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आदरणीया अर्चना जी ,रचना पर प्रस्तुत होकर उत्साहवर्धन करती आपकी प्रतिक्रया के लिए हार्दिक आभार
आदरणीय पंकज जोशी जी , आपने मेरी रचना पर प्रस्तुत होकर मेरा उत्साहवर्धन किया ,आपका तहे दिल से आभार
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया बबीताजी
बहूत सुंदर कथा प्रतिभा जी सार्थक संदेश देती.
आदरणीया नयना जी ,कथा पर प्रस्तुत हो सकारात्मक टिपण्णी के लिए आपका हार्दिक आभार
आपने हम लेखन क्षेत्र के लोगों के मर्म को ही उकेर कर रख दिया है।
राजनीतिकरण के समीकरण में सम्मानो का उनके हाथ ग्रहण करना जिनका दूर -दूर तक लिखने से नाता -रिश्ता ही नहीं है।
मैंने इस क्षण को हाल ही में महसूस किया है, बस मैं उठकर आ न सकी वहाँ से , इसका मुझे तमाम उम्र अफसोस रहेगा।
आपकी लेखनी हमेशा की ही तरहआज भी मेरे दिल तक पहुंची है।
ह्रदय से नमन आपको।
आपने रचना के मर्म को मान दिया आपका हार्दिक आभार आदरणीया कांता जी , जिस स्थिति का आप जिक्र कर रही हैं उसमे आप जैसी संवेदनशील रचनाकार की क्या मनोदशा होगी समझा जा सकता है , मेरी रचना आपको दिल के करीब लगी ,,मेरा सौभाग्य ,
आदरणीय प्रतिभा जी, नमन आपकी प्रतिभा को । पूरा एक द़ृश्य चलचित्र समान घूम गया आपकी कथा पढ़ते समय ।
/नेतानुमा लोग बड़ी तादाद में थे I/ साहित्य के नाम पर अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए आतुर तथाकथित नेताओं की पोल खोलती इस पंक्ित ने मंत्रमुग्ध कर दिया ।
/आश्चर्य की क्या बात है ?आप महिला हैं ,आरक्षित वर्ग से आती हैं I वो सामने एक प्रोढ़ महिला दिख रही हैं आपको ?"
"जी "
"वो सकीना जी हैं Iउन्हें भी सम्मान दिला रहे हैं I इसी सत्र से उनकी कुछ कहानी वगेहरा भी डलवाने की कोशिश कर रहे हैं स्कूली किताबों में Iसर जी सब बैलेंस बना के चलते हैं I"/ये पंक्तियां इस कथा की जानहैं। पुरस्कार देने के कुत्िसत मापदण्डों की कलई खोलती इस पंक्ित के बारे आदरणीय योगराज सर की टिप्पणी से मैं भी पूरी तरह सहमत हूं । 'आरक्षित वर्ग' को यदि 'सकीना' जैसे संकेत में कहा जाता तो अधिक उपयुक्त रहता ।
/अरे कहानी वहानी पढने की फुर्सत कहाँ/ सत्य का आईना दिखाती यह पंक्ित सीधे दिल में उतर कर मस्ितष्क पर हथौड़े चलाने के लिए काफी है।
कुल मिला के यदि कहा जाए तो इस कथा के बगैर शायद यह आयोजन अधूरा रहता ।
सादर शुभकामनाएं ।
आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए आपको ह्रदय तल से आभार प्रेषित करती हूँ आदरणीय रवि प्रभाकर जी ,आपके और आदरणीय योगराज जी के बताए बिंदु को संकलन के समय सुधरने का प्रयास करूंगी सादर
प्रतिभा जी ,मैं कल ही अमृता प्रीतम जी की एक बुक पढ़ रही थी उसकी वो पंक्तियाँ यहाँ सटीक बैठती हैं ----जो कलम पैसों के लिए चले वो नकली है ,जो कलम सिर्फ शोहरत के लिए चले वो कलंकित है ..उस पर आपकी इस लघु कथा की नायिका ऐसा ही कुछ कह रही है
बहुत सुन्दर शानदार प्रस्तुति हुई आपकी एक बेहतरीन सन्देश भी छोड़ रही है ...सच्ची कलम कभी बिकाऊ नहीं होती | हार्दिक बधाई आपको |
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