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आदरणीय रश्िम जी, लघुकथा खण्िडत जीवन और समय सत्यों के प्रमुख क्षण, खण्ड, प्रश्न, कोण या अंश का चित्रण करती है, जिसकी सारी चेष्टा निश्चित स्थल पर उंगली टीका कर मुख्य विसंगती, विद्रूपता और विषमता को प्रकाशित कर सीधे मर्म पर चोट करने की होती है। आपकी प्रस्तुत कथा जीवन के एक ऐसे ही सूक्ष्म अंश का सफलतापूर्वक चित्रण करने में सफल सिद्ध हुर्इ है। प्रदत्त प्रकरण को पूर्णरूपेण परिभाषित करती इस स्थविर प्रस्तुति हेतु अनन्त शुभकामनाएं ।
पारिवारिक ताने -बाने पर बुनी गयी एक सार्थक शाह और मात। ढेरों बधाई आदरणीया रश्मि जी।
शीर्षक को सार्थक करती हुई इस रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय rashmi tarika जी
जो दिल देखा आपना मुझसा बुरा न कोय ! .. काश देवरानीजी ने इसे सुना और क़ायदे से समझा होता !
एक सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत हुई इस लघुकथा केलिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीया रश्मिजी.
शुभ-शुभ
बिसात
"अरे पांडेजी कैसे गलत नहीं किया है अनिल ने? हेड क्वार्टर में किसी को ऐसी फ़ाईलों की समझ नहीं है। आप साहब को छोड़िये। बस उसके नाम का शो कॉज नोटिस जारी कराइये।" इतना कहकर मिस्टर अधिकारी ने रिसीवर रख दिया और फिर से फ़ाईल पलटने लगे।
"मैं अंदर आ सकता हूँ सर?"
"अरे आओ अनिल। बैठो बैठो.... अभी मैं हेड क्वार्टर में तुम्हारी ही बात कर रहा था। वैसे तो मैं किसी की सिफारिश नहीं करता लेकिन मैंने पांडेजी से कहा कि अनिल अपना ही आदमी है, साहब से बात करें।"
"आपका बहुत बहुत आभार सर। आप भी जानते है कि मेरी कोई गलती नहीं है।"
"बात तो सही है अनिल, लेकिन क्या करें ये सब नौकरी का हिस्सा है"
"साहब बहुत नाराज है क्या सर?"
"बहुत ज्यादा। पांडेजी तो बता रहे थे तत्काल नोटिस जारी करने का आदेश दिया है।"
"लेकिन सर....."
"तुम कोई चिंता मत करो अगर नोटिस आता है तो जवाब मैं बनवा दूंगा और अपनी सकारात्मक टीप भी दे दूंगा. बस तुम इंतज़ाम कर लो"
"जी कितना सर?"
"कम से कम पचास हजार तो करना पड़ेगा।"
"जी सर"
“अच्छा अनिल अब तुम इस फाईल को अच्छे से देख लो तब तक मैं घर से लंच लेकर आता हूँ।”
“जी सर”
मिस्टर अधिकारी की गाड़ी निकल जाने की आवाज से आश्वस्त होकर अनिल ने एक फोन लगाया- “नमस्कार पांडेजी, हाँ बात हो गई है। आप नोटिस ई मेल कीजिये। जवाब और टीप कल तक भिजवा दूंगा फिर मामला आपको ही दबाना है। बिलकुल बिलकुल.... पचास का कहा है। आप उसमें से आधे तो मांग ही लेना.... हाँ भई हाँ याद है, मैंने दो का वादा किया है। पच्चीस आप उनसे मांग लेना बाकी का एक पिचहत्तर आपको भिजवा दूंगा। साहब को मेरा प्रणाम कहियेगा। नमस्कार।”
शतरंज की बिसात पर राजा, वजीर और मंत्री देख ही नहीं पाए कि उन्हें पार कर घोड़ा ढाई घर चल चुका था ।
(मौलिक व अप्रकाशित)
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