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साहित्य और उसका राजनीतिकरण , एक वैचारिक स्तर पर लेखकीय कर्म और उसके सम्मान को निम्नतर स्तर तक ले जाता हुई आपकी ये लघुकथा वाकई बेहद संवेदनशील और मन को उद्वेलित करती हुई बन पड़ी है ।
रचनाकार एक कोमल ह्रदय का स्वामी और राजनीतिज्ञ साम- दाम- दंड - भेद के प्रचंड ज्ञाता।
क्या करे ऐसे में अच्युतबाबू , अपनी सादगी और कोमल मन के कारण आहत हुए और विवस हुए चालाक ,धूर्त निलाद्रि बाबू के समक्ष ।
कठपुतली हुए निलाद्रि बाबू के हाथों और स्थापित हुए एक और मोहरे के रूप में।
यहां कथा में पंच देते हुए जो आपने सम्मानित के लिए कहा है कि ." मगर क्या आदमी है ये साहब ! .. पूरा ऊँट है ऊँट ! .. सीधा तो सोचता ही नहीं.. सीधा चलने की तो बात ही छोड़िये.." -------स्तब्ध कर गया है , दिमाग ही चकरा गया है।
सादर नमन आपको सौरभ जी। __/\__/\__/\__
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आप का कहना १०० फीसदी सही है. पुरुस्कार वितरण हो या सम्मान समारोह सभी ओर यही चाले चली जाती है. अँधा बाटे रेवड़ी अपने ही अपने को दे, वाली कहावत सब ओर प्रचलित है. इस में अपने वाले अपने वाले को ही पुरुस्कार देते है. पुरुस्कार की आड़ में चलने वाला यह गौरख धंधा अच्छी तरह फलफूल रहा है. आप ने बहुत ही खूबसूरती से इन्हें लघुकथा में ढाल कर प्रस्तुत किया है. आप को इस उम्दा लघुकथा के लिए आभार .
बेहद ज्वलंत मुद्दे पर बेहद प्रभावशाली लघुकथा रची है आ० सौरभ भाई जी.
// कौड़ी के तीन नहीं तैंतालिस मिलते हैं, तैंतालिस.. कलम घिस-घिस के मर जाने वाले//
यह पंक्ति एक पूरे उपन्यास के हैसियत की है. इस मुकम्मिल और कामयाब लघुकथा पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
इस रचना के लिए सादर बधाई आपको आदरणीय saurabh pandey जी
आपकी गूढ़ कथा समझने का दिमाग तो हैं न अपने पास फिर भी पढ़ी दो बार ...आदरणीय भैया सादर नमस्ते और बधाई साहित्यकार के समसामयिक खेल को अपनी लघुकथा के जरिये उजागर करने के लिय |
आदरणीय सौरभ जी वर्तमान हालात पर आपकी लेखनी से सृजित इस लघुकथा पर दिल से बधाई स्वीकार करें। अपनी पूर्ण कसावट के साथ वार्ता पाठक को अंत तक बांधे रखती है। लघुकथा की पंच लाईन '' मगर क्या आदमी है ये साहब ! .. पूरा ऊँट है ऊँट ! .. सीधा तो सोचता ही नहीं.. सीधा चलने की तो बात ही छोड़िये..'' मानवीय सोच पर सीधा प्रहार करती है। बहुत ही खूबसूरत मोड़ के साथ प्रस्तुति अपने चरम पे पहुँचती है। इस प्रस्तुति के लिए आपको दिल से बधाई और आपकी लेखनी को साष्टांग _/\_प्रणाम सर।
आदरणीय उस्मानी जी LKG .... हा हा हा
मैं भी साहित्य की इसी कक्षा का विद्यार्थी हूँ.
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