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बढ़िया !! आकांक्षा पूर्ण हुई यह सबसे बढिया | सादर
स्त्री के दो रूप , एक झुकती हुई स्त्री दासी के सामान , दूसरी अपने व्यक्तिक रुतबे से संपन्न और टूटता पुरुष का सनातनी दम्भ का तिलस्म।
अधिकार व् सम्मान कभी उपहार में कोई नहीं दे देता है , इसे कमाना पड़ता है। छोटी सी ये कथा स्त्री-विमर्श से जुडी हुई चिंतन को एक बहुत बड़ा आयाम देती है। इस साधारण सी लघु रूप ने अपने अंदर कथ्य का एक व्यापक चिंतन -आयाम छुपाया हुआ है।
इस लघुकथा की शिल्प में ऐसा सम्मोहन है कि आँखें चौंधिया जाती है पढ़ते ही। इसी कारण ये कालखण्ड दोष , कथा को पहले बार पढ़ते हुए नज़र अंदाज़ हो गये । आदरणीय सुनील जी बस जरा सा प्रयास में ही ये त्रुटि रहित हो जाएगा और आप इसे आसानी से कर लेंगे ऐसा मेरा विश्वास है. इस अप्रतिम कथा के लिए ढेरों बधाइयां स्वीकार करे।
aआदरणीय कांता जी आप ने लघुकथा की पूरी समीक्षा कर दी. आभार आप का. बधाई आदरणीय .
बहुत सुन्दर ....इस प्रेरणादायी कथा के लिए बधाई
अगला दिन लघु कथा में नहीं होता आदरणीय पर कथा में इस दोष को सुधारने की गुंजाईश है आप प्रयासकर सकते हैं I सादर .
लातों के आगे भूत भी भागते हैं काश ये भूत बचपन से ही माँ उतारने में सफल हो जाए तो आगे ये नौबत नहीं आएगी नारी की इज्जत करना लड़कों को घर से ही सिखाना शुरू करना चाहिए ...खैर ये बात अलग है फिलहाल एक अच्छी प्रेरणास्पद लघु कथा के लिए बधाई लीजिये काल खंड दोष तो आप निःसंदेह दुरुस्त कर ही लेंगे सुनील जी .
जनाब सुनील वर्मा जी , दिल को छू लेने वाली कामयाब लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई
सुनील वर्मा जी बधाई आपको इस सकारात्मक रचना के लिये बाकी तो गुरुजन कह ही चुके है.
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