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आदरणीया ज्योत्सना कपिलजी, आपकी लघुकथा का तथ्य अब आम लगने लगा है. यह एक पाठक के तौर हमारी असंवेदनशीलता का ही परिचायक है. लेकिन यह भी उतना ही सही है, कि ऐसी किसी परिघटना को हिन्दी साहित्य में आवश्यक स्थान तथा सम्मान मिला है. परन्तु, समस्या का प्रशासनिक स्तर पर समाधान न होना अधिक सालता है.
प्रस्तुति की भाषा थोड़ी कृत्रिम लगी मुझे. कुत्ते को श्वान कहना अटपटा लगा, कि अब ऐसा कोई कहता नहीं. लघुकथा तो ’ऐट पार’ विधा है
:-))
बहरहाल, एक जीवंत विमर्श को पुनरुत्प्रेरित करती हुई इस प्रस्तुति केलिए हार्दिक शुभकामनाएँ
आदरणीया ज्योत्स्ना जी, आयोजन में सहभागिता एवं इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर
बहुत बढ़िया संकल्प ..प्रायश्चित करना ही चाहिए ...बधाई आपको अच्छी कथा के लिय
कहानी बहुत अच्छा सन्देश छोड़ रही है बहुत खूब ...हार्दिक बधाई ज्योत्स्ना जी
(संकल्प ..विषय आधारित)
दोस्ती
मोबाइल पर अंकित का नाम फ़्लैश हो रहा था।तीसरी बैल होते होते सुधा का टिफिन पैक हुआ और उसने खीज कर फ़ोन उठा लिया ।
"हाँ बोलो ..क्या बात है? क्यूँ फ़ोन पर फ़ोन किये जा रहे हो ? मैंने कल कहा न तुमसे कि मुझे अब कोई बात नहीं करनी तुमसे ।"
"सुधा ,मैं बहुत परेशां हूँ ।हॉस्पिटल में हूँ। कल रात ब्लड प्रेशर हाई हो गया था।अब तुम झगड़ कर और मत बढ़ाओ।प्लीज,आ जाओ एक बार मिलने।जया मायके गई है।वो कल ही आ पाएगी।अपने दोस्त के लिए इतना नहीं कर सकती ? तुम्हें देखते ही ठीक हो जाऊँगा ।" अंकित बिना रुके बस मुनहार करता गया बुलाने के लिए।
"देखती हूँ ...।"कहकर सुधा ने फ़ोन रख दिया।एक अन्तर्द्वन्द में घिर गई कि जाए या न जाए।हर बार का लिया गया प्रण ज़ाया हो जाता। यह ज़रूर था कि अंकित की प्यारी, लुभावनी बातों में अपने और सुधीर के वैवाहिक जीवन की कड़वाहटों को भूल जाती थी ।लेकिन कई दिनों से अंकित अब उसे दोस्ती की नई परिभाषा समझाने में लगा हुआ था।किसी अनहोनी की आशंका से सुधा ने अपने कदम भटकने से रोक लिए।मन ही मन एक संकल्प लिया कि इस दोस्ती को यही विराम देगी ताकि दो परिवार टूटने से बच जाएँ।विचारों की तन्द्रा एक बार फिर अंकित के फ़ोन की घंटी से टूट गई।
" अकेले बहुत घबराहट हो रही है जान ।तुम आ रही हो न ?"आवाज़ को दर्द में भिगो कर अंकित ने पूछा।
" अंकित ,घबराओ नहीं। मेरी जया से अभी बात हुई है।वो कल नहीं आज ही आने वाली है ।"
.
मौलिक और अप्रकाशित
//अपने और सुधीर के वैवाहिक जीवन की कड़वाहटों को भूलने के लिये भी दोस्ती को विराम देने का संकल्प दो परिवारो को टूटने से बचा गया// अच्छी रचना हुई रश्मि जी .//
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