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आकांक्षा
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"बेटा, यह सिध्द पीठ है, जो मांगोगे, निश्चित मिलेगा."
"अरे वाह, फिर तो आज मैं अपनी इतने दिनो से दबी आकांक्षा यही मांगुगा."
"ओये, कपिल क्या माँगा."
"मैरी तो एक छोटी सी आकांक्षा है कि ईश्वर मानव मन में पहले अपराध के बोध की सी ग्लानि, सभी अपराधों में समान ही रहे तो समाज में अपराध पर रोक तो लगे."
अप्रकाशित - मौलिक
इसमें कथा तत्व क्या है इस पर विचार अवश्य करें . सादर .
सहमत हूँ आपसे। आपने सही इंगित किया है आदरणीय ,इस कथा में कथा - तत्व का अभाव तो है। सादर
वाह !!! मानवता के हित में बहुत खूब आकांक्षा को साधा है आपने आदरणीय राजेंद्र जी , बधाई स्वीकार करें।
बहुत ही सुंदर आकांक्षा प्रार्थना के माध्यम से | सकारात्मक रचना के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीय भाई जी |
मोबिल से ओबिओ चलाने मे दिक्कत आति है
म्न होने के बाव्जुद
आदरनिय सुझव का ह्र्द्य तल से आभर
सभि आद्रनिय का आभार
सुझाअव आगे धायान रहेग कि कोसिस रहगि
आप सभि का प्रोत्साहन हि दिस्शा ओर दशा सुधारेगा इसकि आस्सा
गौड़ साहब सीधी बात कहते ही लोग नाराज़ हो जाते हैं मगर लेखक अपनी रचना पर पाठक की टिप्पणी से नाराज़ नही होता , यह विश्वास ले कर कह दूँ -- रचना में कथा अंश गायब है। लघु तत्व तो है।
अगली गोष्ठी में मुझे निराश नहीं कीजिएगा , यह वादा रहा ? पक्का ?
पहले संवाद में "बेटा" और अगले संवाद में "ओये कपिल" कह कर संबोधित करना अटपटा लग रहा है I मैं ससम्मान निवेदन करना चाहूँगा ओबीओ के आयोजनों पर पूरे साहित्य की दृष्टि रहती है, जिनमे सभी हमारे हितैषी ही नहीं होते I अत: कोई भी रचना यहाँ प्रस्तुत करते समय बेहद सतर्क रहने की आवश्यकता होती है I ताकि रचना या रचनाकार पर नैमित्तिक होने का दोष न लग जाए Iवैसे लघुकथा विषयानुरूप है जिस हेतु बधाई प्रस्तुत है आ० राजेंद्र गौड़ जी I आ० डॉ गोपाल नारायण जी एवं प्रदीप नील जी की बात पर गौर अवश्य करें I
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