिया है आपने... बहुत बहुत बधाई इस कथा पर ..एक कथा कितने तंज कस सकती है इसका सशक्त उदाहरण भी प्रस्तुत कर दिया... शतरंज की चालें तो हैं ही साथ ही समय आने पर इंसान बदला हुआ रूप दिखा दिया मौकापरस्ती का भी अनुपम योग बना है कथा में.. इतने बड़े कथानक को लघुकथा में समेट पाना सबके बस की बात नहीं... पुनः बहुत बहुत बधाई सर कथा से सम्मोहित हूँ..
आ0 रवि जी, इस सशक्त लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई l
भाई रवि प्रभाकरजी, आपकी प्रस्तुतियों का कथ्य तो प्रभावी होता ही है, इसके प्रस्तुतीकरण की महीनी मोह लेती है. इस बार की प्रस्तुति में संवादों का डिटेल्स कथ्य प्रवाह को बनाये रखता है. ज़मीन की राजनीति या छोटी इकाइयों के स्तर पर की राजनीति का स्वरूप निखर कर आया है. हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ स्वीकार करें.
आयोजन का शुभारम्भ आपकी रचना से हुआ इसकी विशेष बधाई.
शुभ-शुभ
इस उम्दा प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय रवि जी बहुत कुछ सीखने को मिलता है आपकी लघुकथाओं से
प्रदत्त विषय पर बहुत अच्छी रचना , गाँवों में आजकल चुनाव ऐसे ही हो रहे हैं । बढ़िया प्रस्तुतीकरण , बहुत बहुत बधाई आपको आ रवि जी
भरोसा तो है पर...
होटल के कमरे में बुलाया जाना ....! कुछ तो खटका सा लगा था , लेकिन पूर्वाग्रहों के कारण हाथ आये चाँस को मिस करना नहीं चाहती थी ।
" क्या मै सचमुच सौभाग्यशाली हूँ " पता नहीं क्यूं , उनकी बातों पर विश्वास करने का मन हो आया । होटल की सीढ़ियां चढ़ते हुए मन में द्वंद जारी था ।
शहर में अगले हफ्ते से इनकी शुटिंग शुरू हो रही है , भैया भी कह रहे थे।
काॅलेज कैम्पस में उन्होंने कुछ अजब ही स्वर में पूछा था कि, --" आपको हमारी टीम पर भरोसा तो है ना ? "
" जी सर ,पूरा भरोसा है ,लेकिन इतने लोगों में सिर्फ मुझे ही ......"
" आप का चेहरा सुन्दर और फोटोजेनिक है । हम एक नेचुरल चार्म ढूंढते है चेहरे के अंदर और वो आपमें गजब का है । " उनकी आँख चमक गयी थी ।
" जी "
" याद रखियेगा , शाम को कमरा नम्बर २०६ "
तन्द्रा सीधे कमरा नम्बर २०६ के पास जाकर ही टूटी । बडी़ हिम्मत करके उसने दरवाजे पर नाॅक किया ।
दरवाजा उन्होंने ही खोला था । अंदर ठहाकों की आवाज गुँज रही थी व एक अजीब सी गंध आ रही थी ।
" अरे ,नताशा जी , बडी देर कर दी आपने । कई लोग बेताबी से इंतज़ार कर रहे है आपका । "
" सर ,मेरे भाईसाहब भी आप जैसे कलाकारों से मिलने के लिए बडे़ उत्सुक हो मेरे साथ ही आये है , आईये ना भैया ! "
" अरे , बृजमोहन....साहब... आप ...! " आवाज हलक में ही अटक गई ।
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