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वाह बेहद खूबसूरत लघुकथा हुई है आ० नेहा जी. विषयानुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है.
शतरंज आधारित आखिरी चाल
"छोटे ! होश भी है तुझे कि क्या कह रहा है तू ?
"हाँ !भाई साहब होश में ही ये सब कर पाया हूँ | आप शतरंज के वो मज़बूत मोहरे थे जिसने हमारी ज़िंदगी के खेल को बिखरने न दिया और पिताजी की मौत के बाद उनको दिया वचन निभाने की खातिर भाई नही पिता बनकर हमारी ज़रूरतो को पूरा किया |सारी ज़िम्मेदारी निभाई |"
"ये सब जानते हुए भी!!
नारायण जी ने अपने आप को बडी मुश्किल से सम्भाला |जो सुना वो पिघले शीशे सा कानों में उतर कर असहनीय पीडा दे रहा था |
"एक बार फ़िर सोच ले इन रिश्तों का खून करने से पहले |कहीं ऐसा न हो कि कोई पासा पलट दे कुदरत |"
"नही!अब कुछ नही हो सकता |आपका ये प्यादा बीवी से मात खा गया और एक ही सूरत में वो मुझे दोबारा अपनायेगी जब ये घर उसके नाम होगा और मैं आपके बिना तो रह लूँगा पर उसके बिना नही |आप को ये घर छोडकर जाना होगा |"
"लेकिन इसमें तो तूने कुछ नही लगाया सिर्फ लोन अपने नाम से लिया था | इसीलिये तो...कानूनन इस पर मेरा हक़ है |बेशर्मी से छोटे ने कहा" | शतरंज
की आखिरी चाल नारायण जी झेल न पाये और इतना ही निकला मुँह से "तू तो जी लेगा पर मैं .."और धम्म से फर्श पर गिर पडे |ये चाल उनकी जान पर भारी पड गई |
मौलिक एवं अप्रकाशित
हार्दिक बधाई आदरणीय अनिता जी!बेहतरीन प्रस्तुति!
आदरणीया अनीता जी, प्रदत्त विषय के अनुरूप बढ़िया लघुकथा हुई है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
लालच में अंध होकर समस्त रिश्तों पर दाव खेलते ये बेटे ,बहुत ही दुखद त्रासदी हुई है यहां। क्या सीखा रहे है हम अपनी अगली पीढ़ियों को !!!! मन को विह्वल करती एक सुन्दर लघुकथा सखी। ढेरों बधाइयां स्वीकार करें।
//तू तो जी लेगा पर मैं .."// क्या कहने हैं आ० अनीता जैन जी, लाजवाब लघुकथा हुई है. बहुत बहुत बधाई I
लालच के लिए भाई अपने भाई से भी दगा कर सकता है, लेकिन मुझे लगता है फिर भी कहीं विश्वास जीवित है| इस शानदार लघुकथा के लिए सादर बधाई स्वीकार करें|
आदरणीय सौरभ जी, आप जी ने लघुकथा में आज के हलात पर बहुत ही सुंदर विश्लेषण किया है - बधाई हो
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